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यज्ञोपवीत संस्कार का जीवन में बहुत महत्व : जीयर स्वामी

सिंगरा अमानत नदी तट पर चातुर्मास व्रत कथा

मेदिनीनगर. निगम क्षेत्र के सिंगरा चातुर्मास व्रत कथा में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने कहा कि जीवन में यज्ञोपवीत संस्कार का बहुत बड़ा महत्व है. मनुष्य तीन ऋणों को साथ लेकर ही जन्म लेता है. ऋषि ऋण, देव ऋण तथा पितृ ऋण. इन तीन ऋणों से मुक्ति बिना यज्ञोपवीत संस्कार हुए संपन्न नहीं होता. नीति शास्त्रों में कहा गया है कि जीवन के अंतिम समय में जिस चीज का ध्यान आता है, उसी को हम प्राप्त करते हैं. जो व्यक्ति जिस भावना को लेकर मरेगा, अगले जन्म (योनि) में उसी को प्राप्त करता है. ये सामान्य लोगों पर निर्भर करता है. भगवान के भक्तों पर यह नियम नहीं लगता है. आप कहेंगे क्यों नहीं लगता है. भगवान कहते हैं कि यदि मेरा भक्त है, जिंदगी भर मेरा ध्यान, चिंतन और मेरे लिए समर्पित है, उस पर यह नियम नहीं लागू होगा. वात, पित्त और कफ त्रिदोषों के कारण मेरे भक्त ने जीवन भर मेरी स्तुति की है और मरते समय अगर नहीं किया, तो क्या उसकी अधोगति होगी. नहीं-नहीं ऐसा नहीं होगा. स्वामी जी महाराज ने कहा कि भगवान कहते हैं अगर मेरा भक्त है, जिंदगी भर मेरा स्मरण किया है तो उसकी अधोगति नहीं होगी. वे अपने भक्तों का स्वयं स्मरण कराकर उसे उत्तम गति को प्राप्त करवाते हैं. यह बात सामान्य लोगों पर और भगवान के भक्तों पर लागू होता है.

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