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Dhanbad Lok Sabha Election|धनबाद, संजीव झा : मतदाताओं की संख्या की दृष्टिकोण से झारखंड के सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र में इस बार प्रत्याशी का चेहरा बड़ा फैक्टर होगा. हालांकि, आंकड़ा के लिहाजा से भाजपा एडवेंटेज पॉजिशन में है. लेकिन, इंडिया गठबंधन के पक्ष में भी मतदाताओं का एक वर्ग गोलबंद होता जा रहा है.
धनबाद लोकसभा सीट पर इस बार रोचक हो सकता है मुकाबला
बहुमत मतदाता खामौश हैं. यही खामोशी यहां प्रमुख गठबंधन दलों के प्रत्याशियों के लिए टेंशन का सवब बना हुआ है. यहां मुकाबला रोचक हो सकता है. यहां शहरी से ज्यादा ग्रामीण मतदाता हमेशा भारी रहे हैं. अगर शहरी क्षेत्र के मतदाता ज्यादा संख्या में निकलते हैं. तो कांटे का टक्कर तय है.
1952 के पहले चुनाव में ही हुआ धनबाद लोकसभा सीट का गठन
धनबाद लोकसभा क्षेत्र का गठन आजादी के बाद हुए पहले चुनाव के दौरान ही हुआ. यहां पहली बार वर्ष 1952 में यहां चुनाव हुआ. इस लोकसभा सीट में कुल 2539 बूथ हैं. मतदाताओं की संख्या के हिसाब से यह झारखंड राज्य का सबसे बड़ा लोकसभा सीट है.
धनबाद संसदीय क्षेत्र का इतिहास
मजदूर बहुल धनबाद के संसदीय इतिहास में पहले मजदूर नेताओं की खूब चलती थी. जिनके साथ मजदूर होते थे. वही चुनाव में बाजी मारते थे. यहां से तीन बार सांसद रहे एके राय, राम नारायण शर्मा, शंकर दयाल सिंह, चंद्रशेखर उर्फ ददई दुबे की गिनती कद्दावर मजदूर नेताओं में होती थी. लेकिन, भाजपा के मजबूत होने के बाद यह धार कुंद पड़ गयी.
भाजपा के टिकट पर चार बार चुनाव जीत कर सांसद बनने वालीं प्रोफेसर रीता वर्मा का मजदूर राजनीति से कभी कोई लेना-देना नहीं रहा. इसी तरह पिछले तीन बार से यहां के सांसद पशुपति नाथ सिंह भी हमेशा मजदूर राजनीति से अलग रहे. अब राष्ट्रीय माहौल के हिसाब से यहां वोटिंग होती है.
90 के दशक में यहां मजबूत हुई भारतीय जनता पार्टी
धनबाद लोकसभा सीट के लिए हुए पहले तीन चुनाव में यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी हुए. चौथे चुनाव में यहां से रानी ललिता राजलक्ष्मी एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी हुई. फिर कांग्रेस जीती. जेपी आंदोलन के बाद वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में मासस के संस्थापक एके राय पहली बार चुनाव जीते. वह तीन बार यहां से सांसद रहे. हालांकि बीच में वर्ष 1984 में कांग्रेस की लहर में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा.
सहानुभूति लहर पर सवार होकर जीतीं रीता वर्मा
वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से शहीद एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी रीता वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा. सहानुभूति लहर पर सवार हो कर श्रीमती वर्मा ने पहली बार यहां भाजपा को विजयी दिलायीं. प्रोफेसर रीता वर्मा लगातार चार बार यहां से सांसद बनीं. जो कि अब तक एक रिकॉर्ड है.
2004 में कांग्रेस के ददई दुबे ने रोका भाजपा का विजय रथ
वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस के चंद्रशेखर उर्फ ददई दुबे ने भाजपा के विजयी रथ को रोका. फिर वर्ष 2009 के चुनाव में भाजपा ने यहां से पूर्व मंत्री पशुपति नाथ सिंह को चुनाव मैदान में उतारा. श्री सिंह ने भाजपा की इस सीट पर वापसी करायी. लगातार तीन चुनाव से जीत रहे हैं. 90 के दशक में भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ बनानी शुरू की. वह अब भी बरकरार है.
छह में से पांच विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा
धनबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा क्षेत्र धनबाद, झरिया, सिंदरी, निरसा, बोकारो एवं चंदनकियारी है. इसमें से झरिया को छोड़ सभी पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है. यहां टिकट के लिए सबसे ज्यादा मारामारी भी भाजपा में ही है. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी पशुपति नाथ सिंह को यहां 66 फीसदी से भी अधिक मत मिला. इस गेप को पाटना किसी भी दल के लिए बड़ी चुनौती होगी.
धनबाद से अब तक के सांसद
सांसद का नाम | कब-कब जीते चुनाव | किस पार्टी से जीते |
पीसी बोस | 1952, 1957 | कांग्रेस |
पीआर चक्रवर्ती | 1962 | कांग्रेस |
रानी ललिता राजलक्ष्मी | 1967 | निर्दलीय |
एके राय | 1977, 1980, 1989 | मासस |
शंकर दयाल सिंह | 1984 | कांग्रेस |
प्रो रीता वर्मा | 1991, 1996, 1998, 1999 | भाजपा |
चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे | 2004 | कांग्रेस |
पशुपति नाथ सिंह | 2009, 2014, 2019 | भाजपा |
मतदाताओं की संख्या
कुल मतदाता | 22,40,276 |
महिला | 10,66,137 |
पुरुष | 11,740,67 |
थर्ड जेंडर | 72 |
2019 के लोकसभा चुनाव में किसको कितने मत मिले
उम्मीदवार का नाम | पार्टी का नाम | प्राप्त मत | मत प्रतिशत |
पशुपति नाथ सिंह | बीजेपी | 8,27,234 | 66.03 |
कीर्ति आजाद | कांग्रेस | 3,41,040 | 27.22 |
राजेश कुमार सिंह | निर्दलीय | 11,110 | 0.89 |
लक्ष्मी देवी | निर्दलीय | 10,876 | 0.87 |
सिद्धार्थ गौतम | निर्दलीय | 9,492 | 0.76 |
माधवी सिंह | 8,235 | 0.66 | |
सुधीर कुमार महतो | 7,495 | 0.60 | |
नोटा | 4,346 | 0.35 |
2014 के लोकसभा चुनाव में किसको कितने मत मिले
उम्मीदवार का नाम | पार्टी का नाम | प्राप्त मत | मत प्रतिशत |
पशुपति नाथ सिंह | बीजेपी | 5,43,491 | 47.51 |
अजय कुमार दुबे | कांग्रेस | 2,50,537 | 21.90 |
आनंद महतो | मासस | 1,10,185 | 9.63 |
समरेश सिंह | जेवीएम | 90,926 | 7.95 |
चंद्रशेखर दुबे | टीएमसी | 29,937 | 2.62 |
हेमलता एस मोहन | आजसू | 21,277 | 1.86 |
नोटा | 7675 | 0.67 |
धनबाद लोकसभा क्षेत्र में कौन से मुद्दे हैं हावी
देश में लोकसभा चुनाव को लेकर माहौल गरम है. ज्यादातर दल राष्ट्रीय मुद्दों पर लोगों से समर्थन मांग रहे हैं, वादे व दावे कर रहे हैं, पर स्थानीय मुद्दें भी पीछा नहीं छोड़ रहे है. धनबाद लोकसभा क्षेत्र में भी कुछ यही स्थिति है. इस लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा है. इन सबके अलग-अलग मुद्दे हैं. हर जगह अलग मानस और अलग सवाल हैं. ऐसी स्थिति में प्रत्याशियों को किन सवालों से जूझना पड़ रहा है, कहां कौन सी समस्या है, पढ़े प्रभात खबर में पड़ताल करती हर विधान सभा की रिपोर्ट. पहली कड़ी में प्रस्तुत है धनबाद विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं व मुद्दे.
सब पूछ रहे : कब उड़ेगा जहाज
राजस्व देने के मामले में झारखंड में धनबाद टॉप स्थान पर रहता है. यहां बीसीसीएल है, तो हर्ल जैसे कई बड़े उद्योग भी. संस्थाओं की बात करें, तो डीजीएमएस, सिंफर, सीएमपीएफ, आइआइटी आइएसएम की धाक है. लेकिन धनबाद में आज तक एयरपोर्ट नहीं बन पाया. 1980 के दशक में धनबाद से पटना के बीच एयरसेवा शुरू हुई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से बंद हो गयी. धीरे-धीरे यहां का एयरपोर्ट हेलीपैड बन कर रह गया. नये एयरपोर्ट के लिए लगातार आंदोलन हुए. आश्वासन भी मिला, पर कोई निदान नहीं निकला. एयरपोर्ट नहीं रहने के कारण यहां नये निवेश नहीं आ रहे. बाहर से डॉक्टर व शिक्षाविद भी यहां नहीं आना चाहते. इस कारण इस चुनाव में यह यक्ष प्रश्न सबके सामने खड़ा है.
कमाई में अव्वल, सुविधा के मामले में गरीब है धनबाद रेल मंडल
धनबाद रेल मंडल हर वर्ष पूरे देश में आय के मामले में टॉप थ्री में रहता है, लेकिन धनबाद मुख्यालय सहित यहां के बड़े स्टेशनों से यात्री ट्रेनों की संख्या काफी कम है. पिछले तीन दशक के दौरान धनबाद को जितनी नयी ट्रेनें मिलीं, उनमें से अधिककांश छीन ली गयीं. आज भी धनबाद से नयी दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद सहित कई बड़े शहरों के लिए कोई ट्रेन नहीं चलती. एक-दो ट्रेनें यहां से गुजरती जरूर हैं, लेकिन उनमें भी कोटा नहीं के बराबर है. नयी ट्रेनें और धनबाद रेल मंडल को जोन बनाने की मांग से भी जूझना होगा सभी प्रत्याशियों को.
सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल पर भी सवाल
धनबाद जिले की आबादी 30 लाख से अधिक है. इतनी बड़ी आबादी के लिए एक मात्र बड़ा सरकारी अस्पताल एसएनएमएमसीएच है. इसमें भी न्यूरो व कॉर्डियो के पूर्णकालीन डॉक्टर नहीं हैं. एक सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का भवन तो बना, लेकिन उसके लिए दक्ष चिकित्सक नहीं आये, इसलिए यहां से मशीनें देश के दूसरे राज्यों को भेज दी गयी. अब हालत यह है कि प्रतिदिन यहां से सैकड़ों मरीज इलाज के लिए दूसरे राज्य जाते हैं. अब सब पूछ रहे हैं सवाल : सरकारी व्यवस्था में कब होगा बेहतर इलाज.
उच्च शिक्षा के लिए हो रहा पलायन
धनबाद विधानसभा क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए सरकारी व निजी स्तर पर भी कोई व्यवस्था नहीं है. एक आइआइटी आइएसएम, वीआइटी, सिंदरी व एसएनएमएमसीएच है, लेकिन इसमें बहुत ही कम संख्या में स्थानीय छात्रों का चयन हो पाता है. पर हर वर्ष इंटर की परीक्षा पास कर जो विद्यार्थी अन्य व्यावसायिक कोर्स में जाना चाहते हैं, उनके लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है. इसलिए अपने बच्चों को अपने से दूर करने को मजबूर हैं लोग.
जाम की समस्या है आम
धनबाद में बढ़ रहे वाहन, सड़कें व फ्लाईओवर हैं कम
आर्थिक रूप से समृद्ध होने के कारण धनबाद में रोज वाहनों की संख्या बढ़ रही है. पर इसकी तुलना में सड़कों व फ्लाइओवर की सुविधा नहीं बढ़ी. यहां दो-दो फ्लाइओवर बनाने की बात हुई थी, पर आज तक यह संचिकाओं में ही बंद है. गया पुल चौड़ीकरण का मुद्दा भी फंसा हुआ है. मिलेनियम सिटी होने के बाद भी ट्रैफिक लाइट तक नहीं है. इस वजह से रोज जाम की बात है आम. एफसीआइएल की नयी आवास नीति, हर्ल में रोजगार होगा मुख्य चुनावी मुद्दा.
