कोल इंडिया घाटे में चल रही खदानों को ज्यादा दिनों तक बनाये रखने की स्थिति में नहीं होगा. यह बयान हाल ही में कोयला सचिव ने दिया है, जिसने इस बात को पुख्ता किया है कि जस्ट ट्रांजिशन समय की मांग है और जलवायु विशेषज्ञ जस्ट ट्रांजिशन को लेकर जिस तरह मजबूती से अपनी राय रख रहे हैं वह कितना और क्यों जरूरी है.
जलवायु विशेषज्ञ लगातार यह कह रहे है कि जस्ट ट्रांजिशन को लेकर सरकार को ठोस निर्णय लेने चाहिए और इसके लिए नीति बनानी चाहिए अगर सरकार ने इसपर जल्दी ही कोई नीति नहीं बनायी तो झारखंड जैसे राज्य को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. यह आशंका विशेषज्ञों द्वारा इसलिए जाहिर की जा रही है, क्योंकि हाल ही में कोयला सचिव ए के जैन ने एक कार्यक्रम में कहा है कि कोल ब्लाॅकों के प्राइवेटाइजेशन को देखते हुए कंपीटिशन में बने रहने के लिए कोल इंडिया घाटे में चल रहे खदानों को चालू रखने और आर्थिक रूप से कमजोर खदानों को बनाये रखने की स्थिति में नहीं होगा.
पिछले साल कोल इंडिया की ओर से यह कहा गया था कि वह घाटे में चल रही 23 खदानों को बंद कर देगी और इससे कंपनी को लगभग 500 करोड़ रुपये की बचत करने में मदद मिलेगी. गौरतलब है कि कोल इंडिया पिछले तीन-चार साल में 82 खदानों को बंद कर चुकी है, जिसमें झारखंड के भी कई खदान शामिल हैं. हालांकि कोल इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि कोयला अगले 10-15 सालों तक देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता रहेगा.
जलवायु परिवर्तन से विश्व को बचाने के लिए 2015 में पेरिस समझौता हुआ था जिसे 2016 से लागू कर दिया गया. चूंकि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत अधिक होता है जो जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभाता है, इसलिए सरकार इनपर नकेल कसने की ओर अग्रसर है और यह इस समझौते की जरूरत और मजबूरी दोनों है. यही वजह है कि जलवायु को बचाने के लिए कार्य करने वाले एक्सपर्ट्स लगातार यह कह रहे हैं कि कोल एनर्जी से रिन्यूबल एनर्जी की ओर बढ़ा जाये, लेकिन जो लोग कोयले पर आधारित जीवन जी रहे हैं और खदानों के बंद होने से जिनका जीवन बुरी तरह प्रभावित होगा, उन्हें न्यायसंगत तरीके से किसी और रोजगार में लगाया जाये, ताकि उनके साथ अन्याय ना हो..
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एनएफआई की रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कोल ट्रांजिशन से झारखंड राज्य अत्यधिक प्रभावित होगा और कई शहर इसकी वजह से वीरान हो सकते हैं, क्योंकि वे पूरी तरह से कोयले पर आधारित हैं. इनमें पाकुड़, पलामू, रांची और कोडरमा का नाम सबसे पहले आता है, जहां जस्ट ट्रांजिशन का बड़ा प्रभाव दिखेगा. इसके अलावा हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह, सिंहभूम,गोड्डा, धनबाद, चतरा, देवघर और बोकारो जैसे शहर भी प्रभावित होंगे. चूंकि कोयला क्षेत्र में 90 प्रतिशत ऑफ रोल श्रमिक हैं. इसलिए समस्या विकट है और अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो समस्या का निदान करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है