शहर के मुख्य बाजार पथ स्थित ऐतिहासिक बड़ा ठाकुरबाड़ी मंदिर जन्माष्टमी के अवसर पर सजाया गया है. भक्तों की आस्था का केंद्र बने इस मंदिर की स्थापना 1844 ईस्वी में स्वर्गीय शिव साव और सेवा साव ने की थी, जो सगे भाई थे. दोनों भाई अपने व्यवसाय के सिलसिले में राजस्थान की यात्रा करते थे, जहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कला-शैली से वे बेहद प्रभावित हुए. उन्होंने अपने गृह नगर गढ़वा में उसी शैली में एक मंदिर बनाने का संकल्प लिया. और इस मंदिर का निर्माण करवाया. मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की मूर्ति स्थापित की गयी, जो मंदिर का मुख्य आकर्षणऔर भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है.
स्थापत्य कला और इतिहास : मंदिर का निर्माण राजस्थान की स्थापत्य कला से प्रेरित होकर किया गया, जिसमें बारीक नक्काशी, भव्य गुंबद और विस्तृत मंडप शामिल हैं. यह मंदिर उस समय के कारीगरों की उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रमाण है. मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त शैली और सामग्री राजस्थान के पारंपरिक मंदिरों की याद दिलाती है.
1992 में जीर्णोद्धार और विस्तार : वर्ष 1992 में मंदिर का जीर्णोद्धार स्वर्गीय खुशदिल प्रसाद ने किया, जो मंदिर के संस्थापक परिवार से संबंधित थे. उन्होंने मंदिर की दीवारों, गुंबद और मंडप को पुनर्स्थापित किया. इसी वर्ष मां दुर्गा की मूर्ति भी स्थापित की गयी. इससे मंदिर का धार्मिक महत्व और बढ़ गया. दुर्गा पूजा के आयोजन के साथ यह मंदिर न केवल श्रीकृष्ण भक्तों के लिए, बल्कि दुर्गा माता के उपासकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया. मंदिर का संचालन और व्यवस्थापन : वर्तमान में मंदिर का संचालन और इसकी देखरेख संस्थापक परिवार के सदस्य करते हैं. इनमें पीएन गुप्ता, बलराम भगत, शशि शेखर गुप्ता, डॉ. संजय कुमार, राजीव कुमार उर्फ बबलू, बृज बिहारी प्रसाद, डॉ. विकास कुमार, सच्चिदानंद प्रसाद, ओमप्रकाश प्रसाद, प्रवीण जायसवाल, प्रवीण कुमार और प्रदीप कुमार शामिल हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है