संतोष कुमार, बेतला : पलामू टाइगर रिजर्व के जंगल और जानवर को बचाने में मददगार इको विकास समिति पिछले छह वर्ष से निष्क्रिय पड़ी है. जानकारी के अनुसार पलामू टाइगर रिजर्व में जंगल और जानवर को बचाने में ग्रामीणों के सहयोग की महत्ता को समझते हुए इको विकास समिति का गठन किया गया था, लेकिन उक्त समिति निष्क्रिय पड़ी हुई है. हालांकि हाल के दिनों में कुछ इको विकास समिति को पर्यटन स्थलों के आसपास जोड़ा गया है, बावजूद इसके लिए न ही कोई फंडिंग की जा रही है और न ही इको विकास समिति के लोगों से किसी भी तरह का सहयोग लिया जा रहा है. इस वजह से जंगल और जानवर को बचाने के लिए वन विभाग के अकेले जूझना पड़ रहा है. इको विकास समिति एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा वन विभाग के पदाधिकारी की सीधी पहुंच ग्रामीणों तक होती थी. गांव में होने वाली किसी भी तरह की गतिविधियों की जानकारी तत्काल विभागीय पदाधिकारी तक पहुंच जाती थी. इतना ही नहीं यदि कोई अपराधी घटनाएं होती थी, तो विकास समिति के लोग उसके उद्भेदन में लगा देते थे, लेकिन आज स्थिति काफी बदल गयी है.
कराया जाता था महत्वपूर्ण योजनाओं का काम
इको विकास समिति को विभाग द्वारा प्राप्त आवंटन उपलब्ध कराया जाता था. उक्त राशि से समिति गांव के लोगों के लिए जरूरी योजनाओं को पूरा कराती थी, जिसमें चबूतरा, कुआं व चेक डैम का निर्माण, गांव में सोलर लालटेन, सिलाई मशीन व मधुमक्खी पालन के लिए बक्से का वितरण शामिल है. वर्तमान समय में विभागीय पदाधिकारी और कर्मचारी न केवल जंगली जानवर के बचाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं, बल्कि कई सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी उनके द्वारा किया जा रहा है. इस वजह से इको विकास समिति सहित गांव के लोग अपने आप को कटा-कटा महसूस कर रहे है. यही वजह है कि जंगली जानवर बचाने में ग्रामीणों का अपेक्षित सहयोग विभाग को नहीं मिल रहा है. पलामू टाइगर रिजर्व में 188 इको विकास समिति का गठन किया गया था. तकरीबन दो सौ गांव के लोगों को इसके माध्यम से पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन से जोड़ा गया था, लेकिन हाल के दिनों में किसी भी तरह की फंडिंग अथवा सहयोग नहीं मिलने की वजह से स्थिति काफी बदल गयी है. अपराधी घटनाओं की जानकारी भी देर से मिल रही है. विभागीय पदाधिकारी द्वारा इको विकास समिति को आवंटन मिले इसके लिए कोई प्रस्ताव वरीय अधिकारी अथवा सरकार को नहीं भेजा जा रहा है.
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