बरकाकाना (रामगढ़) : झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के लोगों व उनके गांव की तस्वीर बदलने की दिशा में सरकार ने योजना बनायी है. इस योजना के तहत सभी आदिम जनजाति परिवारों को पक्का मकान देने, पेंशन देने, सर्वांगीण विकास के लिए जनजाति के बच्चों को शिक्षा देने, गांव में मूलभूत सुविधा पानी, बिजली, सड़क, चिकित्सा बहाल शामिल है.
इस योजना को धरातल पर उतारने की तैयारियां चल रही हैं. उक्त बातें झारखंड आदिम जनजाति विकास समिति प्रदेश अध्यक्ष डॉ मनोज कुमार अगरिया ने कही. उन्होंने बताया है कि सरकार ने इस वित्तीय वर्ष 2020-21 में झारखंड में निवास करने वाली आठ आदिम जनजातियों के विकास में पांच करोड़ खर्च करने की योजना बनायी है.
इस योजना को लेकर सरकार ने आदिवासी कल्याण आयुक्त झारखंड को पांच करोड़ का फंड आवंटित कर दिया है. आवंटित राशि विभाग को प्राप्त होने के बाद आदिवासी कल्याण आयुक्त हर्ष मंगला ने राज्य के उपायुक्तों को पत्र लिख कर आदिम जनजातियों के ग्रामोत्थान योजना से संबंधित कार्य योजना प्रस्ताव बना कर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.
डॉ अगरिया ने बताया कि अनुसूचित जनजाति के पीवीटीजी गांव बाहुल्य योजना के तहत क्षेत्रीय उप योजना अंतर्गत एक करोड़ व जनजातीय क्षेत्रीय उप योजना अंतर्गत चार करोड़ का आवंटन आदिवासी कल्याण आयुक्त कार्यालय को उपलब्ध कराया गया है. उक्त राशि से पीवीटीजी ग्रामोत्थान योजना प्रस्तावित है.
इस योजना का मुख्य उद्देश्य पीवीटीजी बाहुल्य गांवों का समेकित विकास करते हुए आदर्श ग्राम के रूप में परिणत करता है. सरकार के अनुसार राज्य में आठ प्रकार के आदिम जनजाति निवास करते हैं, जो कि अति कमजोर जनजातीय समूह में आते हैं.
आदिम जनजाति गांवों के विकास के लिए विकास का कार्य ग्राम सभा के माध्यम से किया जाना है. निर्मित योजनाओं की प्राथमिकता का निर्धारण उपायुक्त सह अध्यक्ष आइटीडीए की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा किया जायेगा. इसके लिए समिति बनायी गयी है. इसमें उपायुक्त को अध्यक्ष बनाया गया है. आइटीडीए के परियोजना निदेशक सदस्य सचिव होंगे. सदस्य के रूप में डीडीसी, बीडब्ल्यूओ व बीडीओ होंगे.
रामगढ़ जिले में पीवीटीजी की कुल संख्या दो हजार 117 है. इसमें असूर एक हजार 412, बिरहोर 590, बिररिया 17, कोरबा एक, माल पहाड़िया 24, परहईया 13, सौरया पहाड़िया 20 तथा सवर 40 हैं. जिले की अगर हम बात करें, तो आज भी आदिम जनजाति गांवों का विकास नहीं हो सका है. गांवों तक जाने के लिए सड़क व शौचालय नहीं बना है. बिरसा आवास अधूरा है. कई गांवों में बिजली व पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है. वृद्ध को पेंशन से वंचित है. आज भी रोजी-रोजगार के लिए आदिम जनजाति के लोग भटकते रहते हैं.
posted by : sameer oraon