Diwali 2022: कोरोना काल के दो साल बाद बाजार में चहल-पहल बढ़ी है. इसलिए इस बार अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है. पटाखा कारोबार भी इस बार बेहतर व्यवसाय की उम्मीद लगाये हैं. इस बार शहर में ग्रीन पटाखाों की खेप भी पहुंच रही है. इससे वातावरण में कम प्रदूषण भी फैलेगा.
जितने पटाखे, उतनी खूबी
दुकानदार आशीष गुलाटी बताते हैं कि बाजार में ग्रीन पटाखे की इस बार नयी वेराइटी आयी है. विंगो चकरी कलरफुल रंग देती है. ड्रोन जमीन पर स्पिन कर आसमान में रंग-बिरंगे रंग फैलाता है. पलक व्हील में अनार घुमाने पर चकरी घुमती है. चाइलेंजर रॉकेट ऊपर जाकर आसमान को रंगीन कर देता है. यह सीटी मारते हुए ऊपर जाता है. जंपर मेढ़क की तरह तीन बार छलांग लगाकर फटता है.
बढ़ गयी है 25 प्रतिशत कीमत
दुकानदार रौनक बताते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार 25 प्रतिशत तक कीमत बढ़ गयी है. उन्होंने बताया कि जमशेदपुर शहर की बात करें, तो लोगों के मूड को देखते हुए इस बार 10-12 करोड़ का कारोबार होने का अनुमान है.
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल नहीं होता है या बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है. एल्यूमीनियम की मात्रा भी काफी कम रहती है. इस वजह से ऐसे पटाखे फोड़ने से वातावरण में कम प्रदूषण फैलता है. इस पटाखे से 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण होने का दावा किया जाता रहा है.
प्रदूषण जितना कम फैले उतना अच्छा : ADM
एडीएम विधि व्यवस्था नंद किशोर लाल बताते हैं कि वातावरण में जितना कम प्रदूषण फैले उतना अच्छा. इसलिए सभी को ग्रीन पटाखे फोड़ने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि आवाज वाले पटाखे कम फोड़ें. बच्चे बड़ों की देखरेख में ही पटाखे फोड़ें.
प्रदूषण रोकने का स्थायी समाधान नहीं : डॉ जीएस मिश्रा
ग्रीन पटाखों से पर्यावरण को बिल्कुल नुकसान नहीं होता, यह सोचना गलत है. लोयोला स्कूल में केमिस्ट्री के पूर्व एचओडी डॉ जीएस मिश्रा बताते हैं कि ग्रीन पटाखे प्रदूषण रोकने का कोई स्थायी समाधान नहीं हैं. इससे वातावरण कम प्रदूषित होता है, लेकिन प्रदूषित तो होता है. वे बताते हैं कि ग्रीन पटाखे में बारूद के साथ सल्फर होते हैं. जिसके जलने के बाद सल्फर डाइऑक्साइड बनाता है. जो पानी में मिलकर एसिड बनाता है. बारूद में सोडियम नाइट्रेट भी रहता है. जो जलकर नाइट्रोजन के अलग-अलग गैस बनाते हैं. ये सभी वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. ग्रीन पटाखे में इसकी मात्रा कम होती है.
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वातावरण में जाते हैं धातु कण
डॉ जीएस मिश्रा बताते हैं कि पटाखे में विभिन्न धातु के कण इस्तेमाल किये जाते हैं. इसके कारण जलने पर लाल, हरा रंग दिखायी देता है. इसमें स्टोनशियम, एल्युमीनियम, बेरियम आदि इस्तेमाल किये जाते हैं. इन धातुओं के कण वातावरण में घुल जाते हैं. जो श्वास और फेफड़े के लिए बहुत नुकसानदेह है. डेसिबल लिमिट क्रॉस करने पर भी लोगों को नुकसान हो सकता है.
हार्ट पेशेंट और बुजुर्गों के लिए शोर वाले पटाखे हो सकता है नुकसानदेह
सीनियर फिजिशियन डॉ बीके शरण ने कहा कि हार्ट पेशेंट और बुजुर्गों के लिए अधिक शोर वाले पटाखे नुकसानदेह हो सकते हैं. पटाखा फोड़ने से फैले प्रदूषण से सांस फूलना, कफ, एलर्जी, सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमें घर से दूर खुले मैदान में पटाखा फोड़ना चाहिए.
कैसे जलायें पटाखे
– हर प्रकार के पटाखे खुले मैदान में फोड़ने की कोशिश करें
– मैदान न रहे, तो घर की खुली छत पर चले जाएं
– बड़ों की देखरेख में ही पटाखे फोड़ें
– किसी भी आवाज वाले पटाखे में दूर से आग लगाएं व फूटने से पहले दूर हट जाएं
– फुलझड़ी के अलावा किसी भी प्रकार के पटाखे हाथ से न छोड़ें
– रॉकेट आदि आसमानी पटाखे किसी बोतल आदि की मदद से ही फोड़ें
– घर के अंदर पटाखे तो दूर, फुलझड़ी भी न फोड़ें. इससे प्रदूषण घर के अंदर रह जायेगा. जिससे खाने-पीने और सोने में दिक्कत हो जायेगी
– छोटे बच्चे और बूढ़ों को पटाखे से दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए
– हृदय रोगी भी आवाज वाले पटाखे से दूर रहें
– जहां तक हो सके ग्रीन पटाखे फोड़ें
– पटाखा फोड़ने के बाद हाथ, आंख, नाक आदि अच्छी तरह धोने के बाद ही भोजन करें या बिस्तर पर जाएं.
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यह बिल्कुल न करें
– सड़क पर पटाखे बिल्कुल नहीं फोड़ें
– छत से सड़क पर पटाखे नहीं फेंके
– पशुओं को पटाखे से टीज न करें.