रांची: झारखंड आंदोलनकारी, साहित्यकार व शिक्षाविद डॉ बीपी केशरी (Dr BP Keshari) यानी डॉ बिशेश्वर प्रसाद केशरी की आज (1 जुलाई) 90वीं जयंती है. रांची जिले के कांके प्रखंड के पिठोरिया गांव में 1933 में इनका जन्म हुआ था. इनके पिता का नाम शिवनारायण साहू था और मां का नाम लगन देवी था. 1943 में गांव के स्कूल से पास कर सातवीं से 11वीं तक की पढ़ाई 1949 तक रांची के जिला स्कूल से हुई. 1951 में आईए की परीक्षा रांची कॉलेज से (अर्थ-शास्त्र, भूगोल एवं हिन्दी विषय) के साथ पूरी की. उसी कॉलेज से बीए (हिन्दी ऑनर्स) 1953 में और एमए (हिन्दी) की पढ़ाई 1957 में पूरी की. 21 सितंबर 1971 ई. को रांची विश्वविद्यालय से डॉ सच्चिदानंद चौधरी के निर्देशन में नागपुरी गीतों में शृंगार रस-सांस्कृतिक एवं काव्य शास्त्रीय अध्ययन विषय में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी.
1987 में आर्थिक नाकेबंदी का किया था नेतृत्व
डॉ बीपी केशरी झारखंडी सभ्यता-संस्कृति व भाषा-साहित्य के साथ-साथ आमजन की उपेक्षा से काफी व्यथित रहते थे. झारखंडी समाज को इससे मुक्ति दिलाने के लिए इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था. झारखंड पार्टी के उपाध्यक्ष (1973 से 1990), झारखंड समन्वय समिति के संयोजक (1987 से 1995) और भारत सरकार द्वारा गठित झारखंड विषयक समिति के सदस्य (1989 से 1995) रहे. झारखंड अलग राज्य की मांग को लेकर 19 नवंबर 1987 को आर्थिक नाकेबंदी की गयी थी. रांची के पिठोरिया चौक पर जबरदस्त बंदी डॉ केशरी के नेतृत्व में की गयी थी. जिला प्रशासन द्वारा डॉ केशरी सहित सैकड़ों लोगों को आठ घंटे की हिरासत में रांची जिले के हिंदपीढ़ी थाने में रखा गया था. झारखंड मार्च के दौरान ओडिशा के क्योंझर के चंपुआ जेल में 2 से 8 अप्रैल 1988 तक रहे. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छोटानागपुर यात्रा के दौरान 24 से 28 मई 1988 तक रांची जेल में रहना पड़ा. आपको बता दें कि वृहद् झारखंड की मांग को लेकर 1988 में 20 मार्च से 8 अप्रैल तक झारखंड मार्च का आयोजन किया गया था.
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ये हैं डॉ बीपी केशरी की कृतियां
डॉ बीपी केशरी की प्रकाशित कृतियों में नागपुरी भाषा और साहित्य, साहित्य के तत्त्व और आयाम, झारखंडी भाषाओं की समस्याएं और संभावनाएं, छोटानागपुर का इतिहास-कुछ सूत्र, कुछ संदर्भ, झारखंड आंदोलन की वास्तविकता, चरित्र-निर्माण, झारखंड के सदान, मैं झारखंड में हूं, ऊँ विश्वविद्यालय नमः, नागपुरी गीतों में शृंगार रस, कवि रत्न शारदा प्रसाद शर्माः एक अंतरंग आकलन, सिर्फ सोलह सफे, शेष सारे सफे, सत्यार्चन, बोल आपन बोली, ठाकुर विश्वनाथ शाही (नाटक), नेरूआ लोटा उर्फ सांस्कृतिक अवधारणा, कल्चरल झारखंड- प्रोब्लम एंड प्रोस्पेक्टस, कुछ क्षण टिके हुए, नागपुरी गीतों का वृहद् संग्रह और नागपुरी कवि और उनका काव्य प्रमुख हैं. इसके अलावे इन्होंने अनेक कृतियों का संपादन किया. इनके सैकड़ों लेख, निबंध, कहानियां, रेडियो-रूपक, समीक्षा, भूमिका, गीत, कविता मुख्य रूप से हिन्दी, नागपुरी और अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशित-प्रसारित हुए हैं.
2003 में नागपुरी संस्थान में शुरू हुआ था कार्य
भाषा प्रेमियों और शोधार्थियों के लिए नागपुरी संस्थान (शोध एवं प्रशिक्षण केन्द्र) पिठोरिया(रांची) इनकी अनूठी देन है. झारखंडी सभ्यता-संस्कृति, भाषा-साहित्य, रीति-रिवाज की जानकारी चाहते हैं, तो रांची-पतरातू मुख्य मार्ग में पिठोरिया स्थित नागपुरी संस्थान सबसे उपयुक्त जगह है. डॉ बीपी केशरी व शांति केशरी द्वारा 17 फरवरी 2002 को इसकी स्थापना की गयी थी. 1 जुलाई 2003 को रथयात्रा के दिन से संस्थान में कार्य का शुरू हुआ था. संस्थान का अपना पुस्तकालय है, जहां जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पुस्तकों (464) का संग्रह है. हिन्दी की (1222), अंग्रेजी की (388) पुस्तकों के साथ नागपुरी एवं हिन्दी भाषाओं की लगभग 4000 पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध हैं.
कई सम्मान से नवाजे गए थे
विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर द्वारा विद्यासागर (1982), लोक सेवा समिति रांची द्वारा झारखंड रत्न (1999), झारखंड साहित्य परिषद् डाल्टनगंज द्वारा साहित्य शिरोमणि (2002), झारखंड प्रदेश वैश्य समाज द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र (2003), प्रभात खबर रांची द्वारा झारखंड गौरव सम्मान (2009), रांची दूरदर्शन केंद्र द्वारा रांची दूरदर्शन केंद्र सम्मान (2010), राजभाषा सम्मान, धनबाद, झारखंड (2010), कला-संस्कृति विभाग झारखंड सरकार द्वारा लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड(2011-1202), झारखंड भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा रांची के द्वारा अखड़ा सम्मान (2013) और ब्रजेन्द्र मोहन चक्रवर्ती स्मृति सम्म्मान (2014) से नवाजे गये हैं. 14 अगस्त 2016 को इनका निधन हो गया था.