Makar Sankranti 2022: झारखंड के जनजातीय बहुल गुमला जिले में मकर संक्रांति के अवसर पर भव्य मेला लगाने की प्राचीन परंपरा है. यह परंपरा वर्षों पुरानी है. रायडीह प्रखंड के हीरादह, सिसई के नागफेनी, बसिया प्रखंड के बाघमुंडा में मेला लगता है. इसके अलावा अन्य प्रखंडों में भी मेला लगता है, लेकिन नागफेनी में लगने वाले मेले में झारखंड सहित ओड़िशा, छत्तीसगढ़ व बिहार राज्य के लोग आते हैं. हजारों भक्त पूरी श्रद्धा के साथ कोयल नदी में डुबकी लगाते हैं और भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा की पूजा अर्चना करते हैं.
नागफेनी में लगभग 40 सये 50 हजार भक्त पूजा के लिए आते हैं. वहीं कोयल नदी के किनारे बैठकर तिल, गुड़, चूड़ा, दही खाते हैं. रायडीह प्रखंड से 22 किमी दूर हीरादह गांव में 14 जनवरी 1954 से मकर संक्रांति के अवसर पर रथयात्रा की परंपरा शुरू हुई है, जो अनवरत जारी है. सिसई प्रखंड के नागफेनी कोयल तट के किनारे मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाले मेले का इतिहास 62 वर्ष भी अधिक पुराना है. एनएच रोड के किनारे होने के कारण यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. नागफेनी में देखने के कई प्राचीन ऐतिहासिक स्रोत है. इस वजह से यहां लोगों की भीड़ देखते ही बनती है. पुजारियों के अनुसार नागफेनी में 14 जनवरी को मेला का आयोजन किया गया है.
Also Read: दारोगा लालजी यादव का पार्थिव शरीर पहुंचा साहिबगंज,4 घंटे बाद हटा सड़क जाम, आक्रोशित लोग कर रहे थे ये मांगमकर संक्रांति को लेकर गुमला जिले के सभी 12 प्रखंडों में जगह-जगह तिलकुट की दुकान सजी हुई है. दूसरे राज्य से आये कारीगर तिलकुट बनाकर बेच रहे हैं. चारों तरफ तिलकुट की सोंधी महक लोगों को मकर संक्रांति का अहसास दिला रहा है. गुमला शहर में 50 से अधिक तिलकुट दुकान लगी है. जहां गुरुवार को खरीदारों की भीड़ देखी गयी.
जनजातीय बहुल गुमला जिले में 1700 के आसपास नागवंशी राजाओं का शासन था. नागवंशी राजा उस समय अपनी शक्ति व राज्य विस्तार के लिए मेला लगाते थे. कलांतर में यह मेला का रूप धारण कर लिया. नागवंशी राजाओं द्वारा शुरू की गयी मेला की परंपरा आज बृहत रूप ले लिया है. यही वजह है कि जनजातीय बहुल गुमला जिले में मेला लगाने की प्राचीन परंपरा है. समय के साथ मेला का स्वरूप बदला है. लेकिन आज भी गुमला में लोगों का विश्वास भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के प्रति है. मकर संक्रांति के अवसर पर नागफेनी व हीरादह नदी में डुबकी लगाने के साथ लोग भगवान की जरूर पूजा करते हैं. नागफेनी मंदिर के मुख्य पुजारी मनोहर पंडा ने कहा कि नागफेनी में मेला लगाने की प्राचीन परंपरा आज भी जीवित है. नागवंशी शासनकाल में हमारे वंशज यहां पूजा कराते थे. अब हमलोग अपने वंशजों की राह पर चलते हुए पूजा कराते हैं. नागफेनी नदी के तट पर चूड़ा, गुड़, तिलकुट खाने की परंपरा रही है.
Also Read: Jharkhand News: गढ़वा के रमकंडा में 90 फीसदी मतदाताओं को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज, 45 फीसदी को दूसरी डोजगुमला में आज से 100 वर्ष पहले घोड़ा गाड़ी व बैलगाड़ी की परंपरा थी. उसी से लोग मेला आते थे. 50 से 100 किमी की दूरी पर रहने वाले लोग एक या फिर दो दिन पहले मेला के लिए निकलते थे. लेकिन अब समय बदल गया है. इस हाईटेक युग में मोटर गाड़ी है. इसलिए आने जाने का साधन सुगम हुआ, लेकिन मेला का महत्व आज भी वर्षों पुराना है.
गुमला में मेला का सामाजिक महत्व इस मायने में है कि शादी ब्याह, परिजनों से मिलन व विचारों का आदान प्रदान होता है. इस दिन दूर दराज के लोग मेला देखने पहुंचते हैं. गांव की परंपरा के अनुसार मेला में लड़का लड़की देखा देखी होते है. अगर पसंद आ गया, तो तिथि तय कर शादी की रस्म निभाई जाती है. वहीं दूर दराज के रिश्तेदार मेला में आते हैं. जहां घर व परिवार के कुशल मंगल के बारे में पूछा जाता है. संदेश के रूप में मिठाई का आदान प्रदान किया जाता है. रथयात्ना मेला का महत्व गांव के लोगों के लिए काफी मायने रखता है. इसी परंपरा के तहत मेले में लोगों की भीड़ दूर दूर से आती है.
रिपोर्ट: दुर्जय पासवान