भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को अब पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार बिरसा मुंडा की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए झारखंड आ रहे हैं. पीएम मोदी 14 नवंबर को रांची आएंगे और 15 नवंबर को खूंटी जाएंगे.
उनकी यात्रा के मद्देनजर भगवान बिरसा मुंडा के गांव को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. उलिहातु स्थित उनके स्मारक का भी रंग-रोगन हो चुका है. दूसरी तरफ, राजधानी रांची के कोकर में भगवान बिरसा मुंडा के स्मृति स्थल का जायजा लेने के लिए जनजातीय गौरव दिवस से पहले प्रभात खबर की टीम पहुंची.
टीम ने पाया कि भव्य स्मारक स्थल पर चहारदिवारी बनी है. सुरक्षा के लिहाज से रेलिंग लगी है. बड़ा-सा गेट है, जिसमें हमेशा ताला लगा रहता है. आम लोगों को इसमें प्रवेश करने की अनुमति नहीं है. बिरसा की पुण्यतिथि पर स्मारक स्थल को विशेष रूप से सजाया जाता है.
Also Read: PHOTOS : बिरसा मुंडा की संघर्षमयी कहानी, जो अभी तक नहीं हुई पुरानी, जानें इनसे जुड़े रोचक तथ्यराज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य राजनीतिक दलों के बड़े नेता यहां धरती आबा को श्रद्धांजलि देने आते हैं. लेकिन, धरती आबा की जयंती से दो दिन पहले तक यहां कोई विशेष तैयारी नहीं है. चहारदीवारी के बाहर साइकिल स्टैंड बना है. पास में महिलाएं हड़िया बेच रहीं हैं.
मछली बाजार से निकलने वाला सारा कचरा इस समाधि स्थल के बगल से निकलने वाले नाले में डाल दिया जाता है. इसकी वजह से नाले में कचरे का अंबार लगा है. समाधि स्थल से सटी चहारदीवारी के पास भी सब्जी मार्केट की गंदगी डाल दी जाती है.
बाजार में शौचालय की उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से समाधि स्थल इसी दीवार के पीछे लोग शौच करने चले जाते हैं. बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि के मौके पर कोकर से लालपुर जाने वाली सड़क से बाजार को हटा दिया गया था. सब्जी बाजार एक बार फिर से सड़क पर सज गए हैं.
Also Read: VIDEO: पहली बार भगवान बिरसा मुंडा के गांव आ रहे पीएम मोदी, देखें कैसी हैं तैयारियांकोकर-लालपुर रोड की बायीं ओर स्थित बिरसा मुंडा समाधि स्थल के मुख्य द्वार की बायीं ओर (प्रवेश करने के दौरान) काले रंग के शिलापट्ट पर ‘भगवान बिरसा मुंडा समाधि स्थल’ लिखा है, लेकिन अगर आप उस शिलापट्ट पर नजर डालेंगे, तो पाएंगे कि भगवान बिरसा मुंडा लिखा हुआ तो स्पष्ट दिख रहा है, लेकिन समाधि स्थल की जगह सिर्फ ‘स’ छोटी ‘ई’ की मात्रा और स्थल ही लिखा है. समाधि स्पष्ट नहीं है.
समाधि स्थल का रख-रखाव करने वालों को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि झारखंड ही नहीं, जनजातीय समुदाय की आन-बान और शान धरती आबा के समाधि स्थल को देखने के लिए जब कोई आए, तो उसे यह महसूस न हो कि झारखंड को ही उनकी कोई परवाह नहीं है. साथ ही यहां की साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए.