रांची: झारखंड में स्थानीय वही होंगे, जिनके पास 1932 का खतियान होगा. बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य के स्थानीय निवासी की परिभाषा, पहचान व झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिणामी सामाजिक एवं अन्य लाभों के लिए विधेयक -2022 के गठन को मंजूरी दी गयी. इसके तहत ही झारखंड के स्थानीय की पहचान होगी. विधेयक के प्रस्ताव में प्रावधान किया गया है कि जिनके पूर्वजों का नाम 1932 या पूर्व के सर्वे खतियान में दर्ज है, वही स्थानीय होंगे.
जहां खतियान पठनीय नहीं होगा, वहां ग्राम सभा को खतियानी तय करने का अधिकार दिया गया है. ग्रामसभा भाषा, रहन-सहन और परंपरा के आधार पर खतियान तय कर सकेगी. झारखंड कैबिनेट ने तय किया है कि इस विधेयक को सदन से पारित कराया जायेगा. विधेयक पारित होने पर भारत सरकार से इसे नौवीं सूची में शामिल करने का आग्रह किया जायेगा. कैबिनेट की बैठक के बाद कैबिनेट सचिव वंदना डाडेल ने कहा कि जिन व्यक्ति या पूर्वज का नाम 1932 के सर्वे खतियान में दर्ज है, वही स्थानीय कहलायेगा.
झारखंड कैबिनेट ने राज्य के पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान संबंधी संशोधन विधेयक के प्रारूप को भी मंजूरी दे दी है. श्रीमती डाडेल ने बताया कि कार्मिक प्रशासनिक सुधार ने झारखंड पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण अधिनियम, 2001 (यथा संशोधित) में संशोधन हेतु विधेयक-2022 को मंजूरी दे दी है.
इसके तहत राज्य में आरक्षित कोटि का प्रतिशत 77 फीसदी कर दिया गया है. इसे लागू करने के लिए राज्य सरकार भारत सरकार से अनुरोध करेगी. संशोधन के तहत अनुसूचित जाति को राज्य में 12, अनुसूचित जनजाति को 28 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग-एक को 15, अन्य पिछड़ा वर्ग-दो को 12 फीसदी आरक्षण दिया जायेगा.अार्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी का आरक्षण दिया जायेगा. लागू करने से पहले इसके लिए भी भारत सरकार से अनुरोध किया जायेगा.
वर्ग पहले अब
एससी 10 12
एसटी 26 28
ओबीसी 14 27
इडब्ल्यूएस 10 10
(नोट : आंकड़ा प्रतिशत में)
राज्य गठन के बाद से ही स्थानीय नीति और आरक्षण नीति कानूनी विवाद का विषय बना रहा है. दोनों ही मुद्दों पर कानूनी लड़ाई में हार के बाद अब सरकार ने इसे लागू करने के लिए नया तरीका अपनाया है. सरकार ने इसे कानून बनाकर अधिसूचना के सहारे राज्य में लागू करने के बदले उसे भारत सरकार को भेज कर संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की अनुशंसा करने का फैसला किया है. इस नीति को किसी तरह की कानूनी विवाद से बचाने के लिए इसे लागू करने के बदले केंद्र से इसे नौंवी अनुसूची में डालने का अनुरोध करने का फैसला किया गया है.