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अतीत के झरोखे से: डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सरिया के मुखर्जी भवन में बिताते थे छुट्टियां, गिरिडीह से ऐसा था कनेक्शन

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का झारखंड के गिरिडीह जिले के खास लगाव रहा है. वे सरिया के मुखर्जी भवन में छुट्टियां बिताते थे. ये मुखर्जी भवन डाक बंगला रोड पर था.

सरिया (गिरिडीह), लक्ष्मी नारायण पांडेय: देश की आजादी के पूर्व सरिया में अपना आशियाना बनाने को प्राथमिकता देते थे पश्चिम बंगाल के संभ्रांत परिवार. ऐसे लोगों के परिजन यहां मुखर्जी भवन में छुट्टियां बिताना पसंद करते थे. सरिया में ऐसी कई कोठियां प्रसिद्ध हैं. भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में शामिल व ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान− नहीं चलेंगे’ नारा के प्रवर्तक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी में उन्हीं विभूतियों में एक थे.

डाक बंगला रोड पर स्थित था मुखर्जी भवन
बताया जाता है कि गिरिडीह में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने रिश्तेदारों के यहां वर्तमान में डाक बंगला रोड तथा नेताजी सुभाष चौक स्थित मुखर्जी भवन में छुट्टियां बिताने आया करते थे. इसी दौरान उन्होंने आश्रम रोड चंद्रमारणी (डाक बंगला से नजदीक) सरिया में एक एकड़ जमीन अपने नाम से खरीदी और उसकी चहारदीवारी करवायी. फलदार वृक्षों के पौधे लगाये गये. रहने के लिए मात्र दो छोटा कमरा बनवाया. इसे बाद परिजनों की सहमति पर उन्होंने आटा चक्की खोल दी.

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अंतिम बार 1950 में सरिया आये थे डॉ मुखर्जी
स्थानीय वृद्ध लोगों की मानें तो डॉ मुखर्जी का आजादी के पूर्व सरिया आना-जाना लगा रहता था. उस समय यह इलाका काफी पिछड़ा हुआ था. डॉ मुख़र्जी ने स्थानीय लोगों की आर्थिक रूप से मदद की थी. कई लोगों को कोलकाता में रोजगार भी दिलाया था. 1947 ईस्वी में बंगाल में प्रथम वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाले. इन्हें वाणिज्य तथा औद्योगिक मंत्री भी बनाया गया. परंतु गांधी जी की अहिंसात्मक नीति के विरुद्ध इन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. वे अंतिम बार 1950 ई के लगभग सरिया आए थे. कहा जाता है कि डॉ मुखर्जी एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ व बैरिस्टर थे.

भारत के वास्तुकार की उपस्थिति से सरिया गौरवान्वित
चितरंजन में रेल इंजन कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना, बिहार में खाद का कारखाना इन्हीं की देन है. बंगाली परिवार के लोग धीरे-धीरे सरिया से अपनी अचल संपत्ति बेचकर बंगाल वापस जाने लगे. जनसंघ के संस्थापक डॉ मुख़र्जी के रिश्तेदारों ने भी अपनी जमीन व मकान बेच दिये. इसी बीच मुखर्जी के परिजनों ने भी अपनी जमीन स्थानीय लोगों के हाथों वर्ष 1990 के दशक में बेच दिया. खरीदारों ने अपने-अपने स्तर से वहां मकान बना लिया. भारत के वास्तुकार के रूप में अपनी पहचान बनानेवाले डॉ मुख़र्जी जैसे महान नायक की उपस्थिति से यह धरती धन्य हुई है.

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