Digital Arrest: देवघर-मोबाइल पर दिन में रोजाना कई बार गृह मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी के तहत डिजिटल अरेस्ट के जागरूकता संबंधी कॉलर ट्यून बजते हैं. अखबारों समेत विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से डिजिटल अरेस्ट जैसे फर्जीवाड़े की खबरें छप रही है, बावजूद पढ़े-लिखे लोग साइबर अपराधियों के बनाये भ्रमजाल में फंस जा रहे हैं. ऐसा ही मामला शुक्रवार को देवघर में फिर एक बार सामने आया. नगर थाना क्षेत्र के विलियम्स टाउन इलाके में सिलाई का काम करनेवाली पीजी तक पढ़ाई कर चुकी एक युवती को डिजिटल अरेस्ट कर मानसिक यातनाएं दी गईं. इससे वह अब भी खौफजदा है. नगर थाना क्षेत्र में रहने वाली पीड़िता वह सब करती रही, जो अपराधी कहते रहे. वीडियो कॉल पर ही वह करीब 24 घंटे तक रही. यहां तक कि सोना, खाना और पिता से बात कराकर एक बैंक एकाउंट तक की डिटेल्स शेयर कर दी. हालांकि वह ठगी का शिकार होने से बच गयी है.
शिकायत लिखते वक्त तक सहमी हुई थी युवती
शुक्रवार को शिकायत आवेदन लिखने में उसके हाथ कांप रहे थे. 24 घंटे का वह खौफनाक मंजर याद कर वह लड़की पुलिस अधिकारियों के सामने सिहर जा रही थीं. डिजिटल अरेस्ट के उन घंटों में उन्होंने वीडियो कॉल पर ही सोना, खाना, पीना आदि सब किया. पिता व भाई के दोस्त के साथ शिकायत देने शुक्रवार को साइबर थाना पहुंची उक्त लड़की को जब पुलिस पदाधिकारी ने काउंसेलिंग कर विश्वास दिलाया कि यह सब कुछ नहीं होता. साइबर अपराधियों का क्रिएट किया गया भ्रमजाल है, तब लड़की ने राहत की सांस ली. उनकी आंखों के आगे तब अंधेरा छा गया, जब मालूम हुआ कि करीब 24 घंटे तक चला अनुसंधान का नाटक साइबर अपराधियों के ठगने का तरीका था, जिसे डिजिटल अरेस्ट कहा जाता है.
एक कॉल ने कर दिया तबाह
सामान्य दिनचर्या के बीच छह फरवरी को अनजान नंबर से एक कॉल आया और उसे अवसाद में ला दिया. कॉल करने वाले ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताते हुए कहा कि फोटो और वीडियो सोशल साइट पर डालने के मामले में उस पर एफआइआर हुई है. अब आप संदिग्ध हैं. जब उसने कहा कि उन्होंने कोई फोटो और वीडियो अपलोड नहीं किया है, तब कॉल करने वाले ने अपना सीनियर बता कर दूसरे से बात कराया
फोन पर भेजा फेब्रिकेटेड अरेस्ट वारंट
कॉल पर आये दूसरे व्यक्ति ने फोन पर ही फेब्रिकेटेड केस संबंधी दस्तावेज व अरेस्ट वारंट तक भेज दिया. फिर, वीडियो कॉल पर डिजिटल अरेस्ट कर लिया. उसने कहा कि यह सीरियस केस है. इस बारे में आप किसी को नहीं बताइयेगा, वर्ना पूरे परिवार पर जान का खतरा हो जायेगा. डराया गया कि पुलिस स्टेशन से अरेस्ट वारंट आया है, इसलिए आपको घर पर ही कैद रखा जा रहा है. आपके घर की निगरानी हमारे आदमी कर रहे हैं, जिसका मोबाइल नंबर भी उसे दिया गया. आरोपित खुद को सीबीआई अधिकारी बताते हुए मुकदमे से बचने के लिए पैसे मांगने लगा. डराने के लिए वर्दी वाला फोटो भी दिखाया. गुरुवार से शुक्रवार सुबह तक उसे डिजिटल अरेस्ट में रखने की बात कही. इस दौरान लड़की काफी बैचेन रही. बड़ी हिम्मत कर उसने सुबह में अपने पिता से बात करायी, तो उन्हें भी झांसे में लेकर आरोपित ने एक बैंक एकाउंट के डिटेल्स ले लिये. इसके बाद किसी तरह मामले की जानकारी बाहर रह रहे लड़की के भाई को हुई, तो उसने अपने एक दोस्त को घर पर भेजा. उसके द्वारा समझाने के बाद शुक्रवार दोपहर में पिता के साथ उक्त लड़की मामले की शिकायत देने साइबर थाना पहुंची. अगर समय पर वह साइबर थाना नहीं आती, तो कोई गलत कदम भी उठा सकती थी. जानकारी के अनुसार लड़की के पिता रिटायर्ड टीचर हैं.
क्या है डिजिटल अरेस्ट?
भारतीय कानून में डिजिटल अरेस्ट का कोई प्रावधान ही नहीं है. यह साइबर फ्रॉड का नया तरीका है. सोशल मीडिया प्रोफाइल से जानकारी चुराकर पीड़ितों को मानसिक रूप से परेशान किया जाता है. अपराधी धमकी देते हैं कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे पीड़ित की तस्वीरें या जानकारी सार्वजनिक कर देंगे. यह अपराध न केवल मानसिक दबाव डालता है, बल्कि पीड़ित को सामाजिक बदनामी का डर भी सताता है. गिरफ्तारी का डर दिखाकर अपराधी पीड़ितों को घर में वीडियो कॉल कर अरेस्ट का झांसा देते हैं. बैकग्राउंड में सीबीआई, कस्टम व पुलिस ऑफिस का दिखाया जाता है. पीड़ित की ऑनलाइन मॉनिटरिंग पूरी अवधि में करता है. एप डाउनलोड कराकर फर्जी डिजिटल फॉर्म भरवाये जाते हैं और डमी एकाउंट बनाकर पैसों का ट्रांजेक्शन कराते हुए ठगी करते हैं.
कैसे बचें इस धोखाधड़ी से
सोशल मीडिया पर किसी भी अनजान व्यक्ति से निजी जानकारी साझा नहीं करें. किसी भी प्रकार की ठगी या धमकी मिलने पर तुरंत पुलिस या साइबर थाने से संपर्क करें. सोशल मीडिया अकाउंट्स की प्राइवेसी सुरक्षा सेटिंग्स को अपडेट करें.
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