21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कैसे थे फादर कामिल बुल्के, आज भी इस जगह पर बसती हैं उनकी यादें

मेरे देश की भांति उत्तर भारत का मध्यवर्ग भी अपनी मातृभाषा की अपेक्षा एक विदेशी भाषा को अधिक महत्व देता है. इसके प्रतिक्रिया स्वरूप मैंने हिंदी पंडित बनने का निश्चय किया.

फादर कामिल बुल्के ने एक जगह लिखा है मातृभाषा प्रेम का संस्कार लेकर मैं वर्ष 1935 में रांची पहुंचा और मुझे यह देखकर दुख हुआ कि भारत में न केवल अंग्रेजों का राज है बल्कि अंग्रेजी का भी बोलबाला है. मेरे देश की भांति उत्तर भारत का मध्यवर्ग भी अपनी मातृभाषा की अपेक्षा एक विदेशी भाषा को अधिक महत्व देता है. इसके प्रतिक्रिया स्वरूप मैंने हिंदी पंडित बनने का निश्चय किया.

फादर कामिल के रोम-रोम में हिंदी

कर्मस्थली का होना है, कर्म भूमि की मिट्टी से जुड़ना है, तो वहां की देशज भाषा में रचना-बसना होगा. वहां का होना है, तो वहीं की भाषा का आलिंगन जरूरी है. फादर कामिल बुल्के ने इसे अपने जीवन में उतारा. रोम-रोम में हिंदी को बसा लिया. भारतीय भाव को कामिल ने हिंदी के माध्यम से गले लगाया. मां भारती की भाषा हिंदी को समृद्ध करने में उनका अद्वितीय योगदान रहा है. आज उन्हीं की जयंती है. कामिल बुल्के का याद करने का मतलब हिंदी के एक साधक-सेवक को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं.

मनरेसा हाउस के तीन कमरों में फादर बुल्के की दुनिया आबाद थी

सर्जना चौक पास स्थित है मनरेसा हाउस. यहीं तीन कमरों में फादर कामिल बुल्के की दुनिया आबाद थी. यह कभी छप्पर का था, जिसे बाद में पक्के का बनाया गया. मनरेसा हाउस में प्रवेश करते ही सबसे पहले फादर बुल्के की सफेद आदमकद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है. थोड़ा आगे बढ़ेंगे, तो उनके नाम का पुस्तकालय, शोध संस्थान. जिसमें उनकी किताबें, पत्रिकाएं, शोध ग्रंथ आदि हैं. हिंदी की असाधारण पुस्तकें, जो रांची विवि के पुस्तकालय में नहीं है, वह यहां मिल जाती हैं.

फादर कामिल बुल्के शोध संस्थान के निदेशक फादर डॉ इम्मानुएल बाखला कहते हैं : जब फादर का निधन हुआ, तो यहां किताबों की ढेर लगी हुई थी. उनको तरतीब (व्यवस्थित) करने में छह महीने लग गये. पहले तो यह समझ नहीं आ रहा था कि इतनी किताबों का क्या जाये. पुस्तकालयों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इन किताबों को लेने से इनकार कर दिया. इसके बाद तय हुआ कि जिन कमरों में फादर कामिल बुल्के रहते थे, उन्हें ही शोध संस्थान का रूप दे दिया जाये. इस काम में ऑस्ट्रेलिया के फादर विलियम ड्वायर (हिंदी में पीएचडी) ने बहुत मदद की. यह शोध संस्थान 1983 में अस्तित्व में आया.

कभी-कभी एक शब्द पर दिनभर लगा देते

बाखला कहते हैं : जब संत जेवियर्स कालेज से 1967-70 के दौरान बीए कर रहा था, तब फादर यहां विभागाध्यक्ष थे, लेकिन वह पढ़ाते नहीं थे. घर में ही अनुवाद-कोश पर काम कर रहे थे. बाइबिल के अनुवाद में जुटे थे. फादर बुल्के कोश निर्माण में ऐसे लगे थे कि एक शब्द पर कभी-कभी दिन भर लगा देते. मनरेसा हाउस में शोध संस्थान के जरिए फादर कामिल बुल्के जीवित हैं.

आज भी उनकी कुर्सी निस्पंद पड़ी है

संत जेवियर कॉलेज कैंपस के पिछले हिस्से में फादर कामिल बुल्के शोध संस्थान को नया रूप दिया गया है. भले ही उनकी पुस्तकें व्यवस्थित तरीके से संत जेवियर कॉलेज कैंपस में हो, लेकिन आज भी फादर कामिल बुल्के शोध संस्थान का हृदय मनरेसा हाउस स्थित फादर के पुराने घर में ही धड़कता सुनायी देता है. यहीं उन्होंने अपनी रचना रामकथा : उत्पत्ति और विकास, अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, मुक्तिदाता, नया विधान, हिंदी-अंग्रेजी लघुकोश, बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया.

ये किताबें विदेशों में भी अलग पहचान दिला रही हैं. हां, उनकी कुर्सी निस्पंद पड़ी है. शायद, अपनी साइकिल से कहीं निकले हों. शोध संस्थान के सदस्य रविकांत मिश्रा कहते हैं : आज भी उनके पद्म भूषण पुरस्कार और मूर्ति शोधार्थियों में उत्साह का संचार कर रहे हैं.

