अजय पाण्डेय, घाटशिला
मऊभंडार में आइसीसी कमेटी से संचालित आइसीसी मध्य और उच्च विद्यालय तीन सितंबर, 2002 तक शिक्षा का केंद्र हुआ करते थे. मध्य व उच्च विद्यालय में कुल 1400 बच्चे पढ़ते थे. कंपनी ने आर्थिक स्थिति खराब होने की बात कहकर स्कूल बंद कर दिया. आज दोनों स्कूल के भवन खंडहर में तब्दील हो गये हैं. भवनों की खिड़की और दरवाजे चोरी होने लगे हैं. स्कूल की चहारदीवारी चार जगहों पर तोड़ दी गयी है. सरकार पंचायत चुनाव से लोकसभा चुनाव तक स्कूल भवन में बूथ बनाती है, मगर स्कूल शुरू करने की दिशा में पहल नहीं होती है. पूर्वी मऊभंडार पंचायत में एक भी सरकारी और गैर सरकारी स्कूल नहीं है. पंचायत के बच्चों को एक किलोमीटर दूर घाटशिला या लगभग 10 किलोमीटर दूर मुसाबनी प्रखंड के स्कूलों में दाखिला लेना पड़ता है. कंपनी ने आर्थिक स्थिति खराब होने की बात कह वर्ष 2002 से मऊभंडार, सुरदा और मुसाबनी में कमेटी संचालित स्कूलों को बंद कर दिया.शिक्षकों का वेतन, पेंशन व बकाया का मामला कोर्ट में
स्कूल के सहायक शिक्षक एमएम महतो ने बताया कि मध्य विद्यालय वर्ष 1933 में और उच्च विद्यालय वर्ष 1980 से संचालित हो रहा था. दोनों विद्यालयों में 140 शिक्षक, शिक्षिकाएं और शिक्षकेतर कर्मचारी कार्यरत थे. आइसीसी कंपनी की हालत बिगड़ने पर विद्यालय बंद होते गये. शिक्षक, शिक्षिकाएं और शिक्षकेतर कर्मचारियों ने वेतन, पेंशन समेत अन्य बकाया को लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामला आज भी विचाराधीन है.शिक्षा पर हर माह 20 लाख खर्च करती थी कंपनी
आइसीसी कमेटी संचालित छह स्कूलों में कार्यरत शिक्षक, शिक्षिकाएं और शिक्षकेतर कर्मियों के वेतन समेत अन्य मद में हर माह 20 लाख रुपये खर्च होते थे. वर्ष 2002 में आइसीसी कंपनी की स्थिति बिगड़ गयी. मजदूरों को दो से तीन माह बाद वेतन भुगतान होने लगा.किसी तरह वर्ष 2010 तक चलाये गये स्कूल
कंपनी ने वर्ष 2002 में स्कूलों को बंद कर दिया. मगर वर्ष 2010 तक बाहरी मदद से किसी तरह संचालित किया गया. वर्ष 2010 में भी इस स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा विद्यार्थियों ने दी. कई शिक्षक-शिक्षिकाएं और शिक्षकेतर कर्मचारी की वेतन की आस में मौत हो गयी.स्कूल भवन के एक कमरे में रह रहा रात्रि प्रहरी
मऊभंडार में आइसीसी कमेटी संचालित स्कूल के नीचे एक कमरे में विक्रम बहादुर क्षेत्री रह रहा है. विक्रम बहादुर क्षेत्री ने बताया कि रात में मऊभंडार और आसपास के क्षेत्रों में रात्रि प्रहरी का काम करता है. दुकानदार जो राशि देते हैं. उसी से भरण-पोषण होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है