धनबाद संसदीय क्षेत्र भगवा का गढ़ रहा है. साल 2019 के विधानसभा चुनावों में छह निर्वाचन क्षेत्रों में से पांच पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. निरसा विधानसभा क्षेत्र वामपंथियों का गढ़ समझा जाता था. वहां भी कमल खिला था. इस बार के विधानसभा चुनावों में भाजपा को काफी निराशा हाथ लगी. धनबाद संसदीय क्षेत्र में उसे चार सीटें गंवानी पड़ी. चंदनकियारी, बोकारो, सिंदरी के अलावा सिंदरी सीट भाजपा के हाथ से निकल गयी. अब पार्टी हाइकमान हार के कारणों पर मंथन कर रहा है. स्थानीय स्तर पर भी समीक्षा हो रही है. पार्टी की हार के आखिर क्या कारण रहे? चुनावी रणनीति में कहां कमी रह गयी? आखिर कहां चूक हुई? इन सब मुद्दों पर धनबाद के पूर्व सांसद पीएन सिंह से प्रभात खबर के मुख्य संवाददाता सुधीर सिन्हा ने बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश.
निरसा, सिंदरी, बोकारो और चंदनकियारी सीट गंवाने का क्या कारण है?
उम्मीदवार ऊहापोह में थे. उनको लगता था कि पीएन सिंह को बुलायेंगे, तो कहीं सांसद नाराज तो नहीं हो जायेंगे. स्थानीय स्तर पर तालमेल की भी कमी थी. उड़नखटोला से नेता आये, भाषण दिये और चले गये. लंबे समय से राजनीति में हूं. मेरी उपयोगिता पार्टी ने नहीं ली. मैं स्वयं कार्यक्रम में नहीं जाना चाहा, क्योंकि अगर खुद जाता, तो तरह-तरह की बातें होतीं. कुछ लोग कहते, हराने आये तो कुछ लोग कहते जिताने आये हैं. हालांकि उम्मीदवारों के बुलाने पर गया. विधायक राज सिन्हा के नामांकन में गया था. निरसा की निवर्तमान विधायक अर्पणा सेनगुप्ता के कहने पर दो-तीन सभाएं कीं. झरिया विधायक रागिनी सिंह के कहने पर चिराग पासवान के कार्यक्रम में शामिल हुआ.
बहुत कम अंतर से पार्टी तीन सीटें हारीं. आपके हिसाब से कहां चूक हुई?
निरसा, सिंदरी व बोकारो विधानसभा सीट पर बहुत ही कम मार्जिन से भाजपा की हार हुई है. तीनों सीटों को बचाया जा सकता था. चंदनकियारी की जनता आक्रोशित थी, इसलिए वहां हार-जीत का अंतर अधिक था. स्थानीय स्तर पर अलग से रणनीति बनती, तो तीन सीटें निकल सकती थीं. ये तीनों उम्मीदवार भाग्य भरोसे चुनाव लड़ रहे थे. बाहर से नेता आये, भाषण दिये और चले गये.
क्या प्रदेश स्तर पर आपको विशेष कार्य सौंपा गया था?
प्रदेश स्तर पर हमको किसी क्षेत्र विशेष में जाने के लिए नहीं कहा गया था. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान व असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्वा सरमा के कार्यक्रम में भी मुझे शामिल नहीं किया गया. यही नहीं, स्थानीय स्तर पर चुनाव के दौरान कोई रणनीतिक राय नहीं ली गयी.
निरसा व सिंदरी सीट हारने के क्या कारण रहे?
निरसा विधानसभा चुनाव में पिछली बार जेएमएम, एमसीसी व बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इस बार जेएमएम व माले (पुरानी एमसीसी) ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा. जेएलकेएम के प्रत्याशी अशोक मंडल थे. लेकिन कुछ खास वोट नहीं ला पाये. बीजेपी का वोट बढ़ा, लेकिन माले व जेएमएम के गठबंधन के कारण यह सीट गंवानी पड़ी. सिंदरी में भी गठबंधन के कारण सीट गंवानी पड़ी.
पिछली बार पांच, इस बार मात्र दो सीटें. क्या वजह रही :
जब मैं सांसद था, हर विधानसभा क्षेत्र के लिए दो से तीन दिन देता था. हर पंचायत तक पहुंचकर चुनाव अभियान में शामिल होता था. इस बार स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों को सहयोग नहीं मिला.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है