रांची :खदान में मजदूरीकरने वाले एक शख्स केझारखंड का मुख्यमंत्री मधु कोड़ा बनने तक का सफरबेहद रोमांचक है. 6 जनवरी, 1971 को पश्चिम सिंहभूम के जगन्नाथपुर के पाताहातू में जन्मे मधु कोड़ा का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा रहा. ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले मधु कोड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)मेंसक्रिय रहे, तोभारतीय जनता पार्टी (BJP) के टिकट परपहली बार विधानसभा पहुंचे. कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)के सहयोग से वह झारखंड के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने, जो किसी दल का नेता नहीं थे.निर्दलीयविधायकहोनेकेबावजूदमुख्यमंत्रीबननेकागौरवहासिलकरनेवालेकोड़ादेशकेतीसरेसीएमबने.
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झारखंड के पांचवें मुख्यमंत्री के रूप में मधु कोड़ा ने 18 सितंबर, 2006 को शपथ ली थी. निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्रीके रूप में 23 महीने तक का लंबा कार्यकाल पूरा किया. झारखंड को छोड़कर भारत के किसी भी राज्य में निर्दलीय विधायक, जो सीएम बना, का इतना लंबा कार्यकाल नहीं रहा.निर्दलीय चुनाव लड़कर इतना लंबा कार्यकाल का उनका यह रिकॉर्ड‘लिम्का बुक अॉफ रिकाॅर्ड’ में दर्जहै.
मधु कोड़ा के राजनीतिक सफर की शुरुआत ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन(आजसू) के साथ छात्र राजनीति से हुई. इसके बाद कोड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये. संघ के कार्यकर्ता के रूप में भी वह लगातार काम करते रहे. इससे पहले वह ठेका श्रमिक हुआ करते थे. फिर मजदूर यूनियन के नेता बने. उनके पिता रसिक कोड़ा भी खान में मजदूरीकरते थे. अपनी एक एकड़ जमीन पर वे खेती करते थे. बताया जाता है कि मधु कोड़ा के पिता का सपना था कि उनका पुलिस में भर्ती हो.
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संघ में काम करने के दौरान उनकी पहचान झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से हुई.मरांडी ने ही वर्ष 2000 में पहली बार उन्हें जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव के मैदान में उतारा.कोड़ा जीते औरविधायक बने. मरांडी के नेतृत्व में सरकार बनी, तो कोड़ा को पंचायती राज मंत्री बनाया गया. बाद में वर्ष 2003 में मरांडी को हटाकर अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया. अर्जुन मुंडा की सरकार में भीवह पंचायती राज मंत्री बने रहे.
वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हेंटिकट नहीं दिया और मधु कोड़ा बागी हो गये. निर्दलीय लड़े और चुनाव जीत गये. खंडित जनादेश के कारणभाजपा के नेतृत्व में बननेवाली अर्जुन मुंडा की सरकार को उन्होंने बाहर से समर्थन दिया.कोड़ा को खान मंत्री बनाया गया. मंत्री रहते हुए ही हाटगम्हरिया सड़क के ठेके को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा से उनका विवाद हुआ. उन्होंने विधानसभा में रोते हुए कहा कि ठेकेदार उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. तब मामला प्राक्कलित राशि से ज्यादा में ठेका देने का उठा था. पूरे विधानसभा में इसे लेकर जमकर हंगामा हुआ. मधु कोड़ा भाषण देने के बाद मंत्री होने के बावजूद विपक्ष केसाथबैठगये.
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सितंबर, 2006 में कोड़ा और अन्य तीन निर्दलीय विधायकों ने मुंडा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार अल्पमत में आ गयी. बाद में विपक्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया और अपनी सरकार बनायी. इस सरकार में झामुमो, राष्ट्रीय जनता दल, यूनाइटेड गोमांतक डेमोक्रेटिक पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक व तीन निर्दलीय विधायक शामिल थे. कांग्रेस बाहर से समर्थन कर रही थी. झामुमो सरकार में शामिल थी.
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने खान विभाग, ऊर्जा सहित अन्य महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखा. मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने के दौरान विनोद सिन्हा नामक व्यक्ति चर्चा में आया. इसके बाद आयकर विभाग ने कोड़ा, विनोद व उससे जुड़े देशभर के 167 स्थानों पर छापेमारी की और कोड़ा के कार्यकाल में कोयला, आयरन ओर खदान आवंटन और ऊर्जा विभाग में कार्य आवंटन में गड़बड़ी का मामला प्रकाश में आया.
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इसके बाद जांच एजेंसियां सक्रिय हुईं और कोड़ा व अन्य के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की. कोड़ा के कार्यकाल में बिजली बोर्ड का समानांतर कार्यालय भी चलता था. कहा जाता है कि हिनू स्थित गेस्ट हाउस से होकर ही फाइलें बिजली बोर्ड जाती थी. इसमें ग्रामीण विद्युतीकरण के ठेके में भारी गड़बड़ी का मामला सामने आया था. सरकार को समर्थन कर रही कांग्रेस पार्टी के प्रभारी अजय माकन ने भ्रष्टाचार को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ मुहिम चलायी. अगस्त, 2008 में सरकार का समर्थन कर रहे झामुमो ने मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने राज्य की बागडोर संभाली.
उधर, कोड़ा के खिलाफ आयकर व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का शिकंजा कसता गया. बाद में 30 नवंबर, 2009 को प्रवर्तन निदेशालय ने कोड़ा को गिरफ्तारकरलिया.वह तीन साल से अधिक समय तक जेल में ही रहे.