जामताड़ा : जामताड़ा के साइबर अपराधी अब ‘चैट जीपीटी’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ की मदद से ठगी के ऐप बना रहे हैं. इन ठगों ने पहले सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा. इसके बाद चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से खुद ही ऐप बनाने के विशेषज्ञ बन गये हैं. अब ये अपना ऐप दूसरे ठगों को 20-25 हजार रुपये में बेच रहे हैं. 10वीं-12वीं पास इन साइबर अपराधियों द्वारा बनाये गये ऐप को डाउनलोड करते ही मोबाइल, लैपटॉप का नियंत्रण उनके पास चला जाता है और वे अपनी मर्जी से कुछ भी करने में सक्षम हो जाते हैं.
जांच के दौरान पाये गये 100 से ज्यादा ऐप
जामताड़ा पुलिस द्वारा साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी के बाद जारी जांच-पड़ताल के दौरान इन तथ्यों की जानकारी मिली है. साथ ही 100 से ज्यादा इस तरह के ऐप पाये गये हैं. जामताड़ा एसपी एहतेशाम वकारिब ने साइबर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रशिक्षु आइपीएस राघवेंद्र शर्मा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया. इसमें प्रशिक्षु डीएसपी चंद्रशेखर और इंस्पेक्टर जयंत तिर्की को शामिल किया.
छह साइबर अपराधियों को किया गया गिरफ्तार
टीम ने 25 जनवरी को छह साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया. इसमें महबूब आलम, सैफुद्दीन अंसारी, आरिफ अंसारी, जसीम अंसारी, शेख बेलाल और अजय मंडल शामिल हैं. इनमें महबूब और अजय मंडल पहली बार गिरफ्तार हुए हैं. ये सभी 415 साइबर ठगी के मामले में शामिल रहे हैं. इन लोगों ने 11 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी है.
एक साल पहले सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ली ऐप बनाने की ट्रेनिंग
पुलिस की जांच में पाया गया कि इन अपराधियों ने एक साल पहले एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ऐप बनाना सीखा. इसके बाद खुद ही ऐप बना कर बेचने लगे, ताकि पुलिस की नजर से बचे रहें. इन साइबर अपराधियों द्वारा ऐप बनाने में किसी तरह की परेशानी होने पर चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जाती है. ऐप बना कर बेचने से पहले उसे वायरस पोर्टल पर डालकर यह देखते हैं कि इसमें कोई वायरस है या नहीं. इसके बाद चैट जीपीटी की मदद से वायरस हटाने और कोडिंग करने के बाद इसे दूसरे साइबर अपराधियों को बेचते हैं
ठगी का सॉफ्टवेयर बेचने के लिए बनाया है अपना वेब पोर्टल
गिरफ्तार सभी अपराधी 10वीं-12वीं पास हैं. महबूब, सैफुद्दीन और शेख बेलाल साइबर अपराधियों के बीच डीके बॉस के नाम से जाने जाते हैं. इसी नाम से वह दूसरे साइबर अपराधियों को ठगी के बनाये गये अपने ऐप बेचते हैं. ठगी के लिए बनाये गये ऐप बेचने के लिए इन्होंने वेब पोर्टल भी बना रखा है. विभिन्न तरह का ब्योरा रखने के लिए सर्वर में स्पेस भी खरीद रखा है. पुलिस की गिरफ्त में आये साइबर अपराधी दूसरे साइबर अपराधियों को ऐप बेचने के अलावा 40 प्रतिशत कमीशन पर बैंक अकाउंट की सुविधा देते हैं.
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खाता धारक से बगैर कुछ पूछे ही बैंक से पैसा निकाल लते हैं
इन 10-12वीं पास अपराधियों द्वारा बनाये गये ऐप को डाउनलोड करते ही डिवाइस का नियंत्रण उनके पाल चला जाता है. इससे साइबर अपराधियों को मोबाइल में रखे गये बैंक अकाउंट, पासवर्ड, एटीएम कार्ड का नंबर, सीवीवी नंबर, सहित सभी जानकारी मिल जाती है. इससे वे असली खाता धारक से बगैर कुछ पूछे ही बैंक से पैसा निकालने में सक्षम हो जाते हैं. मोबाइल पर ऐप डाउनलोड होने के बाद साइबर अपराधी उस मोबाइल नंबर का व्हाट्सऐप अपने मोबाइल पर एक्टिवेट कर संपर्क के लोगों को मैसेज भेज कर ऐप डाउनलोड करने का सुझाव देते और दूसरे लोगों के साथ ठगी करते हैं. अपने ऐप के सहारे वेरिफिकेशन के लिए कॉल फॉर्वडिंग को एक्टिवेट कर कॉल अपने मोबाइल पर ट्रांसफर कर लेते हैं और वेरिफिकेशन में सफल हो जाते हैं.