अप्रैल का महीना खत्म होने को आया है और अभी पूरे देश में भीषण गर्मी पड़ रही है. उत्तर भारत सहित देश के लगभग हर क्षेत्र में तापमान बढ़ा हुआ है और अप्रैल महीने में पड़ रही इस गर्मी से सभी परेशान तो हैं ही उन्हें यह चिंता भी सता रही है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. कोरोना महामारी से उबरने की कोशिश कर रहा देश अब बढ़ती गरमी से परेशान है.
लू के थपेड़े शरीर से नमी सोख रहे हैं और बच्चे- बूढ़े सहित सभी परेशान है. जलवायु परिवर्तन का इतना बुरा असर अबतक देखने को नहीं मिला था. झारखंड जो वनाच्छादित प्रदेश है वह भी प्रचंड गर्मी की चपेट में है और कई शहरों में तापमान 43-44 के आसपास पहुंच गया है. इन तमाम स्थितियों की वजह हमें आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट में मिल जाती है.
आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के जिस मुकाम पर हम पहुंच गये हैं, अगर हम अब नहीं सुधरे और कुछ ठोस नहीं किया तो धरती पर जीवन असंभव हो जायेगा . आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन बढ़ने के कारण मौसम में अप्रत्याशित बदलाव आयेंगे और अतिवृष्टि या अनावृष्टि, बाढ़ की विभीषिका और भयंकर गरमी का सामना लोगों को करना पड़ सकता है. मौसम की यह अनियमितता देश में कृषि पर भी हानिकारक प्रभाव डालेगी. साथ ही देश के तटीय इलाकों पर भी इसका कुप्रभाव दिखेगा.
आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्लामेंट चेंज की वजह से भारत में चावल का उत्पादन प्रभावित होगा. आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी समय है हमें जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों पर नजर बनाकर रखनी होगी. आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 2025 तक उच्च स्तर पर ले जाकर 2030 तक उसे नियंत्रित करना होगा.
भारत ने 2070 तक शून्य उत्सर्जन करने की बात कही है और सरकार भी इस ओर लगातार प्रयास कर रही है. कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर कम करके ऊर्जा के नये स्रोतों पर काम हो रहा है. सौर ऊर्जा इसका सबसे बड़ा विकल्प है. पिछले कुछ महीनों से बिजली संयंत्रों में जिस तरह कोयले की कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है, उससे भी लोग वैकल्पिक ऊर्जा को अपनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं. झारखंड जैसे राज्य में सरकार इसके लिए प्रयासरत भी है. साथ ही यह हम सबको समझना होगा कि अगर हम ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करते रहे तो अपनी प्यारी धरती को बचा नहीं पायेंगे.