हिंदी के प्रति उनका लगन देख हर कोई अवाक था

कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव निरंकुश ने डॉ कामिल बुल्के से संबंधित तीन किताबें लिखी है. हिंदी और फादर कामिल बुल्के निबंध संकलन, जनमानस के तुलसीदास : बुल्के के शब्दों में और तीसरा जगत से संबंधित पुस्तक है. वह कहते हैं : हिंदी में फादर बुल्के का अप्रतिम योगदान रहा है. हिंदी के प्रति अपने आप को समर्पित कर दिया. दिल्ली, इलाहाबाद होते हुए जब मनरेसा हाउस रांची में आये, तब हिंदी के प्रति उनका लगन देखकर लोग अवाक हो गये. बुल्के जी अपने सिरहाने एक तरफ बाइबल और दूसरी तरफ रामचरितमानस रखते थे.

रामचरित मानस का फादर बुल्के ने आत्ममंथन किया

फादर बुल्के ने राम चरितमानस का सिर्फ अध्ययन हीं नहीं किया, बल्कि उस पर शोध किया. आत्ममंथन किया. मंथन के बाद निकले अमृत को जन-जन तक बांटने की कोशिश की. उनका मानना था कि यदि सुख की प्राप्ति करनी है या मानवता की सेवा करनी है, तो मानस को छोड़ कहीं अन्यत्र जाने की जरूरत नहीं है. जिस तरह चातक अपने पुत्र को, अपने कुल धर्म की शिक्षा देता है कि उनके कुल की मर्यादा है कि स्वाति नक्षत्र के जल के सिवाय वह किसी दूसरे जल से अपनी प्यास नहीं बुझा सकते. उसी तरह हम रामचरितमानस के सिवाय किसी अन्यत्र द्वारा अपने आध्यात्मिक, नैतिक सांस्कृतिक, सामाजिक या मानवीय उद्देश्यों की प्यास नहीं बुझा सकते.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत को किया प्रमाणित

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, इस कथन को फादर बुल्के ने प्रमाणित कर दिखाया. 35 वर्ष की अवस्था में हिंदी सीखना प्रारंभ किया. विदेशी होकर भी हिंदी की लोकप्रियता के कारण भारतवासी हो गये. यह बड़े गर्व की बात है कि उन्होंने अपनी सेवा देने का स्थान रांची को चुना. भाषा को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित किया. उनके अनुसार संस्कृत महारानी, हिंदी बहुरानी और अंग्रेजी नौकरानी है. संत जेवियर्स कॉलेज में ही फादर कामिल बुल्के लाइब्रेरी पदस्थापित है. उस लाइब्रेरी में आज सैकड़ों विद्यार्थी हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन कर लाभ उठा रहे हैं. इस तरह यह कहा जा सकता है कि हिंदुस्तान की बिंदी हिंदी.

रामकथा की अंतरराष्ट्रीय महत्ता स्थापित की

फादर कामिल बुल्के पथ पर गुजरते हुए हमेशा बुल्के याद आते हैं. हिंदी साहित्य से उनका गहरा प्रेम रहा. जिस तरह उन्होंने हिंदी साहित्य का अध्ययन किया, वह विशिष्ट है. बुल्के ने किसी की बुराई नहीं की है, अपितु हिंदी के महत्व को उजागर किया है. वह हिंदी साहित्य के अनन्य भक्त थे. भारतीय परंपरा में मौजूद रामकथा का अध्ययन गहराई में जाकर किया. रामकथा की अंतरराष्ट्रीय महत्ता स्थापित की. इस दृष्टि से कि यह मनुष्यता के मूल्य स्थापना के लिए महत्वपूर्ण है. डॉ दिनेश प्रसाद ने बुल्के के साथ कई वर्षों तक कार्य किया. बुल्के के साथ कई ग्रंथों के सम्पादन-सहयोग में उनका योगदान है.

उनका अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश हिंदी सीखने में बड़ी मददगार

डॉ कामिल बुल्के की हिंदी सेवा इस दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उन्होंने हिंदी और संस्कृत जैसी भाषाओं को सीखकर खुद को उनकी सेवा में लगाया. वे भारत धर्म सेवा के लिए आये. यहां उनका रूपांतरण हिंदी सेवी के रूप में हो गया. उनका यह रूपांतरण हिंदी भाषा और साहित्य दोनों के लिए ही बड़ा फलदायी रहा. रामकथा उत्पत्ति और विकास से संबंधित अध्ययन आज भी मील का पत्थर बना हुआ है. प्राचीन से लेकर नवीन रामकथाओं की जानकारी और उनका सम्यक विश्लेषण आज के शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी है. उनका अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश हिंदी सीखने में बड़ी मददगार है. अनुवादकों के लिए आज भी इस शब्दकोश से बेहतर शब्दकोश नहीं बन पाया है. डॉ बुल्के को लंबा जीवन भले ही नहीं मिला लेकिन जितना भी अवसर उन्हें मिला उसे सार्थक बनाने का काम किया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें