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Ghatshila News : छत से गिरता है प्लास्टर, नीचे खौफ में पढ़ते हैं 162 विद्यार्थी

घाटशिला हिंदी मध्य विद्यालय के 75 साल पूरे, भवन हुआ कंडम, स्कूल में छात्र से अधिक छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने आती हैं, शिक्षा विभाग की अनदेखी का दंश झेल रहे हैं बच्चे, स्कूल में मैदान नहीं, बच्चे खेलकूद से हैं वंचित

अजय पाण्डेय, घाटशिला

घाटशिला में वर्ष 1949 में स्थापित हिंदी मध्य विद्यालय 75 वर्ष का हो गया है. स्कूल के अधिकतर कमरे जर्जर हैं. इन्हीं कमरों में 162 बच्चे ( छात्रा 84 व छात्र 78) जान जोखिम में डाल कर पढ़ने को विवश हैं. स्कूल में 14 कमरे हैं. सात उपयोग लायक नहीं है. ऊपरी तल्ले पर चार कमरे खतरनाक घोषित हैं. इन कमरों में कक्षाएं नहीं होती हैं. वहां बच्चों के जाने पर रोक है. कमरों की छत टूट-टूट कर गिर रही है. खौफ के बीच बच्चे बैठकर पढ़ाई करते हैं. नीचे के तीन कमरों में कक्षाएं नहीं चलती हैं. एक कमरे में एलकेजी और प्रथम कक्षा, द्वितीय के साथ तृतीय और चतुर्थ के साथ पांचवीं कक्षा के बच्चों को बैठाकर शिक्षा दी जाती है.

एक कमरे में दो-तीन कक्षा के बच्चे एक साथ पढ़ते हैं

हिंदी मध्य विद्यालय में कमरों की कमी है. एक कमरे को कंप्यूटर लैब बनाया गया है. चार कमरों में कक्षाएं चलती हैं. यहां कक्षा केजी से आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है. एक कमरे में दो-तीन कक्षा के बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं.

नहीं सुन रहा शिक्षा विभाग, छत का रड दिख रहा

स्कूल के शिक्षकों ने शिक्षा विभाग को कई बार स्कूल में नये भवन निर्माण के साथ पुराने भवन की मरम्मत कराने की मांग की गयी. अबतक इस दिशा में शिक्षा विभाग ने ठोस पहल नहीं की है. हॉल के पास के चार कमरों के प्लास्टर झड़ रहे हैं. इस कारण रड दिख रहे हैं. हॉल के पास सुरक्षा के दृष्टिकोण से जाली लगा कर घेराबंदी कर दी गयी है.

ऊपरी तल्ला डेंजर जोन घोषित

विद्यालय के ऊपरी तल्ले के चार कमरों को डेंजर जोन घोषित कर दिया गया है. सीढ़ी रूम के दरवाजे पर डेंजर लिखकर स्टिकर चिपकाया गया है. सीढ़ी रूम में ताला लगा है, ताकि बच्चे ऊपर न जा सकें.

दो शिक्षिका व एक पारा शिक्षक के भरोसे स्कूल

हिंदी मध्य विद्यालय में स्थायी रूप से दो शिक्षिकाएं कार्यरत हैं. वहीं, एक पारा शिक्षक हैं. इनके भरोसे 162 विद्यार्थियों की पढ़ाई निर्भर है. शिक्षा विभाग स्कूल में शिक्षकों के पदस्थापन की दिशा में पहल नहीं कर रहा है. स्कूल में कई मेधावी विद्यार्थी हैं, जो विभिन्न प्रतियोगिताओं के साथ सामान्य ज्ञान में पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. स्कूल में खेल मैदान नहीं है. विद्यार्थियों को इंडोर गेम ही खेलना पड़ता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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