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लोकसभा चुनाव 2024: त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी गिरिडीह सीट, सभी के अपने-अपने दांव

लोकसभा चुनाव 2024: गिरिडीह लोकसभा सीट के लिए 25 मई को मतदान होना है. यह लोकसभा सीट त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी है. आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी, झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो व जेबीकेएसएस अध्यक्ष जयराम महतो में कड़ी टक्कर है.

गिरिडीह(राकेश/सूरज/राकेश): गिरिडीह लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है. कोडरमा चुनाव के बाद सभी की नजर गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र पर जा टिकी है. यह सीट त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी है. सबके अपने-अपने दांव हैं. गिरिडीह लोकसभा के लिए 25 मई को मतदान होना है. गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा की सीटें हैं. इनमें टुंडी व बाघमारा धनबाद जिला में, बेरमो व गोमिया बोकारो जिला में और गिरिडीह व डुमरी गिरिडीह जिला के अधीन है. चुनावी मैदान में कुल 16 प्रत्याशी अपने भाग्य आजमा रहे हैं. गिरिडीह लोकसभा के गिरिडीह व डुमरी विधानसभा क्षेत्र की उपेक्षा को लेकर बराबर सवाल उठता रहा है. हर चुनाव में जनप्रतिनिधि मतदाताओं से वादा तो करते हैं लेकिन उसे पूरा नहीं करते.

एनडीए, इंडिया गठबंधन, जेबीकेएसएस में है कड़ा मुकाबला
गिरिडीह लोकसभा सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है. पिछले सात चुनाव में पांच बार भाजपा प्रत्याशी रवींद्र पांडेय यहां से विजयी हुए. वर्ष 2019 में एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा ने यह सीट आजसू के लिए छोड़ दी. पिछले चुनाव में यहां से आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी विजयी हुए. इस बार भी एनडीए ने यहां से आजसू प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा है. इंडिया गठबंधन की तरफ से झामुमो नेता मथुरा प्रसाद महतो हैं. जबकि जेबीकेएसएस अध्यक्ष जयराम महतो भी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्य रूप से लड़ाई इन्हीं तीनों उम्मीदवारों के बीच है. गिरिडीह में पीएम नरेंद्र मोदी तक की सभा हो चुकी है. झामुमो की तरफ से भी सीएम चंपाई सोरेन, झामुमो नेत्री कल्पना सोरेन ने यहां कई सभाएं की.
गिरिडीह, डुमरी सीट की समस्याएं

बेरोजगारी, बाइपास रोड की मांग को लेकर किया गया था वादा
बाइपास रोड नहीं बन पाने के कारण गिरिडीह शहरी क्षेत्र में ट्रैफिक की समस्या से लोग जहां त्रस्त हैं वहीं जिला प्रशासन के लिए यह परेशानी का सबब बना हुआ है. हर चुनाव में लोग बाइपास बनाने का वादा और ट्रैफिक व्यवस्था दुरूस्त कराने का भरोसा दिलाते रहे हैं लेकिन इस समस्या का समाधान अब तक नहीं हो सका है. बेरोजगारी के कारण गिरिडीह जिले भर में पलायन की समस्या है. प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में लोग इस जिले से महानगरों की ओर पलायन कर जाते हैं. गिरिडीह और डुमरी विधानसभा क्षेत्र में भी बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. यहां उद्योग धंधों को विकसित करने के लिए सरकार संरचनात्मक ढांचा भी उपलब्ध करा नहीं पायी. गिरिडीह के बनियाडीह में सीसीएल का एक कोलियरी वर्षों से बंद पड़ा हुआ है. सीसीएल के लिए किये गये जमीन अधिग्रहण से कई लोग विस्थापित होने का दंश भी झेल रहे हैं.

सिंचाई की व्यवस्था नहीं, त्रस्त हैं किसान
गिरिडीह, पीरटांड़ और डुमरी प्रखंड में किसान कृषि पर निर्भर हैं. लेकिन, किसी जनप्रतिनिधि ने अब तक सिंचाई की सुविधा लोगों को उपलब्ध नहीं कराया. हालांकि, हाल के दिनों में पीरटांड़ प्रखंड के लिए साढ़े पांच सौ करोड़ से भी ज्यादा की एक सिंचाई परियोजना को स्वीकृति मिली है. फिलहाल अब तक इन तीनों की प्रखंडों में किसान सिंचाई की बड़ी परियोजनाओं के इंतजार में है. खुटवाढाब के मो. ताजु्द्दीन कहते हैं कि किसानों की सबसे बड़ी समस्या पर जनप्रतिनिधियों का ध्यान ही नहीं है.

जैनियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है उपेक्षित
गिरिडीह जिले के मधुबन में जैनियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. लेकिन, इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकार ने कोई बड़ी पहल अब तक नहीं की है. जैन संगठनों ने इस इलाके में कई मंदिरों का निर्माण तो जरूर किया है लेकिन यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों की सुख सुविधा के लिए सरकार ने कोई पहल नहीं की. आज भी लोगों को जर्जर सड़क मार्ग से अंधेरे में शिखर जी का यात्रा करना होता है. इस क्षेत्र में डोली मजदूरों के लिए भी सरकार ने कोई अलग योजना नहीं दी है. पर्यटकों को ठहरने के लिए जैनियों की धर्मशालाओं का मदद लेना पड़ता है. इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकार ने रोपवे समेत कई योजनाओं की घोषणा की, पर उसे आज तक धरातल पर उतारा नहीं जा सका.

गिरिडीह को सीधे नहीं जोड़ा जा सका है मुख्य रेल मार्ग से
रेलवे विस्तार के मामले में भी गिरिडीह पिछड़ा हुआ है. रेल मंत्रालय ने कुछ वर्ष पूर्व झाझा से गिरिडीह, मधुबन और मधुबन से पारसनाथ रेलवे स्टेशन को जोड़ने की एक योजना तैयार की थी. इस योजना के बनने के बाद सर्वे का कार्य भी किया गया था लेकिन पिछले एक दशक से यह मामला ठंडा बस्ते में बंद पड़ा हुआ है. गिरिडीह से पटना और गिरिडीह से कोलकाता जाने वाली ट्रेन में भी गिरिडीह कोच की सुविधा कोरोनाकाल में हटा दी गई. इस गिरिडीह कोच को आज तक पटना – कोलकाता जाने वाली ट्रेन में नहीं जोड़ा जा सका है.

औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण एक बड़ी समस्या
गिरिडीह के लौह नगरी मोहनपुर के इलाके में कई उद्योग स्थापित है. कई बड़ी-बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में स्टील का उत्पाद तैयार कर रही है और उसका व्यवसाय किया जा रहा है लेकिन इन उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण की चपेट में इस इलाके के कई गांव हैं. एक लंबे अरसे से प्रदूषण के खिलाफ स्थानीय ग्रामीण आवाज उठा रहे हैं.कई जनप्रतिनिधियों ने वादा किया था की प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए वे सरकार पर दबाव बनाएंगे लेकिन आज तक इस विकट समस्या से लोगों को निजात नहीं मिला है. फलस्वरुप ग्रामीण विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होकर असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं. इस बार इस क्षेत्र के आक्रोशित ग्रामीणों ने वोट बहिष्कार की भी घोषणा कर डाली है.

विस्थापन, पलायन, प्रदूषण, पेयजल व बेरोजगारी है मुख्य मुद्दा
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्र की अगर हम बात करें तो हर विस क्षेत्र में अलग-अलग समस्या है. लेकिन पूरे संसदीय क्षेत्र में मूल रुप से विस्थापन,पलायन, प्रदुषण, पेयजल, बेरोजगारी के साथ-साथ सिंचाई एक प्रमुख समस्या है. पिछले चार दशकों में यहां एक भी उद्योग धंधे नहीं खुले जिससे कुछ हद तक बेरोजगारों को रोजगार मिल सके. संसदीय क्षेत्र के डुमरी,गोमिया,बेरमो,डुमरी व टुंडी विस क्षेत्र में पलायन एक विकराल समस्या है. इन जगहों से हर साल हजारों युवक रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यो में पलायन करते है. वहां से लौट कर आती है उनकी अर्थी. संसदीय क्षेत्र के सिर्फ गोमिया विस क्षेत्र की बात करें तो यहां से अभी भी बाहर के राज्य यथा सूरत, मुंबई, चैन्नई, गुजरात आदि राज्यों में 10 से 15 हजार नौजवान काम कर रहे है. यहां रोजगार की व्यवस्था नहीं रहने के कारण लोग यहां से पलायन को मजबूर हुए. गिरिडीह संसदीय क्षेत्र अंतर्गत डुमरी,गोमिया,बेरमो,डुमरी व टुंडी सभी विस क्षेत्र पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. इन विस क्षेत्र के कई पंचायतों व गांवों में केंद्र व राज्य सरकार की विकास योजनाएं धरातल पर नहीं उतरती. कई क्षेत्रों में जनप्रतिनिधि भी नहीं जाते.

