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गुमला में सबसे पहले सिख समुदाय ने किया था रावण दहन

1984 में तत्कालीन डीसी द्वारिका प्रसाद सिन्हा ने पीएइ स्टेडियम में रावण दहन की अनुमति दी, तब से निरंतर रावण दहन की परंपरा कायम है. लेकिन अब रावण दहन में लाखों रुपये का खर्च आता है

जगरनाथ पासवान, गुमला:

शांति, सद्भाव व सर्वधर्म के बीच गुमला में रावण दहन की 64 वर्ष पुरानी परंपरा रही है. पंजाबी बंधुओं (सिख समुदाय) की पहल पर वर्ष 1959 पर पहली बार रावण दहन की शुरुआत हुई. 30 वर्ष पूर्व 20 फीट ऊंचे रावण का दहन किया जाता था, लेकिन अब 50 फीट से ऊंचे रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. इस वर्ष भी परमवीर अलबर्ट एक्का स्टेडियम गुमला में दहन संध्या साढ़े छह बजे किया जायेगा. हरजीत सिंह ने बताया कि बाजारटांड़ निवासी स्व भाल सिंह व पंजाबी बंधुओं के प्रयास से रावण व कुंभकरण के पुतला दहन की नींव रखी गयी थी. उस समय एक लकड़ी के ठेले पर रावण का पुतला रख कर शहर का भ्रमण कराया जाता था. प्रत्येक व्यवसायी रावण दहन समिति को 25 पैसे की सहयोग राशि देते थे.

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40 से 50 रुपये में धूमधाम से रावण का दहन किया जाता था. इसके बाद वैद्यनाथ साहू, वीरेंद्र झा व अन्य लोगों ने रावण दहन की कमान संभाली. बाजारटांड़ की जमीन का अतिक्रमण हो गया. इसके बाद दो जगहों पर रावण दहन होने लगा. महावीर चौक स्थित पुराना बस पड़ाव (वर्तमान में पटेल चौक) के समीप रावण दहन किया जाने लगा. इसके बाद सर्वसम्मति से कचहरी परिसर में एक ही जगह पर रावण दहन की परंपरा शुरू हुई. 1984 में तत्कालीन डीसी द्वारिका प्रसाद सिन्हा ने पीएइ स्टेडियम में रावण दहन की अनुमति दी, तब से निरंतर रावण दहन की परंपरा कायम है. लेकिन अब रावण दहन में लाखों रुपये का खर्च आता है. रावण दहन में रंग-बिरंगी गगनचुंबी आतिशबाजी के बीच असत्य पर सत्य की अनूठी झलक पेश की जाती है. इस झलक को देखने के लिए गुमला ही नहीं सुदूरवर्ती क्षेत्रों के हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है. वर्षों तक गुमला के समाजसेवी अनिल कुमार ने स्टेडियम में रावण दहन कराया. इस बार उज्जवल केसरी के नेतृत्व में रावण दहन किया जायेगा.

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