नालिनीकांत :
गहरायी से देखे तो ‘सुनो द्रौपदी ! शस्त्र उठा लो…’ कविता में मानव तस्करी स्त्री अत्याचार आदि के कारण एवं निवारण दोनों का उल्लेख है. किशोरियों एवं स्त्री को सबल बनाकर उन्हें उन पर किये गये अत्याचार का प्रतिकार करने का कौशल विकसित करना होगा. खैर, यह तो लंबी लड़ाई है. फिलहाल, मानव तस्करी में विविध आयामों पर चर्चा करना चाहेंगे.
ईंट भट्ठा उद्योग मानव तस्करी का हब है: करीब दो दशक पूर्व का एक वाकया है. मैं उन दिनों पटना में नौकरी कर रहा था. मेरे कॉलेज के दिनों के मित्र जो उन दिनों बीबीसी के लिए काम कर रहे थे, रिपोर्टिंग के लिए पटना आये. स्वाभाविक रूप से मेरे घर में रुके. जो स्टोरी को कवर करने आये थे, वह उन्हें रास नहीं आया. उन्होंने मुझे सामाजिक मुद्दों पर स्टोरी देने को कहा. मेरे पास भी कोई तत्कालिक स्टोरी नहीं थी.
अंतत: हमलोगों ने राजगीर एवं नालंदा जाने की योजना बनायी. पटना से आगे, दीदारगंज के पास, जहां यक्षणी की मूर्ति मिली थी, ईंट भट्ठा के सामने एक ढावा में चाय पीने दोनों मित्र बैठे. बातचीत के क्रम में दुकानदार से ईंट भट्ठा के बारे में चर्चा हुई. दुकानदार ने त्वरित रूप से कहा कि यह एक मिनी वेश्यालय है. जिज्ञासावश हमलोग ईंट भट्ठा के परिसर में प्रवेश किये. नब्बे प्रतिशत कामगार महिला एवं किशोरियां झारखंडी थी. सभी के दैनिक मजदूरी के बजाय ठेके पर काम दिया जाता था.
उनके रहने की व्यवस्था नारकीय थी. वाकयदा दलालों के माध्यम से उन्हें ईंट भठ्ठा तक पहुंचाया जाता है. ईंट भट्ठा परिसर में देसी शराब की भट्ठी भी देखने को मिली. जिस तरह सेक्स वर्कर को नियंत्रित करने हेतु वेश्यालय में मौसी रखी जाती है, यहां भी एक व्यस्क मौसी मिली. गर्भपात कराने हेतु डाॅक्टर भी एखा जाता है. मेरे एक संबंधी को संतान नहीं था, वे किसी संतान को गोद लेना चाहते थे. मैंने मौसी से कहा कि मुझे एक बच्चे को गोद लेना है. उनका सहज उत्तर था कि नौ महीना का वक्त दीजिए.
बाद में मानवी ने ईंट-भट्ठा पर एक विस्तृत रपट भी तैयार किया. रपट तैयार करने के क्रम में हम सब ने बिहार के बक्सर से लेकर बंगाल के धुलियान तक के ईंट-भट्ठा का सर्वेक्षण किया. एक सामान्य आकलन के अनुसार, तीन हजार से ज्यादा ईंट-भट्ठा गंगा की दक्षिणी तट पर होगा. एक ईंट-भट्ठा में करीबन दो सौ के करीब झारखंडी बच्चियां कार्यरत होती हैं. आप स्वयं व्यापक स्तर पर चल रहे मानव तस्करी का अंदाजा लगा सकते हैं. मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान का बिहार के कुछ ईंट-भट्ठा में झारखंडी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना घटित हुई थी. स्वयं मधु कोड़ा बिहार के घटनास्थल पर गये थे. परन्तु आज भी स्थिति यथावत है.
असंगठित यौन व्यापार एवं मानव तस्करी: मैदानी क्षेत्रों-बिहार, उत्तरप्रदेश, बंगाल आदि में संगठित रेड लाइट एटिया है. दूसरी ओर झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहूल्य में क्षेत्रों संगठित रेड लाइट एरिया का प्रचलन नहीं है. अत: इन क्षेत्रों में कोई भी सुधारात्मक प्रयास करना अपेक्षाकृत मुश्किल है. मानव तस्करों द्वारा दक्षिण के राज्यों एवं दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में ले जाने की नयी साजिश हाल के वर्षों में शुरू हुई है.
अब इस क्षेत्र के स्त्री-पुरुषाें को दक्षिण के राज्य- तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश आदि के राज्यों के कुटिर उद्योगों में मानव तस्करों द्वारा ले जाया जाता है. कार्यक्षेत्र में इसको बंधुआ मजदूर बना कर दिन- रात श्रम कराया जाता है. उचित मजदूरी नहीं मिलता है और घर जाने या घर के लोगों से संपर्क करने की छूट नहीं होती है. विगत कुछ वर्षों में इस तरह की घटना काफी प्रकाश में आया है. राज्य सरकार की पहल के बाद ही ये लोग बंधन मुक्त हो पाते हैं.
संभावित समाधान: आवश्यकता है कि किशोरियों की शिक्षा को बढ़ावा देना, किशोरी-मित्र गांव का निर्माण करना, समाज को जागरूक करना, लाभकारी योजनाओं को ससमय एवं इमानदारी से क्रियान्वित करना, स्वशासन से जुड़ी संस्थाओं का सबल बनाना, पुलिस प्रशासन की सक्रियता को बढाना आदि.
छद्म विवाह एवं मानव तस्करी: छद्म विवाह एवं मानव तस्करी का अटूट रिश्ता है. ज्ञातव्य है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बनारस के समीप के क्षेत्र, हरियाणा राज्य में लड़कियों का लिंगानुपात काफी कम है. उस क्षेत्र के दलाल दुमका जिला आते हैं और इनका नेटवर्क सुदूर क्षेत्र के गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रभावशाली है. अभिभावकों को पैसा देकर बकायदा विवाह के नाम पर लड़कियों की खरीदारी होती है. पुनः इन बच्चियों को उपरोक्त क्षेत्रों में बेच दिया जाता है.
छद्म विवाह का शिकार मात्र आदिवासी बच्चियां ही नहीं होती हैं. इसमें गैर-आदिवासी एवं पुस्लिम बच्चियां भी शामिल हैं. छद्म शादी के बाद इनको वस्तुत: बंधुआ मजदूर बना दिया जाता है. इनकी स्थिति मुफ्त के मजदूर-सी होती है और साथ ही पूरे परिवार का मनोरंजन का साधन बन जाती है. इनके साथ यौन अत्याचार तो आम बात मानी जाती है. छद्म विवाह के नाम पर लड़कियों की खरीद-बिक्री मात्र ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं होती है, अपितु दुमका शहर के दलित एवं गरीब मुस्लिम मोहल्लों में भी होती है.
गांव की कमजोर होती स्वशासन संस्थाएं व मानव व्यापार:
विगत दशकों में दुमका जिला के गांवों में स्वशासन से जुड़ी संस्थाएं – ग्राम प्रधान एवं उनके सहायक जैसे योग मांझी, नायकी आदि लगातार कमजोर होते जा रहे हैं. पहले योग मांझी गांव की किशोर-किशोरियों के आचरण की निगरानी करते थे. उसके निर्देशों का सब पालन करते थे. परंतु अब ये संस्थाएं अप्रांसगिक होती जा रही हैं. आदिवासी समूह में लीव इन रिलेशनशिप एवं शादी विच्छेद की काफी छूट है. ऐसी स्थिति सबसे ज्यादा प्रताड़ना महिलाओं को ही सहना पड़ता है. पति परित्यक्त महिलाएं एवं उनके बच्चे मानत व्यापारियों की सहज शिकार बन जाती हैं. ऐसी महिलाएं दुमका जिला के अधिकांश गांवों में मिल जायेंगी.
जब भी कभी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों व गोष्ठियों में भाग लेने का मौका मिलता है, कुछ न कुछ पुराने इष्ट- मित्र मिल ही जाते हैं. विभिन्न मुद्दा पर चर्चा के अलावा हम सब आपस में पारिपारिक सुख-दुख भी बांटते हैं. एक समस्या की चर्चा हर सेमिनार में सुनने को आता है. ” घर में सभी कामकाजी लोग होने के कारण, दिन में घर में वृद्ध माता-पिता एवं छोटे बच्चे रहते हैं. अत: मुझसे घर में पूर्णकालीन काम करनेवाली किशोरी या नवयुवती उपलब्ध कराने का निवेदन करते हैं.
उनके मन में यह परिकल्पना है कि झारखंडी किशोरी, नवयुवती के भोलीभाली, इमानदार एवं सहज उपलब्ध है. बतौर झारखंडी स्वयं को अपमानित महसूस करता हूं, परंतु लंबी मित्रता की वजह से कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाता है. दिनभर वृद्ध लोग टीवी पर धार्मिक सीरियल देखते हैं और बच्चे गेम खेलते हैं. ऐसी कामकाजी आदिवासी स्त्री का इन दोनों चीजें में कोई रूचि नहीं होता है. अक्सर ऐसी कामकाजी किशोरियां या युवतियां अपार्टमेंट परिसर में कार्यरत सुरक्षा गार्ड या सफाईकर्मियों से मित्रवत हो जाती हैं. प्रेमजाल में फंस कर कई महिलाएं व किशोरी गर्भवती तक भी हो जातीं हैं.
इन घटनाओं की जानकारी होते ही बदनामी से बचने के लिए मालिक तत्काल नौकरी से निकाल देता है. जीवन में ऐसी दो-तीन घटनाओं के बाद ऐसी महिलाएं सहज ही मानव तस्करी की शिकार बन जाती हैं. कुछ दशक पूर्व स्वनियोजन के नाम कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी झारखंड से किशोरियों एवं युवतियों को बड़े शहरों में ले जाया करती थीं.
सुनो द्रौपदी ! शस्त्र उठा लो, अब गोविंद न आयेंगे
छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्युत बिठाये बैठे शकुनि
मस्तक सब बिक जायेंगे.