धनबाद.
संसार में रहना गलत नहीं है उसे अपना मान लेना गलत है. संसार को कितना भी पकड़ने का प्रयास करो एक दिन छूटेगा ही. संसार में हमारे संबंध स्थायी नहीं है, परमात्मा से हमारा संबंध स्थायी होता है. जीव को उसके किये गये कर्म का फल मिलना ही चाहिए. इसके लिए स्वर्ग, नरक की व्यवस्था है. हमारे कर्मों का फल कब कहां, कितना और किस रूप में मिलेगा, यह जानना हमारे वश में नहीं है. जब जीवात्मा शरीर से बाहर निकलती है तब शरीर द्वारा किये कर्मों का फल लेकर निकलती है. यमराज के पास सबके कर्म का रिकार्ड होता है. उसी अनुसार फल मिलता है. भगवान का नाम समस्त पाप को नाश करनेवाला अबोध उपाय है. उक्त बातें श्री हरि सत्संग समिति द्वारा न्यू टाउन हॉल में आयोजित भागवत भक्ति कथा के दूसरे दिन अयोध्या से आये श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष सह कथा वाचक स्वामी गोविंद देव महाराज ने कही.सच्चे पश्चाताप से ही समाप्त होती है पाप की वृत्ति
अजामील की कथा सुनाते हुए स्वामी गोविंद देव महाराज ने कहा कि अजामील ने गणिका को वश में करने के लिए चोरी की, सुशील पत्नी को घर से निकाल दिया. इसका विरोध करने पर माता-पिता को भी निकाल दिया. मदिरापान जुआ उनकी प्रवृति बन गयी. उत्तम पुरुष को इतना विवेकी होना चाहिए कि पतन की पहली सीढ़ी पर ही संभल जाये. सारे पापाचरण के बाद भी मृत्यु को करीब देख नारायण का नाम मुख से पुकारने से मुक्ति मिलती है. उन्होंने कहा कि गंगा स्नान कर भी हमारे पाप नहीं धुलते हैं. प्रयागराज तीर्थ स्थल में बीस बार भी डूबकी लगा लो पाप की वृत्ति खत्म नहीं होती. इसे खत्म करने का एक ही तीर्थ है पश्चाताप. मानव का जीवन उस दिन धन्य हो जायेगा, जिस दिन वह सच्चा पश्चाताप करेगा. जो श्रद्धा से भगवान का नाम लेगा, उसका जीवन देवतुल्य हो जायेगा.
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