03 जनवरी, जयपाल सिंह की जयंती. इसी तारीख काे 1903 में जयपाल सिंह का जन्म हुआ था. उस जयपाल सिंह का, जिन्हाेंने झारखंड आंदाेलन में, भारत काे हॉकी में ओलिंपिक चैंपियन बनाने और भारतीय संविधान के निर्माण के वक्त पूरे देश के आदिवासियाें की आवाज बन कर महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. उनमें नेतृत्व का अदभुत गुण था. खुद प्रखर वक्ता थे, सरल स्वभाव के थे, लेखनी के धनी थे और अपनी बात काे सरल भाषा में इतने जाेरदार तरीके से रखते थे कि किसी दूसरे के लिए उनके तर्क काे काटना आसान नहीं था.
लाल बहादुर शास्त्री, उस समय के लाेकसभा अध्यक्ष अनंत सयानम आयंगर, लाेकसभा सचिव एमएन काैल, ओलिंपिक टीम के उनके साथी मेजर ध्यानचंद जैसे प्रमुख लाेगाें ने उनके गुणाें की तारीफ की थी.
लाल बहादुर शास्त्री ने लिखा था-जयपाल सिंह लाेकसभा के बहुत ही याेग्य सदस्य हैं. लाेकसभा के अपने भाषणाें में संतुलन रखने के साथ ही साथ शक्तिशाली अभिव्यक्ति भरने में वे सदैव अद्वितीय हैं. लाेकसभा के विराेध दल के सदस्याें में वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जाे सर्वप्रिय हैं. जिन दिनाें शास्त्री ने जयपाल सिंह के बारे में ये बातें लिखी थीं, उन दिनाें शास्त्री केंद्र सरकार में परिवहन एवं वाणिज्य मंत्री थे. तब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. यह टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्याेंकि तब झारखंड क्षेत्र में कांग्रेस पर काेई पार्टी भारी पड़ रही थी, ताे वह जयपाल सिंह की झारखंड पार्टी ही थी.
लाेकसभा अध्यक्ष आयंगर ने जयपाल सिंह की भाषण शैली की तारीफ करते हुए कहा था- वे (जयपाल सिंह) एक बहुत ही सुंदर बाेलनेवाले तथा आशाओं से परिपूरित झारखंडी नेता हैं.इनका राेम-राेम सज्जनता से भरपूर है तथा संसद संबंधी विषयाें की सूक्ष्म जानकारी इनकी बहुत बड़ी उपलब्धि है. वे शांति के प्रतीक हैं और प्रत्येक व्यक्ति का मित्र बनना चाहते हैं. किसी के प्रति शत्रुता का भाव इनके स्वभाव के प्रतिकूल है. जब ये संसद में बाेलते हैं, ताे इन्हें एकांतिक ध्यान से सुना जाता है. लाेकसभा अध्यक्ष की यह टिप्पणी जयपाल सिंह के बड़े गुण काे प्रमाणित करता है.
मेजर ध्यानचंद : यह जगजाहिर है कि जयपाल सिंह की अगुवाई में ही भारत ने पहली बार ओलिंपिक का गाेल्ड जीता था. तब टीम में हॉकी के जादूगर कहे जानेवाले मेजर ध्यानचंद भी थे. अपने मित्र जयपाल सिंह के बारे में ध्यानचंद ने लिखा था-हमने जयपाल सिंह में इंग्लैंड के हॉकी जगत का विश्वविख्यात खिलाड़ी पाया.वास्तव में जयपाल सिंह हॉकी क्षेत्र में घर-घर की चर्चा के विषय थे.अनेकाें द्वारा प्यार किया जानेवाला यह व्यक्ति वहां की सामाजिक गाेष्ठियाें का केंद्रीय आकर्षण था.
ऐसे व्यक्ति काे अपनी टीम के नायक के रूप में पाकर हम सबने अपने काे बहुत ही भाग्यशाली अनुभव किया. ध्यानचंद की यह टिप्पणी जयपाल सिंह के आरंभिक दिनाें और टीम इंडिया में कद का प्रमाण है.
उन दिनाें के खाद्य मंत्री एसके पाटील ने जयपाल सिंह काे दलित वर्गाें का जन-नायक बताया था. लाेकसभा सचिव एसके काैल ने लिखा था-इनके (जयपाल सिंह) बाेलने का ढंग इतना आकर्षक है कि वे सहज ही सदस्याें काे अपनी ओर खींच लेते हैं.जब भी वे किसी भी विषय पर बाेलते हैं, ताे सशक्त अभिव्यक्ति के साथ और वे अंत तक विषय से अपने काे परे नहीं करते हैं, जब तक उन्हें यह विश्वास न हाे जाये कि या ताे उनका तर्क स्वीकार कर लिया गया है अथवा संसद द्वारा उचित रूप में समझ लिया गया है. मेरी यह अनुभूति है कि उनकी उपस्थिति संसद काे गाैरवान्वित करती है.
जयपाल सिंह कितने ताकतवर थे, इस बात का पता कांग्रेस में जाने के बाद सीताराम जगतरामका काे लिखे उनके पत्र से चलता है. जयपाल सिंह ने लिखा था- हमलाेग ने कांग्रेस में शामिल हाेने के बावजूद झारखंड की मांग नहीं छाेड़ी है. वास्तव में हमलाेग पहले से ज्यादा ताकतवर हाे गये हैं. यहां तक कि केबी सहाय (मुख्यमंत्री) भी हमसे काेई सुरक्षित सीट की मांग कर रहे हैं, क्याेंकि वे अपने जिले से चुनाव लड़ कर काेई जाेखिम उठाना नहीं चाहते.
उन्हें सत्येंद्र नारायण सिन्हा पर भी भराेसा नहीं है, जिन्हाेंने उन्हें गया सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है, जहां से कांग्रेस नहीं जीती है. जयपाल सिंह के इस पत्र से यह पता चलता है कि कांग्रेस में जाने के बाद भी टिकट बंटवारे में भी झारखंड क्षेत्र में जयपाल सिंह की ही चलती थी. यह उनकी ताकत काे बताता है.
ऐसे जब जयपाल सिंह कांग्रेस में नहीं गये थे, तब झारखंड पार्टी इतनी ताकतवर हाे गयी थी (बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल) जिसने कांग्रेस काे चिंतित कर दिया था. झारखंड पार्टी के अध्यक्ष के नाते जब जयपाल सिंह झारखंड क्षेत्र में प्रत्याशी का चयन करते थे, ताे एक-एक प्रत्याशी पर खुद नजर रखते थे. काेई पैरवी नहीं, खुद खाेज कर निकालते थे कि काैन चुनाव जीत सकता है.
1952 के चुनाव में जुगसलाई से कैलाश प्रसाद काे उतारा था, जिन्हाेंने अपने पिता काे हरा दिया था. चक्रधरपुर से एक जुझारू युवा सुखदेव माझी काे टिकट दिया था जाे फुटबाॅल के एक अच्छे खिलाड़ी थे. दाेनाें काे चुनाव में जीत मिली थी. यह था जयपाल सिंह के काम करने का तरीका.