Jharkhand news, Ranchi news : रांची : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री (Former chief minister) और भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास (Raghuvar Das) ने छठी जेपीएससी (6th JPSC) की नियुक्यिों में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के न्याय-निर्णयों (Judgments) की अनदेखी करने का आरोप हेमंत सरकार पर लगाया है. उन्होंने कहा है कि हाल में प्रकाशित छठी जेपीएसपी के अंतिम परिणाम में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों से अधिक अंक लाने वाले ओबीसी अभ्यर्थियों को फेल घोषित कर दिया गया.
पूर्व मुख्यमंत्री श्री दास ने राज्य विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) द्वारा झारखंड के मूलवासी-आदिवासी और पिछड़ों के हित में काम करने का वायदा करने के प्रतिकूल राज्य सरकार द्वारा आचरण करने का आरोप लगाया है. उन्होंने जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा (JPSC Preliminary Examination) की चर्चा करते हुए कहा कि जब प्रारंभिक परीक्षा परिणाम प्रकाशित हुआ था, तब भी सामान्य से अधिक अंक लाने वाले ओबीसी अभ्यर्थियों (OBC Candidates) को फेल कर दिया गया था. उनसे कम अंक लाने वाले अनारक्षित सामान्य अभ्यर्थी (Unreserved general candidate) पास घोषित कर दिये गये थे.
उन्होंने कहा कि इन बिसंगतियों की जानकारी उनके नेतृत्व में गठित भाजपा सरकार को जब मिली, तो सरकार ने न्यायोचित निर्णय लिया था. इसके बाद ओबीसी के वैसे अभ्यर्थी जिनके अंक सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों से अधिक थे, उन्हें उत्तीर्ण किया गया था और वे मुख्य परीक्षा (Main exam) में भाग ले सके थे. इस संबंध में श्री दास ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदिरा साहनी मामले को लेकर हाल तक के न्याय-निर्णयों की चर्चा की है.
श्री दास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हर श्रेणी के अभ्यर्थी सबसे पहले तो सामान्य श्रेणी का भी अभ्यर्थी माना जाता है. अगर आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी के अंक सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी से अधिक हो, तो वह सामान्य श्रेणी में शामिल माना जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किये जाने की परिस्थिति को सामान्य श्रेणी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की संज्ञा दी है अथवा इसे कम्युनल अवार्ड (Communal award) कहा है और अपने अनेक न्याय- निर्णय में ऐसी प्रक्रिया को गलत ठहराया है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने जेपीएससी के अंतिम परिणामों के लिए अभ्यर्थियों के कट ऑफ मार्क्स (Cut off marks) निर्धारण की चर्चा करते हुए कहा है कि अंतिम परिणाम के लिए सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का कट ऑफ मार्क्स 600 और ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए 621 निर्धारित किया गया. यानी वैसे सभी ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी जिनको 600 से लेकर 621 अंक प्राप्त हुए. मतलब अंतिम सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी से अधिक अंक लाने वाले उन सभी को असफल घोषित किया गया है.
उन्होंने हेमंत सरकार (Hemant government) की आलोचना करते हुए कहा है कि जेपीएससी के अंतिम परिणाम ने हेमंत सरकार आदिवासी-मूलवासी पिछड़ा वर्ग विरोधी चेहरे को बेनकाब कर दया है. श्री सोरेन ने झारखंड के सैकड़ों मूलवासी पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को राज्य की प्रशासनिक सेवा (State administrative service) में नियुक्ति से वंचित कर दिया. यह इनके साथ सरकार का घोर अन्याय है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा आदिवासी, मूलवासी एवं पिछड़े वर्ग के साथ किये गये इस अन्याय को रेखांकित करते हुए कहा है कि छठी जेपीएससी की नियुक्ति प्रक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकार ने सरकारी नौकरियों में सामान्य श्रेणी में आने वाली 10 प्रतिशत आबादी के लिए 50 प्रतिशत पद और 52 प्रतिशत की जनसंख्या वाले पिछड़े वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित कर दिया है. संभव है कि राज्य सरकार के सलाहकारों ने सरकार को बाद के सुप्रीम कोर्ट के उस न्याय-निर्णय का हवाला देकर गुमराह किया हो, जिसमें न्यायालय ने सिर्फ इतना ही कहा है कि यदि आरक्षित वर्ग अथवा पिछड़े वर्ग का अभ्यर्थी उस वर्ग को दी गयी अन्य सुविधाओं जैसे उम्र आदि का लाभ लेता है, तो उसे साधारण श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता है. लेकिन, 600 अंक से 621 अंक लाने वाले वाले पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों में वैसे कई अभ्यर्थी होंगे, जिनकी योग्यता तथा उम्र सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के बराबर होगी और उन्होंने अपने आवेदन में पिछड़ा वर्ग लिखा हो.
श्री दास ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त निर्णय के आलावा अनेक पूर्व तथा बाद के फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा है कि उन फैसलों में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी श्रेणी का अभ्यर्थी सबसे पहले साधारण श्रेणी का अभ्यर्थी तो माना ही जायेगा, साथ ही उसके मार्क्स अथवा मेरिट रैंक साधारण श्रेणी के अभ्यर्थी से ऊपर हो, तो वह सामान्य श्रेणी में गिना जायेगा, ताकि एक योग्य तथा अधिक अंक लाने वाले अभ्यर्थी को सिर्फ इसलिए फेल नहीं कर दिया जाय कि वह आरक्षित श्रेणी का है. लेकिन छठी जेपीएससी की नियुक्ति मामले में ऐसा ही हुआ है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने छठी जेपीएससी की नियुक्ति पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि जब इस मामले में अनेक वाद झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) में लंबित पड़े हैं, तो सरकार को हड़बड़ी में नियुक्तियां करने की क्या वजह थी. यह स्पष्ट तौर पर झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों तथा पिछड़े वर्ग के साथ अन्याय है.
Posted By : Samir Ranjan.