झारखंड के मौसम विभाग ने यह अलर्ट जारी किया है कि 29 मार्च से एक अप्रैल तक राज्य के लगभग 11 जिलों में लू चलेगी और तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की जायेगी. यहां गौर करने वाली बात यह है कि ग्रीन हाउस गैस के लगातार उत्सर्जन से पूरे विश्व का तापमान बढ़ रहा है और अनियमित जलवायु परिवर्तन आम समस्या बन गयी है.
ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को रोकने के लिए सरकार कृत संकल्प कर चुकी है, यह तो सच है, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि वर्तमान में झारखंड में बिजली उत्पादन के लिए कोयले का विकल्प कुछ और नजर नहीं आ रहा है, जिसकी वजह से यहां के लोग कोयले से जुड़ी आजीविका और इसके दुष्प्रभाव को झेलने के लिए मजबूर हैं.
यहां हम बात कर रहे हैं झारखंड के राजमहल ओपन कास्ट माइंस एरिया की, जहां के लोग खदानों की वजह से ना सिर्फ विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं, बल्कि वे जीवन की बुनियादी सुविधाओं मसलन पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं से भी वंचित हैं. यहां से कहलगांव थर्मल सुपर पावर स्टेशन और फरक्का सुपर थर्मल पावर स्टेशन को कोयले की आपूर्ति की जाती है.
गोड्डा जिले के रहने वाले पत्रकार प्रवीण तिवारी ने बताया कि यहां ईसीएल के कोयला खदान हैं. शुरुआती दौर में ग्रामीणों को जमीन के बदले नौकरी मिली जो ज्यादातर थर्ड और फ्रोर्थ ग्रेड की थी. खदान के विस्तार के लिए बाद में जिन लोगों ने जमीन दी उनमें से कइयों को नौकरी नहीं मिली. परिणाम यह हुआ कि जमीन के मालिक मजदूर हो गये और उनके पास जीविका का दूसरा साधन नहीं रहा.
ईसीएल ने जिनसे जमीन ली उनके लिए बस्तियां तो बसाई गयीं, लेकिन वहां उनके लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. यहां पेयजल का घोर संकट है और गर्मी के मौसम में यह संकट और बड़ा हो जाता है. चूंकि इलाके में ओपन कास्ट माइंस है, इसलिए प्रदूषण की समस्या भी उतनी ही गंभीर है. प्रदूषण की वजह से यहां के निवासियों को कई तरह की बीमारियां हो चुकी हैं, जिसमें सांस से संबंधित बीमारी और एलर्जी सर्वप्रमुख है.
हालांकि कुछ साल पहले यहां कोयले का उत्पादन कम हुआ था क्योंकि खदान विस्तार के लिए जमीन कंपनियों को नहीं मिल रहा था. अभी उत्पादन में सुधार हुआ है, लेकिन शून्य उत्सर्जन की वचनबद्धता पर अगर करें, तो संभव है कि अगले 20-30 सालों में कोयला खदान बंद होने लगेंगे. जैसा कि कोल इंडिया ने भी कहा है कि वह घाटे में चल रही खदानों को बंद कर देगा, उस हालात में यहां के रहने वाले लोगों का क्या होगा? ईसीएल के कर्मचारी जो पे-रोल पर हैं उनके साथ-साथ कोयला व्यवसाय से जुड़े हजारों लोग इस इलाके में बेरोजगार हो जायेंगे. इनके पुनर्वास की समस्या और और उसके निवारण पर भी सरकार को गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है.
Global Just Transition Network के शोधार्थी संदीप पई ने भी इस मसले को गंभीरता पूर्वक लिया है और सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने के लिए झारखंड में अगले माह कई कार्यक्रम और वर्कशाॅप आयोजित करवाने वाले हैं जो कोयले पर निर्भर लोगों के जीवन को सही दिशा में आवश्यक होगा. संदीप पई का कहना है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे कोयले से जुड़े लोगों के उचित पुर्नवास के लिए अभी से नीतियां बनाये और उन्हें अमलीजामा पहनाये.
गौरतलब है कि कुछ माह पहले केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात हुई थी. उस दौरान मंत्री ने सीएम हेमंत सोरेन से यह कहा था कि वे खदान क्षेत्रों की हर समस्या का निवारण करेंगे जिसमें विस्थापितों की समस्या सर्वप्रमुख थी, लेकिन अबतक इसपर गंभीरता से काम होता दिखाई नहीं दे रहा है और उसपर मुख्यमंत्री सोरेन ने कोल माइंस के लिए जमीन अधिग्रहण, रैयतों को मुआवजा, विस्थापितों के पुनर्वास और नौकरी एवं सरकार को मिलने वाले रेवेन्यू को लेकर अपनी बातें रखीं. इसपर केंद्रीय कोयला मंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा कि कोल खनन को लेकर राज्य सरकार की जो भी मांग है, उस पर केंद्र सरकार विचार विमर्श कर आवश्यक कार्रवाई करेगी. लेकिन सरकार एक नयी पुनर्वास नीति लेकर आयी है, जिसका विरोध विस्थापित नेता पूरे देश में कर रहे हैं.