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शहरी क्षेत्र में तेज से फल-फूल रहा पानी का कारोबार, भूमिगत जल का हो रहा दोहन

20-30 रुपये प्रति जार बेचा जाता है पानी. वाहनों की सफाई के लिए लगाए गए वाटर पॉइंट से भी पानी की बर्बादी हो रही है.

पाकुड़. जिला मुख्यालय के शहरी क्षेत्र में इन दिनों भूमिगत जल का दोहन कर पानी का कारोबार तेजी से फलता-फूलता जा रहा है. जानकारी के मुताबिक पानी के शुद्धिकरण में आधा पानी बर्बाद हो जाता है. जानकर बताते हैं कि वाटर प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रक्रिया अपनायी जाती है. इस प्रक्रिया में यदि 100 लीटर पानी को शुद्ध किया जाता है तो लगभग 40 से 50 लीटर पानी ही शुद्ध मिलता है. यदि कहा जाए तो 50 से 60 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है. एक अनुमान के मुताबिक यदि प्रतिदिन शहर से लाख लीटर पानी की सप्लाई की जाती है तो उतना ही पानी प्रतिदिन बर्बाद हो जाता है. सभी कारोबारी के यहां ऐसे पानी के उपयोग का साधन नहीं होता है. ऐसे में सरकारी उदासीनता की वजह से भूगर्भ जल का जमकर दोहन होता है. इलाके में पानी की किल्लत होने से इसका फायदा पानी के कारोबारी उठा रहे हैं. कम पैसों की लागत में यह कारोबार शहर से लेकर अब गांव में भी अपना पांव तेजी से पसार रहा है. यदि शहर की बात की जाए तो शहर में दर्जनों से ज्यादा वाटर प्लांट संचालित हैं. सूत्रों के मानें तो प्रत्येक दिन लाखों लीटर पानी का शुद्धिकरण कर बेचा जाता है. हालांकि इस संबंध में संबंधित पदाधिकारी जल्दी कमेटी गठित कर पानी की बर्बादी को रोकने की बात कर रहे हैं.

20-30 रुपये प्रति जार बेचा जाता है पानी :

शहर में इन दिनों तीनपहिया वाहन के माध्यम से पानी के जार की बिक्री की जाती है. यह 20-30 रुपये प्रति जार बेचा जाता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार कारोबारी के यहां से पानी लेने पर 15 रुपये में प्रति जार पानी उपलब्ध हो जाता है. सुबह होते ही 10 से 15 गाड़ियां सड़क पर देखने को मिल जाती है. यह दूरदराज तक के गांव में बेचा जाता है.

वाहनों की सफाई के लिए लगाए गए हैं वाटर पॉइंट :

वहीं गाड़ियों की सफाई के लिए भी पानी की भरपूर बर्बादी हो रही है. शहर के कई जगहों पर पानी पीने के अलावा वाहनों की सफाई के लिए वाटर पॉइंट बनाए गए हैं. सूत्रों की मानें तो इस दौरान भी भूमिगत जल का दोहन होता है. काफी मात्रा में पानी की बर्बादी होती है. लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. जानकार की मानें तो एक गाड़ी की सफाई में कम से कम 20 से से 25 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. यदि दिन भर में 500 गाड़ियाें की सफाई होती है तो करीब 10 से 15 हजार लीटर पानी यूं ही बर्बाद हो जाता है. शहरवासियों की मानें तो इन सब पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. यदि लोग पानी की बर्बादी को लेकर जागरूक नहीं होंगे तो आने वाला समय काफी कष्टकारी होगा. लोग पानी के लिए त्राहिमाम करेंगे. यदि देखा जाए तो इस प्रकार के कारोबार से भूमिगत जल का दोहन से इनकार नहीं किया जा सकता है.

गर्मी आते ही चापानल से बंद हो जाता है पानी निकलना :

गर्मी आते ही क्षेत्र में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. पानी के लेयर में इतनी गिरावट हो जाती है कि शहरी क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में लगे चापानल तक पानी देना बंद कर देते हैं. पानी के लिए त्राहिमाम होने लगती है. पानी नहीं मिलने से लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. रतजग्गा कर लोग पानी की जुगाड़ में लगे रहते हैं. लोगों को दूर-दराज से साइकिल के माध्यम से पानी लाना पड़ता है. वहीं अगर नगर परिषद क्षेत्र की बात की जाए तो नगर परिषद क्षेत्र में टैंकरों के माध्यम से कई जगहों पर पानी पहुंचाने का काम किया जाता है.

बोले जिम्मेदार :

नगर परिषद क्षेत्र में संचालित पानी के कारोबारी द्वारा नगर परिषद की ओर से किसी प्रकार का कोई लाइसेंस नहीं लिया गया है. इस तरह के कारोबारी द्वारा नगर परिषद को किसी प्रकार का टैक्स भी प्राप्त नहीं हो रहा है. इस प्रकार के कारोबार में भूमिगत जल के दोहन से इनकार नहीं किया जा सकता है. मामले को लेकर बहुत जल्द ऐसे कारोबारी के साथ बैठक की जाएगी. पानी की बर्बादी को रोकने पर भी विमर्श किया जाएगा. नियमसंगत कार्रवाई भी की जाएगी.

– राजकमल मिश्रा, नप कार्यपालक पदाधिकारी

शहर में पानी प्लांट के खुलने की सूचना है. इनमें से कुछ बिना लाइसेंस के भी हैं, ऐसी सूचना प्राप्त हो रही है. सूचना के आलोक में इसकी जांच की जाएगी. जांच में सही पाए जाने पर संबंधित कारोबारी पर कार्रवाई भी की जाएगी. रही पानी की शुद्धता की जांच, तो बीच-बीच में इसके पानी की शुद्धता की जांच की जाती है.

– धनेश्वर हेंब्रम, खाद्य सुरक्षा पदाधिकारीB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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