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10 साल से फाइलों में अटका एलिफेंट कॉरिडोर का प्रस्ताव, जान-माल को नुकसान पहुंचा रहे हाथी

असुरक्षित हैं सीमाई इलाकों के ग्रामीण, आये दिन मिलती है हाथियों के उत्पात मचाने की जानकारी

गिरिडीह, दुमका व जामताड़ा से सटे जिले के ग्रामीण इलाकों में अक्सर हाथियों के उत्पात की खबरें मिलती रहती हैं. खासकर टुंडी, पूर्वी टुंडी, तोपचांची व आस-पास के इलाकों में साल के लगभग छह माह हाथियों के आने और उत्पात मचाने की सूचनाएं मिलती हैं. इसकी चपेट में आकर अब तक कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं संपत्ति व फसलों का भी भारी नुकसान हुआ है. किसी तरह वन विभाग और ग्रामीण मिलकर हाथियों को गांव से भगा पाते हैं. वहीं हाथियों को गांव में घुसने से रोकने और उनके सुरक्षित आवागमन को लेकर प्रस्तावित एलिफेंट कॉरिडोर योजना अब भी फाइलों में ही सिमटी है. यदि इस योजना को धरातल पर उतारा जाता तो कई लोगों को जान बच सकती थी.

तीन हजार हेक्टेयर में कॉरिडोर बनाने की थी योजना :

गांवों में हाथियों का प्रवेश रोकने व हाथियों को सुरक्षित स्थान देने के लिए साल 2013-14 में तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले टुंडी पहाड़ में हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना धनबाद वन प्रमंडल ने बनायी थी. इसके लिए नौ करोड़ 55 लाख रुपये का बजट बनाया गया था. प्रस्ताव तैयार कर मुख्यालय को भेजा गया. लेकिन योजना से संबंधित प्रस्ताव फाइलों में ही दबकर रह गयी.

10 साल में तीन बार भेजा गया प्रस्ताव :

हाथियों से होने वाले नुकसान को ध्यान में रख धनबाद वन प्रमंडल की ओर से एलिफेंट कॉरिडोर बनाने के लिए राज्य व केंद्र सरकार को तीन बार प्रस्ताव तैयार कर भेजा गया. पहला प्रस्ताव 2013-14 में भेजा गया था. इसके बाद 2018-19 व अंतिम बार 2023, दिसंबर माह में भेजा गया. वन विभाग द्वारा भेजे प्रस्ताव में हाथियों के झुंड से लगातार होने वाले जान-माल के नुकसान का हवाला दिया गया है.

धनबाद से दुमका तक विचरण करता है हाथियों का झुंड :

टुंडी-पूर्वी टुंडी, गिरिडीह, जामताड़ा व दुमका के लोगों के लिए जंगली हाथी हमेशा से एक बड़ी समस्या रहे हैं. स्थायी ठिकाना नहीं होने के कारण जंगली हाथियों का झुंड बराबर इन्हीं क्षेत्रों में विचरण करता है. जंगली हाथियों के प्रवेश करने का समय खास कर खेतों में धान पकने से लेकर खलिहानों में रखने तक का होता है. इस दौरान हाथी हर वर्ष किसानों के खेतों में लगी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं.

साल के छह माह टुंडी व तोपचांची में रहता है झुंड :

हाथियों का झुंड सबसे अधिक समय तक टुंडी व तोपचांची के जंगलों व पहाड़ों में रहता है. सालभर में छह माह यह झुंड टुंडी, पूर्वी टुंडी में ही रहता है. कभी-कभी तोपचांची के जंगलों में भी हाथी पहुंच जाते हैं. टुंडी पहाड़ी पर कुछ समय बिताने के बाद झुंड पूर्वी टुंडी पहुंचता है. यहां से झिलुआ पहाड़ होते हुए बंगाल में कुछ समय रुकने के बाद जामताड़ा की ओर रुख करता है. वहां से दुमका और फिर गिरिडीह व पीरटांड़ होते हुए वापस टुंडी क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है.

झुंड को खदेड़ पल्ला झाड़ लेता है वन विभाग :

पिछले 10-12 सालों से हाथियों का झुंड तीन जिलों में घूम रहा है. धनबाद से खदेड़ने पर झुंड जामताड़ा और वहां से निकालने पर गिरिडीह पहुंच जाता है. हाथियों को एक से दूसरे जिले में भेजकर वन विभाग अपना पल्ला झाड़ लेती है.

क्यों जरूरी है एलिफेंट कॉरिडोर :

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर धरती पर हाथियों की आबादी को बनाये रखना है, तो उनके प्राकृतिक आवास और कॉरिडोर को बचाना बेहद जरूरी है. एक जंगल से दूसरे जंगल तक हाथियों के सुरक्षित आने-जाने के लिए एलिफेंट कॉरिडोर बनाया जाता है. देश भर के 22 राज्यों में 27 एलिफेंट कॉरिडोर हैं, लेकिन झारखंड में एक भी एलिफेंट कॉरिडोर नहीं है. करीब आठ साल पहले पारसनाथ पहाड़ और उससे सटे वन क्षेत्र को हाथियों का कॉरिडोर चिह्नित करते हुए राज्य मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया था. आज तक उसपर कोई पहल नहीं हुई.

वर्जन

हाथियों के उत्पात को देखते हुए हाल ही में राज्य व केंद्र सरकार को एलिफेंट कॉरिडोर के लिए फिर से प्रस्ताव भेजा गया है. इसमें हाल के कुछ वर्षों में झुंड के कारण ग्रामीण इलाकों में हुई जानमाल की क्षति से संबंधित जानकारी दी गई है. खुद भी अपने स्तर से भेजे गए प्रस्ताव की जानकारी ले रहे हैं. जल्द ही कॉरिडोर से संबंधित दिशा-निर्देश मिलने की उम्मीद है.

विकास पालीवाल

, डीएफओ

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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