गालूडीह. घाटशिला प्रखंड की बाघुड़िया पंचायत स्थित मिर्गीटांड़ के ग्रामीण आंगनबाड़ी केंद्र और राशन के लिए सात किमी दूर पहाड़-जंगल पार कर नरसिंहपुर जाते हैं. सरकारी आश्वासन के बाद भी मिर्गीटांड़ में आज तक मिनी आंगनबाड़ी सेंटर नहीं बन पाया है. नरसिंहपुर मुख्य सड़क से मिर्गीटांड़ की दूरी सात किमी है, जो पहाड़-जंगल से भरा है. ऐसे में हाथी का भय भी बना रहता है. इसके बावजूद प्रति माह गर्भवती माता, छोटे बच्चे पोषाहार के लिए नरसिंहपुर आंगनबाड़ी केंद्र किसी तरह जाते हैं. वहीं, हर माह राशन के लिए मिर्गीटांड़ के ग्रामीणों को सात किमी दूरी तय कर नरसिंहपुर डीलर के पास आना पड़ता है. मिर्गीटांड़ के ग्रामीण तंग आ गये हैं. जंगली रास्ते और दूरी की वजह से मिर्गीटांड़ के अधिकतर बच्चे आंगनबाड़ी की सुविधा से वंचित हैं. महीना में टीएचआर के दिन मां बच्चों को लेकर सिर्फ केंद्र आती हैं, तो पोषाहार मिलता है. बच्चों को टीका लगता है. माह में एक बार एएनएम या स्वास्थ्य सहिया गांव जाती हैं. छोटे बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती है. कई साल पहले एक बार घाटशिला के एसडीओ मिर्गीटांड़ में जनता दरबार लगाया था, तब भरोसा दिया था कि मिनी आंगनबाड़ी सब सेंटर बनेगा. एसडीओ ने डीलर से कहा था प्रति माह मिर्गाटांड़ के कार्ड धारियों को गांव आकर राशन दें. दो-चार माह ऐसा हुआ, फिर बंद हो गया.
पांचवीं के बाद बच्चे छोड़ देते हैं पढ़ाई
मिर्गीटांड़ा में प्राथमिक विद्यालय है. यहां पहली से पांचवीं तक पढ़ाई होती है. छठी से आठवीं तक पढ़ाई के लिए बच्चों को सात किमी दूर जंगल पार कर नरसिंहपुर आना पड़ता है. वहीं, नौवीं व 10वीं की पढ़ाई के 10 किमी दूर बाघुड़िया उउवि जाना पड़ता है. रास्ते में जंगली जानवरों के भय के कारण अधिकतर बच्चे पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. खासकर लड़कियां जंगल पार कर नहीं जाती हैं. अगर छात्राओं का कस्तूरबा में नामांकन हो जाता है, तो पढ़ाई करती हैं. कस्तूरबा में नामांकन नहीं हुआ, तो पढ़ाई छूट जाती है.
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