भारत का मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया है. चंद्रयान-3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग चांद की सतह पर हो चुकी है. इसमें झारखंड का बहुत बड़ा योगदान है. राजधानी रांची की दो संस्थाओं मेकॉन और एचईसी ने लांचिंग पैड को डिजाइन किया. उसके कई महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण भी एचईसी में हुआ.यह तीसरा मौका था, जब भारत की अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधन संगठन (इसरो) ने चंद्रयान का प्रक्षेपण किया है. इसरो के लिए सबसे बड़े लांचिंग पैड जीएसएलवी को मेकॉन ने तैयार किया. इसके उपकरण झारखंड की राजधानी रांची और टाटा में भी बने हैं. मेकॉन ने इसके कॉन्सेप्ट से लेकर कमिशनिंग तक का काम किया. 350 करोड़ रुपये के बजट वाले जीएसएलवी का अनावरण देश के जाने-माने वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था.
एसआर मजुमदार ने किया था टीम का नेतृत्व
मेकॉन के इंजीनियर और इस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे निशीथ कुमार ने ‘प्रभात खबर’ (prabhatkhabar.com) को बताया कि वर्ष 1999 में मेकॉन को इसरो के लिए रॉकेट प्रक्षेपण हेतु लांचिंग पैड बनाने का कांट्रैक्ट मिला. निशीथ कुमार ने बताया कि यह पहला मौका था, जब भारत में रॉकेट को लांच करने के लिए लांचिंग पैड का निर्माण हुआ. इसके पहले भारत के पास रॉकेट के प्रक्षेपण के लिए लांचिंग पैड बनाने का कोई अनुभव नहीं था. हमारे पास पुराना कोई रेफरेंस भी नहीं था. इसरो ने अपनी जरूरतें बतायीं और मेकॉन के एसआर मजुमदार के नेतृत्व में मेकॉन के 50 इंजीनियर्स की कोर टीम ने काम शुरू किया और इस प्रोजेक्ट को सफल बनाया.
कॉन्सेप्ट से कमिशनिंग तक का काम मेकॉन ने किया
नीशीथ कुमार ने बताया कि कॉन्सेप्ट से कमिशनिंग तक का काम मेकॉन ने किया. सप्लाई से मैन्युफैक्चरिंग और टेस्टिंग से कमिशनिंग, हर काम मेकॉन ने किया. उन्होंने बताया कि जीएसएलवी से बड़े से बड़े रॉकेट को लांच किया जा सकता है. हालांकि, इसरो अभी इसका इस्तेमाल सिर्फ बड़े रॉकेट्स लांच करने में करता है. उन्होंने बताया कि लांचिंग पैड के लिए कई तरह के उपकरण बनाने थे. मेकॉन ने झारखंड की दो कंपनियों के अलावा देश के अलग-अलग हिस्से की कंपनियों से भी उपकरण बनवाये. कुछ चीजें विदेशों से भी मंगायी गयी.
टाटा को भी मेकॉन ने दिया था उपकरण बनाने का काम
मेकॉन के इंजीनियर श्री कुमार ने बताया कि मेकेनिकल, गैस्ट्रल, सिविल और टेक्निकल समेत कई काम थे. उन्होंने बताया कि देश की प्रतिष्ठित कंपनी टाटा ने जमशेदपुर की इकाई में कुछ उपकरणों का निर्माण किया था. रांची की एचईसी ने भी कई उपकरणों का निर्माण किया और असेंबलिंग का भी काम किया. चेन्नई की कंपनी केटीवी, मुंबई की कंपनी गोदरेज के अलावा भी कई कंपनियों ने लांचिंग पैड के लिए उपकरण बनाये थे. कुछ इक्विपमेंट्स रूस और यूरोप से भी मंगवाये गये थे.
पहली बार भारत ने रॉकेट लांचिंग के लिए पैड बनाया
नीशीथ कुमार ने बताया कि भारत को लांच पैड बनाने का कोई अनुभव नहीं था. इसलिए यह थोड़ा मुश्किल काम था. लेकिन, मेकॉन के इंजीनियर्स ने इस चैलेंज को स्वीकार किया और इसरो की कमेटी और कई आईआईटी के प्रोफेसर्स के साथ मिलकर अंतरिक्ष एजेंसी की जरूरत के मुताबिक लांचिंग पैड तैयार करके दिया. उन्होंने बताया कि हर डिजाइन को तीन स्तर पर अप्रूवल मिलने के बाद ही उसे फाइनल किया जाता था.
इसरो की कमेटी की देखरेख में चला था काम
इसके लिए इसरो की एक कमेटी थी. इसमें इसरो के वैज्ञानिकों के अलावा अलग-अलग आईआईटी के प्रोफेसर हुआ करते थे. वे हमें अपनी जरूरतें बताते थे. हम उसका डिजाइन तैयार करते थे. इस डिजाइन को उनके सामने रखते थे. अगर उनके हिसाब से डिजाइन होता, तो उसको अप्रूव कर दिया जाता था. अगर उन्हें इसमें किसी बदलाव की जरूरत होती, तो वे हमें बताते थे, फिर मेकॉन के इंजीनियर्स उनकी जरूरत के हासिब से उसमें तब्दीली (मॉडिफिकेशन) करते थे. इस तरह क्वालिटी पर बहुत जोर दिया जाता था.
एचइसी ने कई महत्वपूर्ण उपकरण बनाकर दिये
बता दें कि रांची स्थित हेवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन (एचइसी), जिसे मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज कहा जाता है, ने जीएसएलवी के लिए हॉरिजोंटल स्लाइडिंग डोर, फोल्डिंग कम वर्टिकल रिपोजिशनेबल प्लैटफॉर्म (एफसीवीआरपी), मोबाइल लांचिंग पेडेस्टल और 10 टन का हैमर हेड टावर क्रेन बनाया है. इसरो अपने सभी बड़े रॉकेट का प्रक्षेपण इसी मोबाइल लांचिंग पेडेस्टल से करता है. बता दें कि 10 टन का हैमर हेड टावर क्रेन रॉकेट के बैलेंस को बनाये रखता है.
एचइसी के कर्मचारी रांची में मना रहे हैं जश्न
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि एचइसी ने देश के भारी उद्योगों के लिए भी बहुत से उपकरण बनाये हैं. यह देश की एकमात्र मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज है. एचइसी मुख्यालय रांची में यहां के कर्मचारी चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का जश्न मना रहे हैं. केक कटिंग की भी व्यवस्था की गयी है. कर्मचारियों का कहना है कि भले एचइसी आज खस्ताहाल स्थिति में हो, लेकिन इसका इतिहास गौरवशाली रहा है. चंद्रयान-3 के लिए हमने अलग से कोई काम नहीं किया हो, लेकिन इसका प्रक्षेपण हमारे बनाये लांचिंग पैड से ही हो रहा है. इसलिए यह हमारे लिए भी गर्व की बात है.
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बता दें कि झारखंड के खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड में रहने वाले सोहन यादव भी मिशन चंद्रयान-3 का हिस्सा थे. तोरपा प्रखंड के तपकरा ग्राम के सोहन यादव ऑर्बिटर इंटीग्रेशन और टेस्टिंग टीम का हिस्सा बने. सोहन यादव इसरो में काम कर रहे हैं और मिशन गगनयान से भी जुड़े थे. 15 दिन उन्होंने अपनी मां को फोन किया था. बताया था कि अब 15 दिन बाद चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के बाद ही बात होगी. सोहन की मां और बड़े भाई मिशन चंद्रयान-3 की सफलता की प्रार्थना करने वैष्णोदेवी गये हुए हैं.