Jamshedpur News: कुड़मी समाज को किसी भी कीमत पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल नहीं होने दिया जायेगा. कुड़मी समाज लाभ लेने के लिए एसटी की सूची में शामिल होना चाहता है. यदि कुड़मी एसटी बनते हैं, तो असली आदिवासी नौकरी, रोजी-रोजगार समेत अन्य सरकारी सुविधाओं से वंचित हो जायेंगे. वे हाशिये पर चले जायेंगे. कुड़मियों की इस मांग के खिलाफ कोल्हान से आंदोलन का बिगुल फूंका जा रहा है, जिसका असर पूरे देश में दिखेगा. ये बातें शनिवार को पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, पूर्व सांसद चित्रसेन सिंकू, बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर देवेंद्र नाथ चांपिया, माझी बाबा दुर्गाचरण मुर्मू व आदिवासी समाज के अन्य नेताओं ने कही.
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एसटी का दर्जा देने की कुड़मियों की मांग का आदिवासी संगठनों ने किया विरोध
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कोल्हान के 25 आदिवासी संगठनों ने आंदोलन का बिगुल फूंकने का आह्वान किया
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पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, पूर्व स्पीकर देवेंद्रनाथ चांपिया, पूर्व सांसद चित्रसेन सिंकू ने रखे विचार
25 सितंबर को झारखंड सरकार का कुड़मी के साथ वार्ता
जमशेदपुर सर्किट हाउस में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कोल्हान के 25 आदिवासी संगठनों ने संयुक्त रूप से कुड़मी को एसटी बनाने की मांग का विरोध किया. कहा गया कि कुड़मी समाज की ओर से विगत 20 सितंबर को रेल चक्का जाम किया गया. झारखंड सरकार ने 25 सितंबर को कुड़मी को वार्ता के लिए बुलाया है. इसमें जनजाति शोध संस्थान (टीआरआइ) के उच्च अधिकारियों को भी शामिल किया गया है.
कुड़मी को एसटी बनाने में झारखंड सरकार कर सकती है सहयोग
अन्य आदिवासी संगठनों ने आशंका जताई है कि इस वार्ता में टीआरआइ दबाव में आकर कुड़मी को एसटी बनने में सहयोग प्रदान कर सकता है. ऐसे में आदिवासी समाज के अंतर्गत आने वाले हो, मुंडा, संताल, भूमिज, खड़िया, बिरहोर समेत अन्य लोग आंदोलन के लिए एकजुट हो रहे हैं. आदिवासी समाज आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है. सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन किया जायेगा.
क्या कहते हैं कुड़मी
बता दें कि कुड़मी जनजाति 1950 से अब तक लगातार 73 वर्षों से अपनी संवैधानिक पहचान की लड़ाई लड़ रही है और केंद्र सरकार से दो मुख्य मांगों को लेकर संघर्षरत है. इनमें कुरमी /कुड़मी (महतो) को अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने तथा कुड़माली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लगातार आंदोलन के माध्यम से की जा रही है. कुड़मी संगठनों की मानें तो अर्जुन मुंडा के झारखंड के मुख्यमंत्री रहते 2004 में 1913 और 1938 सेंसस के आधार पर कैबिनेट से पास करके कुरमी/कुड़मी (महतो) को अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने की अनुशंसा केंद्र सरकार से की जा चुकी है, किंतु वर्तमान में अर्जुन मुंडा के जनजातीय मामले के केंद्र में मंत्री होने के बावजूद कुड़मी समाज की संवैधानिक मांगों की अनदेखी की जा रही है.
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