बड़कागांव (हजारीबाग) : हमारी मां हमारे लिये सुरक्षा कवच की तरह होती है, क्योंकि वो हमें सभी परेशानियों से बचाती है. वो कभी अपनी परेशानियों का ध्यान नहीं देती और हर समय बस हमें ही सुनती है. मां को सम्मान देने के लिए हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मातृ दिवस (Mother’s Day) के रूप में मनाया जाता है. विश्व महामारी कोरोना (Corona Pandemic) से बचने के लिए जहां लोग घरों में रहने को मजबूर हैं, वहीं कई ऐसे मां हैं, जो आज भी इस जंग में अपने बच्चों का ख्याल रखते हुए लोगों की सुरक्षा के लिए बखूबी अपना कर्तव्य निभा रही हैं. ऐसी ही योद्धा मां से मिलाती संजय सागर की यह रिपोर्ट.
Also Read: प्रशांत किशोर के हाथ में राज्य सौंपकर खुद क्वारेंटाइन हो गयी हैं ममता बनर्जी : दिलीप घोष
नापो पंचायत की मुखिया सोनी देवी (पति चंद्रिका साव) के 5 महीने का पुत्र है. वह अपने पुत्र का ख्याल करते हुए भी अपने पंचायत में कोरोना की रोकथाम में हमेशा लगी रहती है. कभी जरूरतमंदों तक अनाज का वितरण कराने में जुटी रहती है, तो कभी विभिन्न गांवों को सैनिटाइज कराते नजर आती है. इसके अलावा ग्रामीणों के बीच मास्क वितरण, तो कभी सहिया दीदियों के साथ मिलकर लोगों को जागरूक करने में जुटी है.
आदर्श मध्य विद्यालय की शिक्षिका नीलू कुमारी की 5 साल की पुत्री है. वह अपनी बच्ची का ख्याल रखते हुए अन्य बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देने में जुटी हैं. निलू पहली से आठवीं के विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा दे रही है. इसी बीच अगर कहीं स्कूल जाना पड़ जाये, तो स्कूल से घर लौटने के बाद जब तक स्नान नहीं कर लेती, तब तक अपनी पुत्री को गले से नहीं लगा पाती. कोरोना के डर से दूर से ही अपनी बच्ची को देख कर संतोष करना पड़ता है. जब स्नान हो जाता है, तब ही बच्ची को गले लगा पाती है. इस बीच का क्षण निलू को काफी कचोटता है.
प्रियंका कुमारी (पति ओम प्रकाश राणा) चमगढ़ा स्वास्थ्य केंद्र, बड़कागांव की एएनएम हैं. इनकी एक माह की पुत्री पलक है. वह हर दिन अपने घर गरिकलां से स्वास्थ्य केंद्र पहुंचती है. कोरोना की रोकथाम में प्रियंका भी दूसरों की सेवा में लगी है. एक माह की पुत्री को घर में छोड़ काम पर जाना अच्छा तो नहीं लगता, लेकिन दूसरों की सेवा करना भी जरूरी है. प्रियंका कहती हैं कि कभी-कभार तो ऐसा होता है जब स्वास्थ्य केंद्र से लौटती हूं, तो बेटी रोते रहती है, लेकिन उसे ले नहीं पाती हूं. जब स्नान हो जाती है, उसके बाद ही अपनी बच्ची को गोद में ले पाती हूं. उस वक्त मैं काफी इमोशनल हो जाती हूं.
बड़कागांव मध्य पंचायत की सहिया नूर फातिमा (पति मो मकसूद) की दो बच्ची है. एक 10 वर्ष की कैनात फातिमा और दूसरी डेढ़ वर्ष की जायाका फातिमा. सहिया होने के कारण गांव-गांव और गली-गली सर्वे भी करना पड़ता है. घर में दो पुत्री को छोड़ आज भी काम करने घर से दूर जाती है. सर्दी, खांसी, बुखार जैसे मरीजों के लिए सर्वे का काम करती है. विभिन्न टोलों में सेविकाओं के साथ बैठक करती है. नूर कहती है कि सहिया होने के कारण घर से बाहर काम करने तो जाना पड़ता है, लेकिन मन हमेशा अपनी बच्चियों की ओर लगा होता है. घर वापसी के बाद तुरंत बच्चियों से नहीं मिलना काफी पीड़ादायक होता है, लेकिन कोरोना वायरस की डर से कुछ देर उससे दूर रहना लाजिमी होता है.