रांची: किताब उत्सव के छठे दिन शनिवार को ‘हमारा झारखंड हमारा गौरव’ सत्र में झारखंड के गौरव विचारक-कथाकार फादर कामिल बुल्के को याद किया गया. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध कल्याण संस्थान (टीआरआई) के निदेशक रणेंद्र ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि फादर कामिल बुल्के ने देशभर के अलग-अलग समुदाय में प्रचलित राम कथाओं को हिंदी साहित्य में संकलित करने का कार्य किया. इस सत्र में डॉ माया प्रसाद, डॉ मृदुला प्रसाद और डॉ नागेश्वर ने उनके जीवन और व्यक्तित्व पर वक्तव्य दिया. डॉ मृदुला प्रसाद ने अपने जीवन के संस्मरण याद करते हुए कहा कि फादर कामिल बुल्के जर्मनी से लाई गई अपनी दमा की दवाएं कथाकार राधाकृष्ण को इलाज के लिए दे दिया करते थे. उन्हें पसंद नहीं था कि कोई किताब के अभाव में पढ़ाई न कर सके, इसलिए वे अक्सर लोगों को नि:शुल्क किताबें दिया करते थे. प्रो माया प्रसाद ने कहा कि फादर बुल्के बहुत ही सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी थे. प्रो नागेश्वर सिंह ने फादर कामिल बुल्के को याद करते हुए कहा कि फादर कामिल बुल्के ने अपने साहित्य में जिस राम का चित्रण किया है वो राम क्रोधी राम नहीं, उस राम में कोई अवगुण नहीं. उन्होंने यह भी बताया कि फादर कामिल बुल्के के आने से पहले हिंदी का शोध भी अंग्रेजी में होता था, उनके आने के बाद ही यह हिंदी में होना शुरू हुआ. उन्होंने कहा कि मानव सेवा और हिंदी सेवा फादर कामिल बुल्के का धर्म था.
दर्द भरी दास्तान बयां करती हैं पुस्तकें
दूसरे सत्र में मल्ली गांधी की किताबों ‘विमुक्त जनजातियां : हाशिए की अनसुनी आवाज़ें’, ‘विमुक्त जनजातियां : बदलाव के पहलू’ और ‘विमुक्त जनजातियों की विकास यात्रा’ का लोकार्पण हुआ और मल्ली गांधी ने पुस्तकों की जानकारी दी. मल्ली गांधी ने बताया कि भारत की कुछ जनजातियों को आपराधिक जनजाति घोषित कर दिया गया था. पूरे जनजाति को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया था. ये किताबें उनकी दर्द भरी दास्तान करती हैं. उस समाज के हक और पहचान की बात करती है.
आदिवासी साहित्य की भाषिक संरचना पर बातचीत
तीसरे और अंतिम सत्र में “आदिवासी साहित्य की भाषिक संरचना” विषय पर जितेंद्र सिंह ने राही डूमरचीर और डॉ पार्वती तिर्की से खास बातचीत की. राही डूमरचीर ने कहा कि आदिवासी समाज को संकोची कहा गया लेकिन जिस समाज के पास हर पहर के लिए लोकगीत है. संगीत है. तरह-तरह के नृत्य हैं, उसे संकोची कैसे कहा जा सकता है? आदिवासी साहित्य में बिंबो की बोझलता नहीं. उसकी लेखनी सहज और सरल. आदिवासी समुदाय में जीना और रचना अलग नहीं.