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तांत्रिक विधि से पूजन के लिए विख्यात है महागामा का प्राचीन दुर्गा मंदिर

मंदिर में मुख्य द्वार सहित चारों तरफ कुल 18 दरवाजा

महागामा प्राचीन दुर्गा मंदिर तांत्रिक विधि से पूजन के लिए विख्यात है. महागामा स्टेट के खैतोरी राजा मोल ब्रह्मा ने अपनी कुलदेवी मां दुर्गा के प्राचीन मंदिर का निर्माण 600 वर्ष पूर्व में सुरकी, चूना से करवाया था. मंदिर की कलाकृति सुंदर व अद्भुत है. प्राचीन कलाकृति से बना यह मंदिर संथाल परगना क्षेत्र में इकलौता है. मंदिर में मुख्य द्वार सहित चारों तरफ कुल 18 दरवाजा है. वहीं मंदिर की दीवार पर सुंदर नक्काशी की गयी है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते है. मंदिर की पश्चिमी दीवार पर प्राचीन लिपि में मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारी लिखी गयी है, जिसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है. शारदीय नवरात्र में राजा मोल ब्रह्म के वंशज दयाशंकर ब्रह्म द्वारा तांत्रिक विधि से कुलदेवी मां दुर्गा की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्र के दौरान मंदिर में अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है और कलश स्थापना पूजन के साथ ही मंदिर में दुर्गा सप्तशती पाठ और प्रतिदिन छाग बलि देने की प्राचीन परंपरा है. षष्ठी पूजन को राज परिवार के वंशज द्वारा मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेल वृक्ष के नीचे विधि पूर्वक जुड़वा बेल की पूजा अर्चना कर माता बेलभरनी को आमंत्रित किया जाता है. सप्तमी पूजा को अहले सुबह राज परिवार द्वारा माता बेलभरनी की पूजा अर्चना कर पारंपरिक ढोल बाजे के साथ मंदिर लाया जाता है. इस दौरान मां दुर्गा की अगुवानी करने को लेकर हजारों श्रद्धालु महिला-पुरुष अरहर डाली से बने झाड़ू, फूल बेलपत्र दूध सहित अन्य पूजन सामग्री से छर्रा एवं दंड देकर मंदिर परिसर पहुंचते है. मंदिर प्रांगण में राजपुरोहित जयशंकर शुक्ला,अरविंद झा द्वारा नव पत्रिका पूजन के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को गर्भ गृह में स्थापित किया जाता है. वहीं सप्तमी की रात्रि तांत्रिक विधि से विशेष निशा पूजा आयोजित की जाती है, जिसमें मां दुर्गा को 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है. अष्टमी को मंदिर परिसर में अहले सुबह से देर रात्रि तक डलिया चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. अष्ठमी की मध्य रात्रि मंदिर में फुलायस व तांत्रिक विधि से बली पूजा होती है. वहीं मंदिर प्रांगण में महागामा सहित क्षेत्र के दूरदराज से साधक सिद्धि पूजन करने के लिए पहुंचते हैं. नवमी पूजा को श्रद्धालुओं द्वारा मनोकामना पूर्ण होने पर हजारों बकरे की बलि दी जाती है. दसवीं पूजा की शाम पारंपरिक विधि से मां दुर्गा की प्रतिमा को भक्तजन कंधे पर उठाकर मां दुर्गा का जय घोष लगाते हुए बगल के पुराना पोखर में विसर्जित करते हैं. दुर्गा पूजा पर मंदिर परिसर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष भी दुर्गा पूजा को लेकर मंदिर की आकर्षक व भव्य सजावट का कार्य जारी है. मंदिर में दुर्गा सप्तशती के पाठ से माहौल भक्तिमय हो गया है.

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