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34वां स्थापना दिवस पर कैंपस में नहीं हो पायेगा समारोह

सातवें वेतानमान को लेकर विवि मुख्यालय व 13 कालेजों में डेढ़ माह से लटके हैं ताले

दुमका. सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय का शुक्रवार को 34वां स्थापना दिवस है. हर साल विश्वविद्यालय प्रशासन अपने स्थापना दिवस को धूमधाम से मनाता आ रहा है. पर इस बार विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए विकट स्थिति है. पिछले डेढ़ महीने से सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के दिग्घी कैंपस ही नहीं सभी 13 अंगीभूत महाविद्यालयों में शिक्षकेतर कर्मचारियों का आंदोलन चल रहा है. इस कारण तकरीबन डेढ़ लाख विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो गयी है. शिक्षकेतर कर्मचारी सातवें वेतनमान में वेतन निर्धारण करने की मांग कर रहे हैं. सांकेतिक आंदोलनों के बाद भी विवि प्रशासन और उच्च शिक्षा निदेशालय ने संवेदनशीलता नहीं दिखायी, तो आजिज होकर कर्मचारियों ने ताला ही जड़ दिया है. ऐसे में विवि मुख्यालय में न केवल कामकाज और पठन-पाठन ठप है, बल्कि विकास के सारे काम अवरुद्ध है. शिक्षकेतर कर्मचारी आंतरिक स्रोत से सातवां वेतन लिए बिना ताला खोलने व आंदोलन से पीछे हटने को तैयार नही हैं. दरअसल, वर्ष 2021 से विश्वविद्यालय के शिक्षकेतर कर्मचारियों को एसीपी-एमएसीपी के लाभ के साथ वेतन भुगतान किया जा रहा था, जिस पर लगभग 13 लाख रुपये का वित्तीय बोझ था, जिसे आंतरिक स्रोत से वहन किया जा रहा था. कटौती अक्तूबर से कर ली गयी, जिसके बाद कर्मचारियों के आक्रोश फूट पड़ा. कर्मचारियों की मांग है कि उसी आंतरिक स्रोत से उन्हें सातवां वेतनमान का लाभ दे दिया जाय जिसपर तकरीबन इतने ही राशि का व्यय भार होगा और इसके लिए कर्मचारी बंधेज पत्र भी देने के लिए तैयार हैं. वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति अपनी विवशता बताते हैं. वे कहते हैं कि वे प्रभार में हैं और आंतरिक स्रोत से सप्तम वेतनमान में वेतन का भुगतान करने को लेकर उन्हें मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हुआ है. इसके लिए उन्होंने कई बार पत्राचार किया है, लेकिन उच्चस्तर से पहल नहीं हो सकी है. ऐसे में वे कर्मचारियों की जायज मांग पर सहानुभूति रखते हुए भी कुछ निर्णय ले पाने में सक्षम नही हैं. विवि व कालेजों में तालांबदी पर माननीय भी हैं चुप सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय और 13 अंगीभूत महाविद्यालयों में इतनी लंबी तालाबंदी के बावजूद भी अब तक किसी भी माननीय ने कोई संवेदनशीलता नहीं दिखायी है और न ही ताले खुलवाने के लिए कोई पहल ही की है, जबकि संताल परगना से खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो, चार-चार मंत्री हफीजुल हसन, डॉ इरफान अंसारी, संजय प्रसाद यादव एवं दीपिका पांडेय सिंह भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. महासंघ के महासचिव नेतलाल मिर्धा ने कहा कि सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में आज तक जब भी कर्मचारियों को पुनरीक्षित वेतनमान प्राप्त हुआ है, आंदोलन के बाद ही प्राप्त हुआ है. सरकार खुद पहल नहीं करती. श्री मिर्धा ने कहा कि जब बिन मांगें हमें अपना वेतनमान नहीं मिलता, तो हमारे पास आंदोलन की ही मजबूरी थी. पूर्व कुलपति प्रो कमर अहसन के समय भी 2016 में हमें आंदोलन करना पड़ा था, तब जून 2016 से हमें छठा वेतनमान मिलना शुरू हुआ था. तब 10 साल विलंब हुआ था. इस बार सातवां वेतनमान में वेतन निर्धारण में फिर नौ साल सरकार पीछे हमें रखे हुए है. शिक्षक और पदाधिकारी ले रहें सातवां वेतन, हमें देने के लिए संवेदनहीन : संघ अध्यक्ष सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर ही आंदोलनरत कर्मचारी डटे हैं. किसी भी तरह की गतिविधि वहां संचालित नहीं होने दे रहे हैं. ऐसे में विश्वविद्यालय वहां स्थापना दिवस समारोह मनाने की कोई योजना भी नहीं कर सकी है. इधर, कर्मचारियों ने कहा है कि वे लोग विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर ही स्थापना दिवस मनायेंगे. महासंघ के अध्यक्ष परिमल कुंदन ने कहा कि स्थापना दिवस का आयोजन हम कर्मचारियों द्वारा ही किया जायेगा. सभी कॉलेजों से कर्मचारी आयेंगे. कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे. उन्होंने क्षोभ जताते हुए कहा कि एक ओर विश्वविद्यालय आंतरिक स्रोत से हमें सातवें वेतनमान में वेतन भुगतान नहीं कर रही. दूसरी ओर उच्च शिक्षा निदेशालय हमारे वेतन का निर्धारण नहीं कर रहा. आश्चर्य है कि पिछले 44 दिनों से जारी हड़ताल पर न तो राज्य सरकार और न तो विश्वविद्यालय प्रशासन गंभीर है. कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन के सभी पदाधिकारी व शिक्षक सातवां वेतन ले रहे हैं. हम कर्मचारियों को 19 वर्ष पुराने वेतनमान में ही रखे है. शिक्षकों-पदाधिकारियों का सप्तम वेतनमान में वेतन निर्धारण 2019 में ही हो चुका है. तब से वे इसका लाभ ले रहे हैं, जबकि कर्मचारियों के प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन एवं राज्य सरकार की यह अमानवीयता और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है. एसकेएमयू में 98 दिनों के लंबी हड़ताल का है रिकार्ड सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय में सबसे लंबा आंदोलन 98 दिनों का हुआ है. यह आंदोलन भी शिक्षकेतर कर्मचारियों ने ही 2009 में किया था, उस आंदोलन की वजह से शैक्षणिक गतिविधियां, तमाम परीक्षा ठप हो गयी थी, उस वक्त सेशन पहले से ही डेढ़-दो साल विलंब चला करता था. ऑनलाइन कक्षाएं होती नहीं थी. साधन भी नहीं थे. लिहाजा और भी सेशन में विलंब हो गया था. उस वक्त उच्च शिक्षा निदेशालय ने देर से ही सहीं संवेदना दिखायी थी. वार्ता के बाद कुछ कर्मियों का पंचम वेतनमान में वेतन निर्धारण कर दिया था. इसी आधार पर बारी-बारी से सभी कर्मचारियों का पंचम वेतनमान में वेतन निर्धारण कर दिया गया था. अस्सी फीसदी कर्मचारियों को उसी पंचम वेतनमान में ही वेतन निर्धारित है. छठा वेतनमान भी उनका निर्धारित नहीं हुआ है. 1996 के पहले जिनकी नियुक्ति थी, वैसे कर्मचारियों का पंचम में वेतन निर्धारण नहीं हुआ. उदाहरण के तौर पर नथानिएल हेंब्रम नाम के कर्मचारी हाल ही में 30 नवंबर 2024 को सेवानिवृत हो गये, उनका पंचम वेतनमान में ही वेतन आज तक निर्धारित नहीं हुआ. वहीं 31 दिसंबर 2024 को दो और कर्मचारी नूर नबी और बच्चू प्रसाद राय बिना पंचम वेतनमान में वेतन निर्धारण कराये ही सेवानिवृत हुए हैं. लिहाजा इन्हें पेंशन भी लगभग तीन दशक पुराने वेतनमान के आधार पर ही मिल रही है.

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