सिंदरी : दुकान नीति, बिजली, शौचालय और विस्थापन पर सवाल
सिंदरी विधानसभा क्षेत्र में इस बार लोकसभा चुनाव में सिंदरी शहर के एफसीआइएल आवासों में रह रहे लोगों की सबसे बड़ी समस्या प्रबंधन की आवास नीति है. एफसीआइएल की वर्तमान आवास नीति को सिंदरी की जनता ने सिरे से नकार दिया है. इसको नकारते हुए लगभग तीन हजार आवासों में रह रहे लोगों में मात्र 217 लोगों ने नयी नीति के तहत 30 अप्रैल 2024 तक आवेदन दिया था.
वैसे तो एफसीआइएल प्रबंधन की आवास नीति में जल्द बदलाव, दुकानों और झुग्गी झोपड़ी की समस्या, युवाओं को रोजगार, स्ट्रीट लाइट, मॉडरेट शौचालय, सिंदरी बस्ती में विस्थापन प्रमाणपत्र सहित कई मुद्दे शामिल हैं. सिंदरी के फुटपाथ दुकानदारों और झुग्गी झोपड़ियों में रह रहे लोगों को हटाने की तैयारी भी चल रही है. यह मुद्दा भी बड़ी समस्याओं में शामिल है और सिंदरी के फुटपाथ दुकानदारों और झुग्गी झोपड़ी में रहनेवाले भी अपने रहनुमा की तलाश में मतदान करने की तैयारी कर चुकने की बात बता रहे हैं.
सिंदरी के युवाओं को अब तक नहीं मिली रोजगार की गारंटी
वर्ष 2018 में सिंदरी में हर्ल सिंदरी प्रोजेक्ट का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इसका उद्घाटन एक मार्च को प्रधानमंत्री ने ही किया. इसके साथ ही एसीसी सीमेंट फैक्ट्री में नये प्रोजेक्ट और टासरा प्रोजेक्ट के आने के बाद भी सिंदरी के युवाओं के हाथ खाली हैं. सिंदरी के युवाओं को रोजगार की गारंटी अभी तक नहीं मिल सकी है.
निरसा : बंद उद्योगों को खुलवाना एवं रोजगार बड़ा मुद्दा
धनबाद में कभी लालगढ़ के रूप में मशहूर निरसा विधानसभा क्षेत्र में रोजगार बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है. कभी इस इलाका में उद्योगों का जाल था. हार्ड कोक एवं सॉफ्ट कोक इंडस्ट्री में कोयला व्यवसायियों ने भारी निवेश किया था. लेकिन, 80 के दशक में यहां राजनीतिक अशांति बढ़ने के बाद धीरे-धीरे उद्योग बंद होने लगे. यहां से हर वर्ष रोजगार की तलाश में लोग बाहर पलायन कर रहे हैं. यहां बंगला भाषी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. बंग भाषियों का जिन्हें समर्थन मिलेगा. वह दल फायदा में रहेगा. यह क्षेत्र मासस का गढ़ माना जाता रहा है. यहां मासस प्रत्याशी दोनों बड़े दलों के प्रत्याशी को टशन दे सकते हैं.
झरिया : प्रदूषण, विस्थापन बड़ी समस्या
झरिया विधानसभा क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां कांग्रेस का कब्जा है. इस सीट पर सबसे बड़ी समस्या भूमिगत आग से विस्थापन एवं पुनर्वास की है. लगातार घर उजड़ रहे हैं. नये लोग बहुत कम आ रहे हैं. यहां से पिछले एक दशक में बड़ी संख्या में लोग दूसरे स्थानों पर शिफ्ट किये हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में यूपी, बिहार के लोगों का खासा प्रभाव है. दो राजनीतिक घरानों के बीच यहां वर्चस्व की लड़ाई होती रही है. झरिया में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है. यहां के लोग प्रदूषण के कारण हमेशा बीमार रहते हैं. श्वांस की समस्या होते रहती है. लेकिन, किसी भी चुनाव में यह मुद्दा नहीं बन पाता है. राष्ट्रीय एवं राज्य के मुद्दे पर ही लोग वोट करते आये हैं.
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