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बैद्यनाथ धाम की पंचकोशी परिक्रमा है जरूरी, हाजिरी लगाये बिना बाबाधाम की यात्रा अधूरी

बैद्यनाथ क्षेत्र में अन्य धार्मिक स्थलों की भी स्थापना प्राचीन काल में हुई थी जिसे पंचकोशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इन स्थलों में अपनी हाजिरी लगाये बिना बाबाधाम की यात्रा अधूरी होती है. सारे क्षेत्र ऐतिहासिक व पौराणिक मान्यताओं के प्रतीक हैं जो पांच कोश की परिधि में फैले हुए हैं.

सुबोध झा, शिक्षाविद. देवाधिदेव महादेव बाबा बैद्यनाथधाम का क्षेत्र विभिन्न धार्मिक व आध्यात्मिक विशेषताओं का समागम है. एक ओर जहां लाखों श्रद्धालु यहां जलार्पण कर अपने आप को धन्य करते हैं, वहीं दूसरी ओर बैद्यनाथ क्षेत्र में अन्य धार्मिक स्थलों की भी स्थापना प्राचीन काल में हुई थी जिसे पंचकोशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इन स्थलों में अपनी हाजिरी लगाये बिना बाबाधाम की यात्रा अधूरी होती है. समय-समय पर विभिन्न साधकों द्वारा इन धार्मिक स्थलों की प्रतिस्थापना विशेष उद्देश्य के साथ किया गया, जो आज इस क्षेत्र की धार्मिक पहचान के तौर पर जाना जाता है. ये पंचकोशी क्षेत्र बैद्यनाथ मंदिर के विभिन्न दिशाओं में अवस्थित है और उस क्षेत्र को विशिष्ठ स्वरूप प्रदान करते हैं. ये क्षेत्र या तो किसी मनीषियों की तपोभूमि है या इनका बैद्यनाथ मंदिर की स्थापना में जिक्र है. सारे क्षेत्र ऐतिहासिक व पौराणिक मान्यताओं के प्रतीक हैं जो पांच कोश की परिधि में फैले हुए हैं.

1. हरिलाजोरी – बैद्यनाथ मंदिर के उत्तर लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर हरिलाजोरी मंदिर अवस्थित है. प्राचीन काल में यह क्षेत्र हरितकी वन के रूप में जाना जाता था. इस स्थान की महत्ता इसलिए भी विशेष है कि यही पर लंकाधिपति रावण ने ग्वालवेश भगवान श्री विष्णु को लघुशंका से निवृत्त होने हेतु शिवलिंग को पकड़ने को कहा था. यह पौराणिक स्थान हरि हर मिलन का क्षेत्र है, जहां आज भी विष्णु चरण पादुका के निशान है जो इस क्षेत्र विशेष की महत्ता को परिभाषित करते हैं. मंदिर में हरिलाजोरी महादेव का शिवलिंग है. इसके साथ ही साथ अन्य मंदिरों का समूह भी है. मंदिर की परिधि के ठीक बाहर एक छोटी-सी जोरी भी बहती है जो ”रावनाखार” के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर से कुछ दूरी पर एक कुंड है जिसे श्रीकुंड कहा जाता है. इस कुंड में स्नान से सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. इस स्थान पर अगहन पूर्णिमा के दूसरे दिन एक बड़ा-सा मेला भी लगता है.

2. नंदन पहाड़ – बैद्यनाथ मंदिर के पश्चिम दिशा में लगभग 3 किलोमीटर दूर पर एक छोटी-सी पहाड़ी स्थित है जो नंदन पहाड़ के नाम से जाना जाता है. पूर्व में इस क्षेत्र का नाम नंदन वन था. यहां पर नंदन बाबा का व अन्य देवी देवताओं के मंदिर है. इस परिसर में जागृत काली मंदिर भी है, जहां पर कोई भी मनोकामना मांगने पर जल्द पूरी होती है. इस पहाड़ी पर एक विशेष प्रकार की वनस्पति भी पायी जाती है, जिसको हाथ में लेकर लोग एक दूसरे से दोस्ती की शुरुआत करते हैं. आज यहां पर एक मनोरंजन पार्क का निर्माण कर दिया गया है जो आकर्षण का केंद्र है.

3. नवलखा मंदिर – बैद्यनाथ मंदिर से दक्षिण लगभग 1.5 किलोमीटर पर महारानी चारुशिला द्वारा निर्मित प्राचीन युगल मंदिर है, जो संगमरमर की वास्तुकला की उत्कृष्ट पहचान है. यही से कुछ दूरी पर मां कुंडेश्वरी का मंदिर है, जिसकी स्थापना बंगाल के साधकों के द्वारा किया गया है.

4. तपोवन – महर्षि बाला नंद की तपोभूमि तपोवन पहाड़ के बीच से स्वयं प्रगट हुए बजरंग बली की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. साथ ही साथ पहाड़ी में अनेक गुफाएं भी हैं जो इसे आकर्षक क्षेत्र बनाता है.

5. त्रिकुट पर्वत – बैद्यनाथ मंदिर से पूर्व लगभग 12 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत की पहाड़ियां हैं, जो महर्षि बम-बम बाबा की तपोभूमि तथा यहां स्वामी संपदानंद का आश्रम भी है. साथ ही साथ यहां पर झारखंड का पहला रोपवे भी है जो आजकल बंद है. इस पहाड़ी से सालोंभर बेल्वपत्र को लाकर बाबा को अर्पित किया जाता है.

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