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गढ़वा में प्रधानमंत्री आवास के मनरेगा मजदूरों को नहीं मिलती मजदूरी, अधूरे पड़े हैं आवास

गढ़वा जिले में अधूरा पड़ा 7921 आवास पूर्ण कराने में अधिकारी असफल साबित हो रहे हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना में काम करने वाले मनरेगा मजदूरों को 95 दिन की मजदूरी उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है

गरीबों को पक्का घर देने के लिए केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना संचालित है. पर गढ़वा जिले में इस योजना के तहत काम करनेवाले मजदूरों को पूरी (95 दिन) मजदूरी नहीं मिल रही है. आवास निर्माण में काम करने के बावजूद मनरेगा अधिकारियों की लापरवाही से गढ़वा जिले में अधूरे पड़े हजारों प्रधानमंत्री आवास में मजदूरी भुगतान किये बगैर अधिकारियों ने मनरेगा एमआइएस (मैनेजमेंट इंफॉरमेशन सिस्टम) में आवास योजना बंद दिखा दी.

ऐसे में जिले के विभिन्न प्रखंडों के अधूरे पड़े प्रधानमंत्री आवास पूरे नहीं हो रहे हैं. वहीं मनरेगा एमआइएस से आवास योजना बंद होने की स्थिति में मजदूरों का डिमांड नहीं होने से मजदूरी भुगतान नहीं हो रहा है. साथ ही संबंधित प्रखंडों के मनरेगा अधिकारी इस मामले को गंभीरता से लेने के बजाय लाभुकों से सीधे तौर पर मजदूरी भुगतान नहीं होने की बात कहकर इस मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं.

ऐसी स्थिति के कारण गढ़वा जिले में अधूरा पड़ा 7921 आवास पूर्ण कराने में अधिकारी असफल साबित हो रहे हैं. उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में काम करने वाले मनरेगा मजदूरों को 95 दिन की मजदूरी उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है. लेकिन जिले में अधूरे पड़े हजारों आवास योजना में एक दिन, तो कही 10 से 12 दिन का मजदूरी भुगतान कर ऐसे आवास मनरेगा एमआइएस से बंद कर दिऐ गये.

वहीं बकाये मजदूरी भुगतान के लिए डिमांड कराने को लेकर लाभुक कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं. इसके अलावे सैकड़ों आवास के ऐसे मामले भी प्रभात खबर की पड़ताल में सामने आये जिनमें लाभुकों को प्रखंड कार्यालयों के चक्कर लगाने के बावजूद मजदूरी भुगतान नहीं होने पर अंततः कर्ज लेकर आवासों का ढलाई कार्य पूरा करना पड़ा और मजदूरों को अपने जेब से मजदूरी देना पड़ी है.

मनरेगा अधिकारियों की लापरवाही से बंद हुई आवास योजना : दरअसल मजदूरों को रोजगार देने के उद्देश्य से मनरेगा की ओर से विभिन्न योजनाओं का संचालन किया जाता है. वहीं वर्षों तक इन योजनाओं के पूर्ण नहीं होने पर मनरेगा के वरीय अधिकारी इन अपूर्ण योजनाओं को बंद करने का दबाव या निर्देश प्रखंड स्तरीय अधिकारियों को देते रहते हैं.

ऐसे में इस दबाव को कम करने के उद्देश्य से प्रखंड स्तरीय अधिकारी डोभा, सिंचाई कूप, तालाब व पशु शेड सहित अधूरी पड़ी अन्य योजनाएं बंद करने के बजाय प्रधानमंत्री आवास बंद कर देते हैं. लेकिन आवास को छोड़ वर्षों से लंबित डोभा, सिंचाई कूप व पशु शेड जैसी बड़ी योजनाओं को निर्देश के बावजूद बंद नहीं किया जाता है. रिपोर्ट के अनुसार पूरे जिले में वर्षों से लंबित पशु शेड, डोभा, सिंचाई कूप, मेड़बंदी व टीसीबी की करीब 40 हजार योजनाएं लंबित है.

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