वरीय संवाददाता, रांची़ झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय प्रसाद की अदालत ने संचयात्मक प्रभाव से तीन वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने व निंदन की सजा को चुनाैती देनेवाली याचिका पर फैसला सुनाया. अदालत ने प्रार्थी की याचिका को स्वीकार करते हुए विभागीय कार्यवाही व दंडात्मक आदेश को निरस्त कर दिया. साथ ही प्रार्थी को प्रोन्नति, प्रथम, द्वितीय, तृतीय एमएसीपी सहित सारे वित्तीय लाभ देने का आदेश दिया. पूर्व में सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि वर्तमान मामले में अधिकारियों ने प्रार्थी वन क्षेत्र पदाधिकारी (रेंजर) आनंद कुमार को बिहार से झारखंड तक खदेड़ कर उस पर दंड लगाते हुए गंभीर अवैधता की है, जो झारखंड राज्य के अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र से बाहर था. वैसी स्थिति में सरकार के उप सचिव द्वारा सात जनवरी 2005 को पारित आदेश, जिसके द्वारा प्रार्थी को निंदन की सजा देने व संचयी प्रभाव से तीन वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने के लिए दंडित किया गया है और 27 नवंबर 2006 के अपीलीय आदेश को रद्द किया जाता है. इससे पूर्व मामले की सुनवाई के दाैरान प्रार्थी आनंद कुमार ने स्वयं पक्ष रखा. उन्होंने अदालत को बताया था कि मगध सर्किल पटना में पदस्थापन के दाैरान उनके खिलाफ 10,000 रुपये का गबन करने व सवा लाख रुपये का अस्थायी गबन करने का आरोप लगाया गया था. बिहार के पीसीसीएफ ने विभागीय कार्यवाही चलायी थी. बाद में फाइल झारखंड सरकार को निर्णय लेने के लिए भेज दिया. इसके बाद वर्ष 2007 में झारखंड सरकार ने उनके खिलाफ दंडात्मक आदेश पारित किया. इसमें संचयात्मक प्रभाव से तीन वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने के साथ-साथ निंदन की सजा दी गयी थी, जो गलत है. उन्हें आदेश के बारे में सूचित भी नहीं किया गया था. उन्होंने दंडात्मक आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी रेंजर आनंद कुमार ने वर्ष 2009 में याचिका दायर कर संचयात्मक प्रभाव से तीन वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने व निंदन की सजा को चुनाैती दी थी.
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