धनबाद : अगर कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर है तथा उसे न्यायालय में मुकदमा लड़ना है, तो ऐसे व्यक्ति नि:शुल्क कानूनी सलाह व वकील के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) से मदद ले सकता है. साथ ही हाईकोर्ट में भी वकील के लिए डालसा के जरिये झालसा को आवेदन दे सकते हैं. ये बातें रविवार को धनबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता सुबोध कुमार ने कही. वह रविवार को प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग में पाठकों के सवालों पर कानूनी सलाह दे रहे थे. हीरापुर के विजय जायसवाल ने पूछा था कि जिला जज के एक मामले में आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देना चाहते हैं. कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. हाइकोर्ट में वकील रखने में आर्थिक परेशानी हो रही है. इसके जवाब में श्री कुमार ने कहा कि आप पूरे साक्ष्य के साथ डालसा के समक्ष आवेदन दें. आपको यह प्रमाणित करना होगा कि आप आर्थिक रूप से केस लड़ने में सक्षम नहीं हैं. झालसा के पास भी सीधे आवेदन दे सकते हैं. पहले यहां डालसा के सचिव से मिल लें, उन्हें अपनी बातों से अवगत करायें. डालसा यहां से आपका आवेदन झालसा को भेज सकता है. प्रभात खबर की ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग में धनबाद, बोकारो व गिरिडीह जिला के पाठकों के लगातार फोन आ रहे थे. श्री कुमार ने सभी सवालों के जवाब दिये. उन्हें कानून की जानकारी भी दी.
धारा 147 के तहत एसडीएम कोर्ट में एक मामला काफी समय से लंबित है. क्या इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है ?
एसडीएम कोर्ट के फैसला के आधार पर ही आप किसी कोर्ट में उसे चुनौती दे सकते हैं. पहले एसडीएम से मिलकर मामले की जल्द सुनवाई का आग्रह कर सकते हैं. अगर इसके बावजूद सुनवाई नहीं होती है तो उपायुक्त से मिल कर अपने बात को रख सकते हैं. एसडीएम कोर्ट से फैसला से अगर संतुष्ट नहीं हों तो सिविल कोर्ट में टाइटल सूट दायर कर सकते हैं. आप चाहें तो झारखंड हाईकोर्ट भी जा सकते हैं. लेकिन, पहले निचले अदालत की प्रक्रिया पूरी कर लें.
गोविंदपुर से अब्दुल मानिक अंसारी के सवाल : मेरे जमीन को गलत तरीका से बेच दिया गया है. डीड, खतियान मेरे पास है. लेकिन, दूसरे पक्ष ने जमीन बेच कर सीओ ऑफिस से म्यूटेशन करा लिया है. क्या करना चाहिए?
आप सिविल कोर्ट में सब जज के यहां वकील के माध्यम से केस कर सकते हैं. म्यूटेशन का मतलब जमीन के स्वामित्व का फैसला नहीं होता. अगर जमीन का डीड, खतियान आपके नाम से है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. कोर्ट से आपको न्याय जरूर मिलेगा. पूरी बातों को साक्ष्य के साथ कोर्ट में रखें. सिविल कोर्ट की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है. सिविल कोर्ट के मामले में हड़बड़ी में सही न्याय मिलने में परेशानी होती है. केस करें. न्याय जरूर मिलेगा.
धैया से नव किशोर शर्मा के सवाल : पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा हो चुका है. हमारे परिवार में चार लोगों के बीच पंचों की सहमतचि सं बंटवारा नामा तैयार हुआ है. इसके बावजूद एक पक्ष के कुछ लोग जबरन जमीन बेच रहे हैं, क्या करें?
आप सिविल कोर्ट में केस करें. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 52 के तहत कोर्ट में केस कर सकते हैं. वाद के लंबित रहने के दौरान कोई पक्ष अगर जमीन बेच देता है तो उस जमीन को लेकर कोर्ट का जब भी फैसला आयेगा तो बिकी हुई जमीन पर भी लागू होगा. मतलब अगर जमीन किसी ने गलत ढ़ंग से खरीदी है तो कोर्ट के फैसला के बाद उस जमीन पर उसका कोई हक नहीं रहेगा. जिसके पक्ष में कोर्ट का फैसला आयेगा वही जमीन का मालिक होगा.
बलियापुर से राजेश कुमार मंडल के सवाल : मेरे पिता हम लोगों से अलग रहते हैं. पैतृक संपत्ति को जबरन बेच रहे हैं. इसे रोकने के लिए क्या कर सकते हैं?
आप कोर्ट में पार्टिशन सूट दायर कर सकते हैं. दादा की संपत्ति पर पोता का भी अधिकार होता है. पार्टिशन सूट के जरिये कोर्ट से अपने हिस्से की संपत्ति को अलग करवा सकते हैं. साथ ही जमीन बिक्री पर रोक के लिए कोर्ट में इंजंक्शन के लिए भी प्रेयर कर सकते हैं. इंजंक्शन लगने के बाद कोर्ट के फैसला आने तक कोई भी व्यक्ति जमीन, मकान नहीं बेच सकते.
नया बाजार से शेखर राय के सवाल : मेरी मां ने मुझे गोद लिया था. मां रेलवे में नौकरी करती थी. सेवाकाल में मौत हो गयी. इसके बावजूद अनुकंपा पर नौकरी नहीं मिल रही है. जबकि गोद लेने का डीड भी है.
कोर्ट में डिकलेटरी सूट फाइल करें. कोर्ट से कानूनी रूप से बेटा की मान्यता ले लें. गोद लिए हुए बच्चे को भी अनुकंपा पर नौकरी पाने का अधिकार है. एडोपडेट डीड को भी कोर्ट में प्रस्तुत करें. आपको अनुकंपना पर नौकरी जरूर मिल जायेगी.
इन्होंने भी किया सवाल
गिरिडीह से राम किशोर वर्णवाल, बोकारो थर्मल से राज कुमार राम, राजधनवार से लक्ष्मण स्वर्णकार, पेटरवार से सुधीर सिन्हा, ताराटांड़ से मानिक गोरांई, तोपचांची से सत्यजीत मंडल, निरसा से रंजीत कर्मकार ने भी सवाल पूछे. सभी के सवालों के जवाब दिये गये.
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