22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध में गुमला के 3 बेटे हुए थे शहीद, प्रशासनिक महकमे में आज भी गुमनाम

Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध में शहीद हुए गुमला के जॉन अगस्तुस एक्का, बिरसा उरांव और विश्रम मुंडा को आज भी लोग याद रखे हैं. लेकिन, आलम देखिए कि सरकारी महकमें में ये लोग आज भी गुमनाम हैं. इन शहीदों के परिवार के लोग आज भी आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.

गुमला, दुर्जय पासवान : कारगिल युद्ध जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 के मई और जुलाई माह के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है. इस युद्ध में गुमला जिले के भी कई वीर सपूत शामिल थे. जिसमें गुमला जिले के तीन बेटे दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे. इनमें शहीद जॉन अगस्तुस एक्का, शहीद बिरसा उरांव व शहीद विश्राम मुंडा है. इन तीनों सपूतों को आज भी गुमला जिले के सैनिक बड़े सम्मान से नाम लेते हैं. लेकिन, सरकारी महकमें में ये लोग आज भी गुमनाम हैं.

गुमला के तीन बेटे कारगिल युद्ध में हुए थे शहीद

इन शहीदों की जीवनी लोगों को सेना के अधिकारी, जवान व रिटायर सैनिकों द्वारा बताया जाता है. भूतपूर्व सैनिक कल्याण संगठन गुमला के ओझा उरांव ने कहा कि गुमला से तीन बेटे 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. हम उन्हें नमन करते हैं. इन तीनों बेटों का भुलाया नहीं जा सकता है. कहा कि कारगिल युद्ध में देश के 500 से अधिक जवान शहीद हुए थे. हमारे वीर जवानों के आदम्य साहस के कारण भारत की जीत हुई थी. इस युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में जुलाई माह में कश्मीर के कारगिल जिले में हुई थी. इसे सशस्त्र संघर्ष भी कहा जाता है.

Also Read: जमशेदपुर : प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रहे टांगराइन के सरकारी स्कूल के बच्चे, अरविंद तिवारी ने ऐसे लाया बदलाव

सिसई के बिरसा उरांव कारगिल शहीद हैं

सिसई प्रखंड के जतराटोली शहिजाना के बेर्री गांव निवासी बिरसा उरांव कारगिल शहीद हैं. शहीद बिरसा उरांव ऑपरेशन विजय कारगिल में दो सितंबर, 1999 में शहीद हुए थे. बिरसा उरांव हवलदार के पद पर बिहार रेजिमेंट में थे. जवान से उन्हें लांस नायक व हलवदार के पद पर प्रोन्नति हुई थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय मध्य विद्यालय बेरी व मैट्रिक की परीक्षा नदिया हिंदू उवि लोहरदगा से 1983 में की थी. उनके पिता स्व बुदू उरांव व माता बिरनी देवी थीं. शहीद के दो संतान हैं. वर्तमान में उनकी बड़ी बेटी पूजा विभूति उरांव दारोगा के पद पर बहाल हुई है. उनका बेटा चंदन उरांव है. शहीद को छह पुरस्कार मिला है. जिसमें सामान्य सेवा मेडल नागालैंड, नाइन इयर लौंग सिर्वस मेडल भारत सरकार, सैनिक सुरक्षा मेडल, ओवरसीज मेडल संयुक्त राष्ट्र संघ, प्रथम बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल व विशिष्ट सेवा मेडल मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा किया गया. वहीं सेना के विभिन्न ऑपरेशनों में उन्होंने अपनी वीरता का दमखम दिखाया था. जिसमें ऑपरेशन ओचार्ड नागालैड, ऑपरेशन रक्षक पंजाब, यूएनओ सोमालिया टू दक्षिण अफ्रिका, ऑपरेशन राइनो असम, ऑपरेशन विजय कारगिल है.

शहीद अगस्तुस का शव छह दिन बाद पहुंचा था गांव

रायडीह प्रखंड की परसा पंचायत अंतर्गत तेलया गांव निवासी इग्नेश एक्का के पुत्र जॉन अगस्तुस कारगिल युद्ध में वर्ष 1999 में शहीद हुए थे. उनके पिता व परिवार के सदस्य आज भी गांव में रहते हैं. पत्नी व बेटा गुमला शहर में रहते हैं. गांव में परिवार आज भी गरीबी का दंश झेल रहा है. शहीद के पिता इग्नेस एक्का व शहीद का छोटा भाई अगस्टीन एक्का तेलया गांव में रहकर खेतीबारी कर अपना व अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं. वहीं, शहीद की पत्नी मिलयानी लकड़ा, उनके दो पुत्र सुकेश एक्का व नितेश पॉल एक्का गुमला के दाउदनगर में रहते हैं. शहीद के पिता इग्नेस एक्का कहते हैं कि हर वर्ष 26 जुलाई को पूरे भारत देश में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. पर ऐसा विजय दिवस मनाने का क्या फायदा जो इस युद्ध में हुए शहीदों व उनके परिवार को मान सम्मान तक ना मिले. मेरा सपना है कि मेरे पुत्र की प्रतिमा बनकर मेरे गांव के चौराहे में लगे. जिससे गांव के और भी नौजवान, बच्चे देखकर फौज में जाने के लिए प्रेरित हो. साथ ही शहीद के गांव का विकास हो. शहीद की पत्नी मिलयानी लकड़ा ने कहा कि सरकार हमारी मदद करें. पति के शहीद होने के बाद हमारे परिवार को सिर्फ पेंशन का लाभ मिला. वह भी ढाई सालों से नाम में गड़बड़ी के कारण बंद था जो अब जाकर ठीक हुआ है. मेरे दो पुत्र हैं. मैं सरकार से मांग करती हूं कि मेरे दोनों पुत्र में से किसी एक को सरकारी नौकरी दे. जिससे परिवार चलाने में हमें कुछ सहायता प्राप्त हो सके.

Also Read: झारखंड : गुमला के घाघरा में जन्म प्रमाण पत्र बनाने को लेकर उपमुखिया व पंचायत सचिव के बीच जमकर हुई बहस

शहीद की कहानी पिता की जुबानी

शहीद के पिता इग्नेश एक्का बताते हैं कि मेरा पुत्र जॉन अगस्तुस जम्मू कश्मीर में आर्मी हवलदार मेजर के रूप में पदस्थापित थे. उस समय फोन या मोबाइल का जमाना नहीं था. वहां से वे चिठियां लिखा करते थे. वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 25 दिसंबर 1999 को करीब सुबह 10:00 बजे उसकी शहादत हुई और उसी दिन हमारा सबसे बड़ा त्यौहार क्रिसमस गांव में मनाया जा रहा था. हमें यह खबर भी नहीं थी कि हमारा बेटा शहीद हो गया है. हम सभी परिवार हंसी खुशी त्यौहार मना रहे थे. शहादत के छह दिन बाद 31 दिसंबर को मेरे बेटे शहीद जॉन अगस्तुस का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा. पार्थिव शरीर देखकर मैं शिथिल सा पड़ गया. पूरा गांव एक तरफ नये वर्ष का स्वागत में था. वहीं गांव के बेटे का पार्थिव शरीर देखकर सारा खुशी गम के माहौल में बदल गया. मुझे मेरे बेटे की शहादत पर गर्व है. मैं ऐसे 10 बेटों को अपने देश के लिए कुर्बान कर सकता हूं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें