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दुमका में जश्न का माहौल था, खूब मिठाइयां बांटी गयी

देश को मिली आजादी पर हजारीबाग के रामनगर निवासी सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने 15 अगस्त 1947 की सुबह की यादों के साझा किया.

हजारीबाग.

देश को मिली आजादी पर हजारीबाग के रामनगर निवासी सुरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने 15 अगस्त 1947 की सुबह की यादों के साझा किया. उन्होंने बताया कि 15 अगस्त की सुबह पूरे शहर में जश्न का माहौल था. यह देश के लिए ऐतिहासिक दिन था. लोग सड़कों पर उतर कर खुशियां मना रहे थे. वर्ष 1947 में मैं दुमका जिला स्कूल में पांचवीं कक्षा का छात्र था. मेरे पिताजी पुलिस विभाग में कार्यरत थे. 14 अगस्त गुरुवार को पिताजी ऑफिस से घर आये और बताया कि देश आजाद हाे रहा है. अंग्रेजी शासन खत्म होने वाला है और कांग्रेस का राज कायम होगा. उस समय मैं, अईया (मां), मेरी बड़ी बहन व बड़े भाई की खुशी का ठिकाना न रहा. हमें इतना मालूम था कि हम अंग्रेजों के गुलाम हैं और अब गुलामी से मुक्त होने जा रहे हैं. 15 अगस्त 1947 शुक्रवार की सुबह जब घर से बाहर निकले, तो देखा कि लोगों को हुजूम उमड़ पड़ा है और लोग जश्न मना रहे हैं. इसमें हर वर्ग के लोग शामिल थे. उस समय हिंदू, मुसलिम वाली कोई बात नहीं थी. लोग महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू व सुभाषचंद्र बोस के जयकारे लगा रहे थे. 15 अगस्त की सुबह फ्रेजर रोड (अब गांधी मैदान) कचहरी के समीप लोगों की भीड़ जुटने लगी. देखते ही देखते पूरा मैदान भर गया. भाषण भी हाेता रहा. मिठाईयां भी बांटी गयी. पूरे बाजार को सजाया गया था. रात में घरों में लोगों ने दीप जला कर दीपावली मनायी. बड़े लोग जो आजादी पर चर्चा कर रहे थे, उनके बीच मैं और मेरे कुछ साथी भी जाकर बैठ गये और उनकी बातों को सुन रहे थे. लोग चर्चा कर रहे थे कि देश तो आजाद हो गया, लेकिन अंग्रेजों ने देश के दो टुकड़े कर हिंदू-मुसलमानों को बांट दिया. देश को दो टुकड़ों में बांट देने से लोगों में असंतोष था. इनका गुस्सा मोहम्मद जिन्ना के प्रति था. कह रहे थे कि जिन्ना ने ही नाराज होकर देश का दो टुकड़ा कराये हैं. अगर सुभाष चंद्र बोस होते, तो देश के दो टुकड़े नहीं होते. लोग और भी बातें कर रहे थे, जो मुझे समझ में नहीं आया. लेकिन उस दिन को याद कर आज भी बड़ी खुशी होती है. मैं यही कहना चाहूंगा कि बड़ी मुश्किल से देश को आजादी मिली है, कई लोगों ने कुर्बानियां दी हैं. इन बातों को अपने बच्चों को भी बतायें, ताकि वे आजादी का महत्व समझ सकें.

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