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दुमका में मानव खोपड़ी को फुटबॉल बना खेल रहे थे बच्चे, आधार कार्ड मिलने से हो सकी पहचान

गोपीकांदर में मानव कांकाल के कपड़ो की जांच की गई तब पता चला कि यह कांकाल मारंग सोरेन का है. मारंग सोरेन 7 माह से लापता था.

गोपीकांदर, पंकज मंडल : दुमका जिला के गोपीकांदर थाना क्षेत्र के कुश्चिरा गांव में मानव कंकाल मिलने से क्षेत्र में सनसनी फैल गई है. मानव कंकाल को देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ जुटने लगी. हालांकि कंकाल काफी पुराना और बिखरा पड़ा था.

क्या है मामला

गोपीकांदर थाना अंतर्गत कुश्चिरा गांव में गुरुवार को एक मानव कंकाल मिला है. गांव के बच्चे इसे फुटबॉल बना कर खेल रहे थे. कुछ दूर पर शरीर का बाकी का हिस्सा भी मिला है. कंकाल के पास से आधार कार्ड और कपड़े मिले हैं. आधार कार्ड के मुताबिक कंकाल मरांग सोरेन का है. ग्रामीणों ने भी मिले कपड़े से मरांग का कंकाल होने का दावा किया है. मामले की जानकारी गोपीकांदर पुलिस को दी गई.

सात माह से था लापाता

कुश्चिरा गांव के मरांग सोरेन पिछले सात माह से लापता था. मरांग के पुत्र संजय सोरेन ने बताया कि कंकाल के पास से एक जर्सी पेंट और एक टीशर्ट बरामद किया गया है. पेंट टीशर्ट मेरे पिता का है. पेंट के अंदर से ही आधार कार्ड मिला है. इसलिए कंकाल मेरे पिता का ही है.

फाइनेंस कंपनी के लोगों ने की थी मारपीट

संजय ने बताया कि दुर्गापूजा से पहले लोन वाले फाइनेंस कंपनी के कर्मचारियों से मारपीट हुई थी. उन्होंने बताया कि पैसे नहीं दे सकने के कारण कर्मचारियों ने घर में आकर पिता को मारा था. दूसरे दिन शनिवार को पिता मुर्गा बेचने के लिए अमड़ापाड़ा हटिया गये थे, लेकिन वापस नहीं लौटे. जिसके बाद से लगातार काफी खोजबीन की थी लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया था.

बच्चे खेलते थे फुटबॉल फिर डंडे के सहारे टांग दिया करते थे

संजय सोरेन के मुताबिक कंकाल की खोपड़ी नदी में था. कुछ बच्चे इसे फुटबॉल की तरह खेल कर बालू में एक डंडे के सहारे टांग दिया था. एक बच्चे ने बताया कि एक खोपड़ी नदी में है. जिसके बाद संजय बच्चों को लेकर नदी पहुंचा. खोपड़ी को लेकर वह नदी के ऊपर झाड़ियों के पास बिखरे शरीर के हड्डियों के पास पहुंचा. हड्डियों के पास टीशर्ट और पेंट को देखकर पहचान लिया और पेंट का तलाशी ली तो उसमें आधार कार्ड मिला.

जहां मिली हड्डियां उससे कुछ ही दूरी पर रहते है लोग

जिस जगह पर मानव का हड्डियां मिली हैं, वह कई सवालों को भी जन्म देती है. आपको बता दें कि मरांग पीछे वर्ष बरसात के समय से ही गायब था. नदी किनारे काफी झाड़ियाँ निकल जाती है. इस दौरान लोगों का आना-जाना कम हो जाता है. लेकिन सवाल यह भी है कि उस जगह से 200 गज की दूरी में कई परिवार निवास करते है, दूसरी और दोनों तरफ से नदी जाने का रास्ता भी है. लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन किसी को दुर्गंध तक नहीं आई.

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