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पाकिस्तान में घुसकर दुश्मनों को मारा था, झारखंड के वीर सपूत अल्बर्ट एक्का को सीएम समेत कई ने किया नमन

सेना में रहकर अल्बर्ट एक्का ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में भाग लिया था. वहीं 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वह पाकिस्तान में घुसकर दुश्मनों से लड़े थे. 3 दिसम्बर को वह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. उनके इस बलिदान को याद करते हुए सीएम समेत कई नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की.

Albert Ekka Death Anniversary: देश की सेवा करते हुए अपनी जान गवाने वाले वीर शहीद अल्बर्ट एक्का की शहादत को याद करने के लिए हर साल 3 दिसम्बर को अल्बर्ट एक्का शहादत दिवस मनाया जाता है. अल्बर्ट एक्का ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लिया था, जहां वह दुश्मनों से लड़ते हुए वे शहीद हो गए थे. मरणोपरांत उन्हें देश की सर्वश्रेष्ठ सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था. बता दें कि जंग के दौरान उन्हें 20 से 25 गोलियां लगी थी. उनका पूरा शरीर दुश्मन की गोलियों से छलनी हो गया था.

सीएम हेमंत सोरेन ने कहा- पराक्रम, शौर्य और वीरता के प्रतीक है अल्बर्ट एक्का

अल्बर्ट एक्का के शहादत दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने परमवीर चक्र विजेता अमर वीर शहीद को नमन किया. उन्होंने अपने ट्विटर (एक्स) हैंडल पर लिखा कि पराक्रम, शौर्य और वीरता के प्रतीक, झारखंड की माटी के वीर सपूत, परमवीर चक्र विजेता अमर वीर शहीद अल्बर्ट एक्का के शहादत दिवस पर शत-शत नमन. झारखंड के वीर शहीद अमर रहें.

बाबूलाल मरंडी बोले- अल्बर्ट एक्का अदम्य साहस, शौर्य और वीरता के प्रतीक है

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते और नमन किया. उन्होंने अपने ट्विटर (एक्स) हैंडल पर लिखा कि अदम्य साहस, शौर्य और वीरता के प्रतीक, परम वीर चक्र से सम्मानित, झारखंड के वीर सपूत लांस नायक अल्बर्ट एक्का जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन.


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अल्बर्ट एक्का के वीरता की कहानी

अल्बर्ट एक्का का जन्म झारखंड के गुमला जिले के छोटे से गांव जारी में हुआ था. उनके पिता जुलियस एक्का भी सेना में थे और दूसरे विश्व युद्ध में अपना योगदान दिया था. घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वह पढ़ाई छोड़ पिता के साथ खेती बारी करने लगे. इस दौरान अल्बर्ट ने दो वर्षों तक नौकरी की तरह की. लेकिन उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली. इसके बाद वह भारतीय सेना में शामिल हो गए थे. भारतीय सेना में नौकरी के दौरान 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में भाग लिया, जहां उन्होंने अपनी बुद्धि व बहादुरी का लोहा मनवाया था. 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 3 दिसंबर को वह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे.

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