पलायन की त्रासदी
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले धनबाद, बोकारो व गिरिडीह के शहरों में कई बड़े कल-कारखाने तथा उद्योग संचालित हैं. जितने अधिक यहां कल-कारखाने हैं उससे कहीं अधिक यहां पलायन की त्रादशी है़ शहरों में उधोग-धंधों की भरमार होने के बावजूद यहां के गांव पलायन के संताप झेल रहे है़ जिनकी जमीन पर कल-कारखाने जगमग है, वे सालों भर रोजी-रोटी के लिये मारे फिरते हैं. हर साल यहां के गांवों से 25-30 हजार लोग रोजगार की खातिर बाहरी प्रदेशों में दिहाडी मजदूरी का काम करने पलायन करते हैं. ग्रामीण कहते हैं कि गृह जिले में रोजगार नहीं मिल पाने की स्थिति में बच्चों को काम करने परदेश जाना पडता है़

पलायन के कारण 200 से अधिक की मौत
बीते कुछ सालों में बोकारो जिले में ही केवल पलायन के कारण 200 से अधिक युवाओं की मौत हुई है. बोकारो जिला अंतर्गत नावाडीह प्रखंड के पलामू, बरई, नारायणपुर, पिलपिलो, गोनियाटो, काछो, पेक, पोखरिया, मुंगो रंगामाटी, कोठी, भवानी, सुरही, भलमारा, कुकरलिलवा, चिरूडीह,कोदवाडीह, जमुनपनिया, हुरसोडीह, आहरडीह-केशधरी, दहियारी, नावाडीह.कसमार प्रखंड के सिंहपुर, पिरगुल, हरनाद, मुडमुल, बगदा, दुर्गापुर, सुधीबेडा, खैराचातऱ.जरीडीह प्रखंड-अराजू, भस्की, पाथुरिया, गांगजोरी, बेलडीह, हल्दी, हरीडीह़ गोमिया प्रखंड के झूमरा का सुअरकटवा, सीमराबेड़ा, बलथरवा, अमन, करीखुर्द, तुलबुल, बड़की सिधावारा, बड़की चिदरी, लोधी, चतरोचटी, कडमा, जगेश्वर, तिलैया, कशियाडीह, मुरपा, रहावन, पचमो, दनिया, सिमराबेडा, धवैया.चंद्रपुरा प्रखंड के पपलो, तारानारी, तरंगा, बंदियो, फुलवारी, चिरूडीह आदि जगहों से सबसे ज्यादा पलायन है.

संसद के गलियारों में नहीं गूंजती विस्थापितों के बदहाली की आवाज
बेरमो व गोमिया विस क्षेत्र औद्योगिक बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां विस्थापन की समस्या गंभीर है. जिन लोगों की जमीन सीसीएल व डीवीसी ने वर्षों पूर्व अधग्रिहित किया आज वैसे ग्रामीण वस्थिापित दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है. कई वर्षो से उनका नियोजन व मुआवजा लंबित है. कभी भी मुखर रुप से ऐसे वस्थिापितों की आवाज संसद के गलियारों में नहीं गूंजती.

सार्वजनिक प्रतष्ठिानों के बदौलत कई क्षेत्र के लोगों को मिलती है राहत
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के बेरमो,गोमिया,बाघमारा व गिरिडीह के अधिकांश भागों में सार्वजनिक प्रतष्ठिान सीसीएल, बीसीसीएल, डीवीसी, टीटीपीएस, एसआरयू की बदौलत लोगों को कई तरह की सुविधा मिलती है. इन सार्वजनिक प्रतष्ठिानों के कारण ही लोग पानी, बिजली,क्वार्टर की सुविधा सहित प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से हजारों लोग रोजगार से जुड़े हुए हैं. वेलफेयर व सीएसआर मद की राशि से विकास के कई कार्य होते हैं.सीसीएल व बीसीसीएल का डीएमएफटी व सीएसआर योजना मद की राशि का उपयोग क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अपने नीजि फंड की तरह उपयोग करते है. गांव के विकास के लिए मिलनेवाली इस राशि से शहरी क्षेत्र में ज्यादा काम होता है.

न पढ़ाई की कोई व्यवस्था, ना रोजगार के नये अवसर बढ़ रहे
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र का दो विधानससभा क्षेत्र बाघमारा एवं टुंडी धनबाद जिला का हिस्सा है. बाघमारा विधानसभा क्षेत्र में रोजगार के अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं. यहां कोयला उद्योग में आउटसोर्सिंग व्यवस्था लागू होने से रोजगार के अवसर बहुत कम हो गया है. मजदूरों को बहुत कम राशि में काम करना पड़ रहा है. पूरे विधानसभा क्षेत्र में एक ही डिग्री कॉलेज है. लेकिन, कतरास कॉलेज कतरास में गणित सहित साइंस के कई विभागों में एक भी शिक्षक नहीं हैं. प्रदूषण की समस्या से भी लोग परेशान रहते हैं. लेकिन, चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी नहीं हो पाते. इसी तरह टुंडी विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह कृषि बाहुल क्षेत्र है. यहां आदिवासियों की खासी संख्या है. लेकिन, यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है. खेती के अलावा शहरी क्षेत्र में आ कर दैनिक मजदूरी ही यहां के लोगों के आय का साधन है. टुंडी में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं है. पूरे क्षेत्र में हर बार रोजगार, शिक्षा की मांग उठती है. लेकिन, प्रत्याशी राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय मुद्दे पर ही चुनाव लड़ते हैं.

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