विशेष पेज के लिए रमेश भगत, पाकुड़ लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति झारखंड में हमेशा चर्चा का विषय रही है. इस क्षेत्र में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कद्दावर नेता साइमन मरांडी और उनके परिवार का लंबे समय तक प्रभाव बना रहा. दशकों तक सत्ता और राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने वाले इस परिवार की कहानी लिट्टीपाड़ा की राजनीति के हर मोड़ पर नजर आती है. साइमन मरांडी ने 1977 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और पहली बार विधायक चुने गए. इसके बाद उन्होंने झामुमो के टिकट पर 1980, 1985, 2009 और 2017 में जीत दर्ज की. साइमन मरांडी का नाम न केवल लिट्टीपाड़ा बल्कि पूरे संथाल परगना क्षेत्र की राजनीति में सम्मान के साथ लिया जाता है. उनके परिवार ने भी उनके राजनीतिक कद को आगे बढ़ाया. उनकी पत्नी सुशीला मरांडी 1990, 1995, 2000 और 2004 में विधायक चुनी गईं. पारिवारिक राजनीति की विरासत: 2019 में साइमन मरांडी के बेटे दिनेश मरांडी ने पिता की राजनीतिक विरासत संभालते हुए झामुमो के टिकट पर लिट्टीपाड़ा से जीत दर्ज की. इससे पहले 2017 में, झामुमो ने उपचुनाव में साइमन मरांडी को उम्मीदवार बनाया था, जिसमें उन्होंने भाजपा को हराकर जीत हासिल की थी. परिवार का यह वर्चस्व लिट्टीपाड़ा की राजनीति में गहराई तक जड़ें जमा चुका था. हालांकि, इस बार झामुमो ने एक बड़ा राजनीतिक बदलाव करते हुए दिनेश मरांडी का टिकट काटकर हेमलाल मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया. यह निर्णय झामुमो के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि हेमलाल मुर्मू ने 88,469 वोट प्राप्त कर भाजपा के उम्मीदवार बाबुधन मुर्मू को 26,749 वोटों से हराया. हेमलाल मुर्मू संथाल राजनीति के एक अनुभवी चेहरा हैं. वे पहले भी बरहेट विधानसभा से चार बार (1990, 1995, 2000 और 2009) विधायक रह चुके हैं. साथ ही, 2004 में उन्होंने राजमहल लोकसभा सीट से सांसद के रूप में भी जीत दर्ज की थी. उनकी इस जीत ने लिट्टीपाड़ा की राजनीति में एक नयी दिशा की शुरुआत की है, जहां साइमन परिवार के वर्चस्व के बाद पहली बार एक बाहरी व्यक्ति ने झामुमो का प्रतिनिधित्व किया और जीत हासिल की. लिट्टीपाड़ा की राजनीति में साइमन मरांडी परिवार की अहम भूमिका ने क्षेत्र को दशकों तक नेतृत्व प्रदान किया. लेकिन झामुमो द्वारा लिया गया यह बड़ा निर्णय यह संकेत देता है कि पार्टी अब नये चेहरों और नई सोच को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.
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