कोल इंडिया के चेयमैन प्रमोद अग्रवाल जनवरी महीने में धनबाद आये थे. इस अवसर पर वे बीसीसीएल के मुख्यालय कोयला भवन भी गये थे. यहां उन्होंने यह बड़ा बयान दिया था कि अगले 30-40 वर्षों तक देश में कोयले का कोई विकल्प नहीं है और देश में कोयला उत्पादन में कमी भी नहीं आयेगी.
लेकिन उसके बाद क्या होगा? यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब अभी कोई देना नहीं चाह रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसके बाद कोयला खदानों के सामने बंद होने की स्थिति उत्पन्न होने वाली है. सरकार नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय कर चुकी है और खुद कोल इंडिया भी गोइंग ग्रीन के रास्ते पर चल चुकी है और 2023-24 तक वे सभी मीटिंग और मुख्यालय के कामों के लिए सौर ऊर्जा पर निर्भर होंगे, यह बात खुद केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर कही है.
ऐसे में एक बार फिर जस्ट ट्रांजिशन की जरूरत महसूस होती है. झारखंड जैसे राज्य में कोयला क्षेत्रों में अधिकतर बीसीसीएल और सीसीएल द्वारा संचालित स्कूल हैं, जहां खदानों में काम करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों और मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं. अगर ये खदान बंद हुए तो ये स्कूल भी नहीं रहेंगे, क्योंकि जब खदान क्षेत्रों में लोग ही नहीं रहेंगे तो स्कूल की जरूरत क्या होगी. बड़ा सवाल यह है कि जब ये स्कूल बंद हो जायेंगे तो इन स्कूलों के शिक्षकों का क्या होगा? उनके रोजगार पर संकट आ जायेगा और उनके सामने भूखों मरने की नौबत भी आ सकती है. इसकी वजह यह है कि इतने शिक्षकों को नौकरी देने की कोई व्यवस्था फिलहाल तो नजर नहीं आती है.
हजारीबाग जिले के तापिन साउथ कोलियरी के डीएवी स्कूल में कार्यरत एक महिला टीचर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें अभी भी बहुत अच्छी सैलरी नहीं मिलती है. यही वजह है कि हमारी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, लेकिन अगर स्कूल बंद हो गये तो हम सड़क पर आ जायेंगे.
वहीं रामगढ़ जिले के कुजू इलाके के एक शिक्षक का कहना था कि कोलियरी इलाकों में जो स्कूल हैं वहां मनमाने ढंग से शिक्षकों की नियुक्ति होती है और वेतन में भी विसंगतियां हैं, जिसकी वजह से शिक्षकों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में अगर स्कूल बंद हुए तो हमारे सामने विकट समस्या होगी. इसलिए हमारा राज्य सरकार से यह आग्रह है कि वे समय रहते हमारी समस्या को समझे और इसका निराकरण करे.
गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र में राज्यसभा में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) और सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) जैसी कोल इंडिया की सहायक इकाइयों द्वारा वित्तपोषित स्कूलों और उसमें काम करने वाले शिक्षकों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का मसला उठाया गया था. शून्यकाल के दौरान उच्च सदन में यह मुद्दा उठाते हुए शिवसेना सदस्य संजय राउत ने स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों की समस्याओं पर चिंता जताई थी और सरकार से उनकी समस्याओं के शीघ्र समाधान की मांग भी की थी. उन्होंने कहा कि कोल इंडिया के तहत आने वाली बीसीसीएल और सीसीएल जैसी इकाइयां कोलियरी इलाकों में स्कूल चलाते हैं और कोयला खदानों में काम करने वालों के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं. राउत ने कहा कि इन स्कूलों में काम कर रहे शिक्षक आज आर्थिक तंगहाली से जूझ रहे हैं. कोयला खदानों में काम करने वालों के बच्चों को पढ़ाने वाले करीब 2,000 शिक्षकों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल पा रहा है. उन्हें मात्र 4,000 रुपये या 5,000 रुपये बतौर वेतन मिलते हैं और उसके लिए भी उन्हें छह-सात महीने इंतजार करना पड़ता है. सेवानिवृत्ति के लाभ तो दूर की बात है.