Holi 2024: देवघर-बाबा भोलेनाथ पर गुलाल अर्पित करने के साथ ही देवनगरी में रविवार को होली प्रारंभ हो गयी. परंपरा के अनुसार, शाम चार बजे तक बाबा मंदिर को खाली कर साफ करने के बाद मंदिर का पट बंद किया गया. उसके बाद साढ़े चार बजे मंदिर का पट फिर से खोला गया. पट खुलने के बाद पुजारी अजय झा गर्भ गृह में प्रवेश किए. उन्होंने बाबा पर अर्पित फूल बेलपत्र को हटा कर मल-मल के कपड़े से साफ किया. इसके बाद मलमल के कपड़े में गुलाल भर कर उसी कपड़े से पहले मां गौरा के विग्रह पर तथा उसके बाद बाबा के शिवलिंग पर गुलाल अर्पित कर बाबा नगरी की होली प्रारंभ की. उसके बाद मंदिर में नगरवासियों की भी भीड़ उमड़ गयी. लोग एक-एक कर गर्भ गृह में प्रवेश कर बाबा पर गुलाल अर्पित कर होली शुरू करते दिखे.
भगवान विष्णु पर गुलाल अर्पित कर डोली को फगडोल के लिए किया रवाना
परंपरा के अनुसार, पुजारी अजय झा बाबा पर गुलाल अर्पित करने के बाद भीतरखंड कार्यालय स्थित राधाकृष्ण मंदिर पहुंचे. इस मंदिर में पुजारी ने सबसे पहले हरि यानी भगवान विष्णु तथा उसके बाद राधा रानी की अष्टधातु से बनी प्रतिमा पर गुलाल अर्पित किया. इसके बाद पुजारी ने भगवान हरि की प्रतिमा तथा पुजारी गुड्डू श्रृंगारी ने राधा रानी की प्रतिमा को उठा कर मंदिर परिसर में लाये. इस दौरान गुलाल चढ़ाने तथा प्रतिमा को स्पर्श करने और दर्शन करने के लिए लोग जुटे रहे. उसके बाद दोनों पुजारियों ने दोनों प्रतिमाओं को डाेली पर विराजमान कराया
शोभायात्रा के साथ निकली डोली
ढोल-नगाड़े व जय कन्हैया लाल… के जयघोष के साथ मंदिर के कर्मी अरुण राउत व राजू भंडारी की अगुवाई में डोली को बाबा की परिक्रमा कराने के बाद पश्चिम द्वार से निकाला गया. यह शोभायात्रा पश्चिम द्वार से निकलकर पाठक धर्मशाला गली होते हुए सरदार पंडा लेन, सिंह द्वार, पूरब द्वार होते हुए बड़ा बाजार के रास्ते फगडोल प्रस्थान हुई. इस दौरान मंदिर के सभी मुख्य दरवाजे तथा रास्ते में पड़ने वाले मुख्य चौराहे पर मालपुआ का विशेष भोग लगाया गया. वहीं रास्ते में डोली को देख कर भगवान पर लोगों ने दूर से ही जमकर गुलाल उड़ाते हुए जयघोष करते दिखे.
रात सवा दस बजे तक राधा संग झूलते रहे भगवान
बड़ा बाजार स्थित दोल मंत्र पर लगे झूले पर हरि के साथ राधा की प्रतिमा को रखकर राजू भंडारी, सारंगी भंडारी समेत अन्य ने रात को करीब सवा दस बजे तक झूलाते रहे. इस दौरान फगडोल पर गुलाल अर्पित कराने वाले भक्तों की भीड़ लगी रही.
हरि-हर मिलन के साथ मनाया गया बाबा बैद्यनाथ का स्थापना दिवस
देवघर: बाबा नगरी में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. यहां की होली अनोखी परंपरा के लिए भी जानी जाती है. परंपरा के अनुसार रविवार को रात 11:20 बजे बाबा मंदिर के गर्भ गृह में हरि और हर का मिलन करा कर बाबा बैद्यनाथ का स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया. सबसे पहले शाम के साढ़े चार बजे बाबा का पट खोल कर पुजारी अजय झा ने मल-मल के कपड़े से बाबा के विग्रह तथा शिवलिंग पर गुलाल अर्पित कर बाबा नगरी की होली को प्रारंभ की. उसके पश्चात पुजारी व गुड्डू श्रृंगारी मंदिर के भीतरखंड कार्यालय स्थित राधा-कृष्ण मंदिर पहुंचे. यहां पर पुजारी ने हरि यानि भगवान विष्णु और राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा पर गुलाल अर्पित किये.
दोलमंच पर होलिका दहन
परंपरा के अनुसार रात 10:40 बजे दोलमंच पर होलिका दहन के बाद भगवान हरि और राधा राना की प्रतिमा को फगडोल पर बिठा कर हरिहर मिलन के लिए प्रस्थान कराया. ढोल-नगाड़े की गूंज के बीच शोभा यात्रा के साथ डोली बाबा मंदिर परिसर पहुंची. यहां राधा रानी की प्रतिमा को डोली से उतारकर राधाकृष्ण के मंदिर में ले जाया गया. उसके बाद पुजारी अजय झा ने भगवान हरि की प्रतिमा को लेकर निकास द्वार के रास्ते बाबा मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किये. इसके बाद शिवलिंग पर भगवान हरि की प्रतिमा को रखकर हरि यानि विष्णु और हर यानि शिव का मिलन कराया. इस दौरान गर्भ में पूर्व से मौजूद भक्तों ने भारी मात्रा में गुलाल अर्पित किये.
क्या है हरि और हर का मिलन
चली आ रही परंपरा के अनुसार इस मिलन का खास महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन यानी फाल्गुनमास के पूर्णिमा तिथि के अवसर पर बाबा की भगवान विष्णु के द्वारा स्थापना हुई थी. कहा जाता है कि जब रावण शिवजी के आत्मलिंग को लंका ले जा रहे थे तो देवताओं ने तय किया था की इस आत्मलिंग को लंका किसी हाल में नहीं जाने देना है. तब भगवान विष्णु ने चरवाहे के रूप रख रावण के मूत्रवेग के दौरान सहायता के लिए हाथ में आत्मलिंग को रखा और यहां पर स्थापित कर दिया तभी से हरि यानी भगवान विष्ण हर यानी महादेव के इस मिलन की परंपरा का निर्वहण किया जा रहा है.
क्या है हरि और हर का मिलन
परंपरा के अनुसार इस मिलन का खास महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन यानी फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के अवसर पर बाबा की शिवलिंग की स्थापना भगवान विष्णु के द्वारा की गयी थी. कहा जाता है कि जब रावण शिवजी के आत्मलिंग को लंका ले जा रहे थे, तो देवताओं ने तय किया था कि इस आत्मलिंग को लंका किसी हाल में नहीं जाने देना है. तब भगवान विष्णु ने चरवाहे के रूप में रावण के मूत्रवेग के दौरान सहायता के लिए हाथ में आत्मलिंग को रखा और यहां पर स्थापित कर दिया. तभी से हरि यानी भगवान विष्णु और हर यानी महादेव के इस मिलन की परंपरा का निर्वहण किया जा रहा है.