Stan Swamy, Jharkhand, Bhima Koregaon Case, Elgar Parishad Case: रांची : झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) पर गंभीर आरोप लगाये हैं. अपनी गिरफ्तारी से पहले स्टेन स्वामी ने कहा कि एनआइए ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उनके कम्प्यूटर में फर्जी सबूत प्लांट किये. आदिवासी बहुल इलाकों में समाजसेवा करने वाले फादर स्टेन स्वामी (83) को गुरुवार (8 अक्टूबर, 2020) को भीमा कोरेगांव केस में संलिप्तता के आरोप में झारखंड की राजधानी रांची के नामकुम थाना क्षेत्र अंतर्गत बगइचा स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया था.
लंबे समय से स्टेन स्वामी महाराष्ट्र पुलिस और एनआइए के रडार पर थे. वर्ष 2018 में पुणे की पुलिस ने भी उनसे रांची में पूछतछ की थी. वर्ष 2018 से अब तक कई बार एनआइए ने भी उनसे पूछताछ की है. एनआइए पहले भी उनसे 15 घंटे तक पूछताछ कर चुकी है. 27 जुलाई से 30 जुलाई और 6 अगस्त को कुल मिलाकर 15 घंटे तक जांच एजेंसी ने उनसे पूछताछ की.
उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बायो-डाटा के अलावा कुछ जरूरी सूचनाएं उनके सामने पेश की गयीं, जिसमें उनका संबंध माओवादियों से दर्शाया गया. स्टेन स्वामी ने कहा कि उन्होंने जांच एजेंसी के तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि चोरी से ये जानकारियां उनके कम्प्यूटर में फीड कर दी गयी हैं.
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स्टेन स्वामी की पहचान झारखंड में आदिवासियों के अधिकार की रक्षा के लिए लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में है. वर्ष 1996 में पूर्वी सिंहभूम के जादूगोड़ा स्थित यूरेनियम कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड की वजह से आदिवासी बहुल इलाकों में फैलने वाले रेडियेशन के खिलाफ शुरू हुए अभियान झारखंड ऑर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन (JOAR) का भी वह हिस्सा थे. इतना ही नहीं, फादर स्वामी बोकारो, संथाल परगना और कोडरमा के विस्थापितों के कल्याण और उनके अधिकारों के लिए भी लड़ते रहे हैं.
आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करने वाली एजेंसी एनआइए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनकी गिरफ्तारी के बाद कहा था कि फादर स्टेन स्वामी प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य थे. इस प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों में वह सक्रिय रूप से भाग लेते थे. एनआइए के अधिकारी ने कहा कि माओवादी गतिविधियों के संचालन के लिए उन्हें पैसे मिलते रहे हैं. वह भाकपा माओवादी के संगठन पीपीएससी (परसीक्यूटेड प्रिजनर्स सॉलिडैरिटी कमेटी) के संयोजक हैं.
एनआइए के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि उनके पास से प्रतिबंधित संगठन भाकपा माओवादी का प्रचार करने वाली सामग्री के साथ-साथ कुछ ऐसे भी दस्तावेज मिले हैं, जो यह साबित करते हैं कि स्टेन स्वामी इस संगठन की गतिविधियों में मददगार हैं. वर्ष 2018 में स्टेन स्वामी के वकील ने बांबे हाइकोर्ट में दलील दी थी कि पीपीएससी का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. फादर स्टेन स्वामी ने अक्टूबर, 2018 में भीमा कोरेगांव मामले में उनके खिलाफ चल रहे मामलों को खत्म करने का आदेश देने के लिए एक याचिका दाखिल की थी.
उस वक्त उनके वकील ने कहा था कि पीपीएससी एक ऐसी कमेटी है, जिसका गठन समाज के संभ्रांत वर्ग के लोगों ने कैदियों की सहायता के लिए, उन लोगों की मदद के लिए, जो बेवजह वर्षों से देश के अलग-अलग जेलों में बंद हैं, की मदद के लिए किया था. इसका राजनीति से कोई वास्ता नहीं है. उनके वकील ने कहा था कि स्टेन स्वामी को जांच एजेंसी सिर्फ संदिग्ध मानती है, उन्हें आरोपी नहीं बताया गया है. बांबे हाइकोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया.
दो वर्ष बाद एनआइए ने 24 जनवरी, 2020 को इस केस को अपने हाथ में लिया. इसके बाद भीमा-कोरेगांव में भड़की हिंसा में फादर स्टेन स्वामी की भूमिका की जांच शुरू की. अपनी गिरफ्तीर से ठीक पहले फादर स्टेन स्वामी ने एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह भीमा-कोरेगांव केस में सिर्फ एक ‘संदिग्ध आरोपी’ हैं. एनआइए की उनसे संबंधित जांच का भीमा-कोरेगांव हिंसा से कोई संबंध नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि 28 अगस्त, 2018 और 12 जून, 2019 को उनके यहां छापे पड़े. इसका सिर्फ यही उद्देश्य रहा कि किसी तरह यह स्थापित कर दिया जाये कि वह (स्टेन स्वामी) व्यक्तिगत रूप से वामपंथी उग्रवादियों से संबंध रखते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि इसका दूसरा उद्देश्य यह है कि उनके जरिये बगइचा भी कहीं न कहीं माओवादियों से संबद्ध है. मैंने इन दोनों ही आरोपों का पुरजोर खंडन किया है. बगइचा एक सामाजिक संस्था है, जो कैथोलिक समाज की ओर से संचालित हो रहा है. यहां एक कमरे में स्टेन स्वामी रहता है.
Posted By : Mithilesh Jha