पलामू, सैकत चटर्जी: ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजाद कराने में पलामू के क्रांतिकारियों ने भी अहम भूमिका निभायी थी. 1857 के सिपाही विद्रोह के समय पलामू किले से विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. पलामू के क्रांतिकारियों को लेकर वरिष्ठ लेखक डॉ रमेश चंचल हों या राकेश कुमार सिंह. अलग-अलग शोध, लेख, आलेख, कहानी लिखे गए. कुछ कविताएं भी लिखी गयीं, लेकिन ये सभी रचनाएं, किसी खास कालखंड, आंदोलन, व्यक्ति और विषय पर आधारित रहीं. पलामू के क्रांतिकारी पुस्तक के जरिए पलामू के लगभग सभी उल्लेखनीय, स्थापित व चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों की जानकारी एक पुस्तक में उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है. इसके लेखक प्रभात मिश्रा सुमन हैं. ये पुस्तक बहुत जल्द बाजार में उपलब्ध होगी.
पुस्तक लिखने में ऐसे मिली मदद
प्रभात मिश्रा सुमन बताते हैं कि पलामू के क्रांतिकारी पुस्तक लिखने में फेसबुक ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. पहले उन्होंने फेसबुक पर ही पलामू के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सेनानियों के बारे में लिखना शुरू किया था, जिसे लोगों की काफी सराहना मिली. इससे प्रेरित होकर कई लोग खुद आगे आए और कई महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई. लोगों ने इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराने के लिए हमेशा प्रेरित किया.
पलामू के सेनानी ही नहीं, कई महत्वपूर्ण घटनाएं हैं शामिल
पलामू के क्रांतिकारी पुस्तक में सिर्फ पलामू के स्वतंत्रता सेनानी के बारे में ही नहीं लिखा गया है, बल्कि महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस के पलामू आगमन से लेकर 1942 की क्रांति के घटनाक्रम का भी शोधपरख जिक्र किया गया है.
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पुस्तक लिखने में लगे पांच वर्ष से अधिक समय
पुस्तक के लेखक प्रभात मिश्रा सुमन ने बताया कि पुस्तक प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित होगी. इसे लिखने में पांच वर्षों से भी अधिक समय लगा है. इसमें जो भी बातें लिखी गई हैं, उसके लिए काफी शोध किया गया है. कई मानक पुस्तकों का रिफ्रेंस लिया गया है. स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों से मिलकर उनसे मिले दस्तावेज व तस्वीरों को शामिल किया गया है. अगस्त के अंत तक ये पुस्तक प्रकाशित होगी.
कौन हैं प्रभात मिश्रा सुमन
प्रभात मिश्रा सुमन पलामू के जाने-माने शिक्षाविद प्रो सुभाष चन्द्र मिश्रा के बड़े पुत्र हैं. पलामू से निकलनेवाले हिंदी दैनिक से पत्रकारिता की शुरुआत की. फिलहाल राष्ट्रीय स्तर के अखबार से जुड़े हुए हैं. पलामू के क्रांतिकारी पुस्तक की रचना के बाद वे पलामू के ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं पर केंद्रित दूसरी पुस्तक की रचना की योजना बना रहे हैं.