Jamshedpur News : बिष्टुपुर स्थित रामदास भट्ठा सामुदायिक भवन में माझी परगना महाल धाड़ दिशोम अंतर्गत जुगसलाई तोरोप के 18 मौजा पुड़सी पिंडा जमशेदपुर का वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ. सम्मेलन में सभी 18 मौजा के माझी बाबा, नायके बाबा, पारानिक बाबा, गोडेत बाबा, कुड़ामनायके व जोग माझी समेत स्वशासन व्यवस्था के अन्य प्रमुखों को सामाजिक पगड़ीपोशी कर सम्मानित किया गया. मुख्य अतिथि जुगसलाई तोरोप परगना दशमत हांसदा, विशिष्ट अतिथि के रूप मेें देश पारानिक दुर्गाचरण मुर्मू व कदमा माझी बाबा बिंदे सोरेन ने स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों को सामाजिक पगड़ीपोशी कर सम्मानित किया. मौके पर मुख्य अतिथि जुगसलाई तोरोपपारगनादशमत हांसदा ने वर्तमान समय में आदिवासी समाज के स्थिति-परिस्थिति, समाज के सर्वांगीण विकास, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति-रिवाज, धर्म-संस्कृति, पूजा पद्धति, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्वालंबन, व्यवसाय, जल-जंगल-जमीन को व संविधान में प्रदत्त आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार आदि बिंदु पर अपना विचार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की अस्तित्व को बचाने के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक रूप से एकजुट होने की जरूरत है. वर्तमान समय में हमारे युवा पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, रीति-रिवाज, पूजा पद्धति धर्म संस्कृति से दूर हो रहे हैं. उन्हें समाज जोड़ने की जरूरत है. क्योंकि उन्हीं के कंधे पर समाज का दायित्व है. उन्होंने कहा कि स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख नि:स्वार्थ भाव से समाज को कुशल नेतृत्व प्रदान करें. गांव की समस्याओं पर स्वशासन व्यवस्था के सहयोगियों के चर्चा करें और उनका हल निकालें. कार्यक्रम में आसेका महासचिव शंकर सोरेन, लेदेम मुर्मू , सुखराम किस्कू, गुरुपोदो हांसदा, जितराय हांसदा, विजय टुडू, जाेसेन मार्डी, बलराम हांसदा, कुशाल हांसदा, सुनील हांसदा, बिरसिंह हेंब्रम, सुरेंद्र टुडू, सावना मुर्मू, सीता मुर्मू, कारना मुर्मू, मेनका बाला हांसदा, शकुंतला सोरेन, गौरी मुर्मू , मनी सोरेन, सुनीता हांसदा समेत काफी संख्या आदिवासी समाज के महिला-पुरूष मौजूद थे.
घर-घर में शिक्षा का अलख जलायें: दुर्गाचरण मुर्मू
विशिष्ट अतिथि दुर्गाचरण मुर्मू ने कहा कि समाज में बदलाव लाने के लिए शैक्षणिक स्थिति को मजबूत करना होगा. इसलिए माता-पिता व अभिभावक अपने बच्चों को शिक्षित जरूर बनावें. घर-घर में शिक्षा का दीप जलेगा तो समाज का अस्तित्व व वजूद बचेगा. सरना धर्म को अभी तक मान्यता नहीं मिला है. इसके लिए संताल समेत सभी जनजातीय समुदाय से तालमेल बनाने की जरूरत है. इसी तरह संवैधानिक हक व अधिकार के मसले पर भी तमाम आदिवासी समुदाय को एक मंच पर आने की जरूरत हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज सामाजिक दृष्टिकोण से कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटा हुआ है. लेकिन कई छोटे-छोटे समाज मिलकर ही एक वृहत आदिवासी समाज बनता है.
अपनी मातृभाषा व लिपि का सम्मान करें: बिंदे सोरेन
माझी बाबा बिंदे सोरेन ने कहा कि आदिवासी समाज का समृद्ध व विकसित इतिहास है.संताल समेत सभी आदिवासी समाज अपनी मातृभाषा में बोलचाल करें. अपनी मातृभाषा में नि:संकोच होकर व्यवहार करें. आदिवासी जनजातीय भाषा समूह में से संताली को भारतीय आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है. मातृभाषा संताली की अपनी लिपि है. जिसका अविष्कार गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू ने किया है. इस लिपि को घर-घर तक कैसे पहुंचाया जाये. इसपर तमाम स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों को चिंतन-मंथन करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जिस तरह समाज के अगुवाओं ने सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान को बनाये रखने के लिए महत्ती रोल अदा किया है. अब मातृभाषा संताली के लिए भी मुहिम चलाने की जरूरत है. सरना धर्म आज नहीं तो कल मिलना तय है. इसके निराश व हताश होने की जरूरत नहीं है.लगतार अपनी मांगों को उचित मंच पर रखें.